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chandan
Attitudes का सीधा अर्थ गवारू भाषा में कहे तो "बहुत ऐठते हो तुम " , ©chandan Attitudes का सीधा अर्थ ऐठना , गवारू भाषा में कहे तो "बहुत ऐठते हो तुम " #think
Prem Nirala
मेरा नाम सुनते ही उसके लबों की थरथराहट बताती हैं कि उसे मुझसे इश्क़ कितना हैं! ग़र मैं छू दूँ उसके लबों को, तो उसके बदन की ऐठन बताती हैं कि उसे मुझसे इश्क़ कितना हैं! prem_nirala_ मेरा नाम सुनते ही उसके लबों की थरथराहट बताती हैं कि उसे मुझसे इश्क़ कितना हैं ग़र मैं छू दूँ उसके लबों को तो उसके बदन की ऐठन बताती हैं कि उ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
बैठे-बैठे रेत पर , लिखूँ सजन का नाम । आकर वो परदेस से, देखें मेरा काम ।। देखें मेरा काम , हुई कैसे दीवानी । लेकर उनका नाम , बहाएँ आँखें पानी ।। लगी जिया को ठेस , रहे तबसे वो ऐठे । करती हूँ फरियाद , आज मैं तन्हा बैठे ।। २५/११/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बैठे-बैठे रेत पर , लिखूँ सजन का नाम । आकर वो परदेस से, देखें मेरा काम ।। देखें मेरा काम , हुई कैसे दीवानी । लेकर उनका नाम , बहाएँ
एक इबादत
जय महाराणा प्रताप ,जय हल्दीघाटी, जय जय मेवाड.🙏🙏⚔️⚔️ इस सुबह के इंतजार में कईरयों ने कई रात खोयी है, खैर ,आज कवियों ,लेखको,इतिहासकारों की मेहनत रंग लायी है, हुआ सुनिश्चित परिणाम हमारा,अब मेवा
Vandna Sood Topa
जेहन में इक बरगद है जो जड़ें जमाये बैठा है दिन प्रतिदिन गहन ,बहुत गहन हो रहा है ये इक चिरैया को कैद किये ऐठा है चीथड़े चीथड़े हो गए हैं मन के सब पंख तन मलिन हो रहा है प्रतिदिन उसका विधाता के न्याय पर देखो इक प्रश्नचिन्ह सा लगा है वो नीला अम्बर भी रक्तिम सा समंदर में शिथिल सा खड़ा है जेहन में इक बरगद है जो जड़ें जमाये बैठा है दिन प्रतिदिन गहन ,बहुत गहन हो रहा है ये इक चिरैया को कैद किये ऐठा है चीथड़े चीथड़े हो गए हैं मन के स
Ravindra Singh
'बाजारू औरत' बाजारू औरत जिन्हें हम कहते हैं, उन्हें शौक नहीं बाजार में बैठने का। कुछ मज़बूरियां लेकर आती होंगी उन्हें यहाँ जरूर, वरना किसको शौक है,शरीफों की दुनिया से मुँह ऐठने का। इनके दिलों में झाँक कर देखो कभी, कितना दर्द और तकलीफें छुपाए रहती हैं। किसी के आशिक़ ने छोड़ा इन्हें बदनाम गलियों में, तो कोई जिम्मेदारियों के पैरों तले खुद को दबाये रहती हैं। कोई पूछे उनसे जो बहकाते हैं इन्हें लाने इस दलदल में, किसने हक़ दिया है उन्हें इनके खुशहाल जीवन को मेटने का। बाजारू औरत जिन्हें हम कहते हैं, उन्हें शौक नहीं बाजार में बैठना का। ©Ravindra Singh 'बाजारू औरत' बाजारू औरत जिन्हें हम कहते हैं, उन्हें शौक नहीं बाजार में बैठने का। कुछ मज़बूरियां लेकर आती होंगी उन्हें यहाँ जरूर, वरना किसको
Harshita Dawar
H- ह से हारी नहीं हूं मैं A- ए से एकता की ऐठन में चलती नही हूं मैं R- र से रोती हुई आंखों में रुसवाई नहीं हूं मैं S - स से सहमा सिमटा सुलगता साया नहीं हूं मैं H- ह से हैरान हैरत में हिमाकत नहीं हूं मैं I - अ आई से आईने में अक्स आंखों से ओझल नहीं मैं T - टी ट से टटोलती टेहलती ठहराव नहीं हूं मैं A- अ से अंदर आग से आगारों में लिपटी वहीं हूं मैं हर्षिता हिम की हराई हिरासत में हताश नहीं हूं मै हौसलों में हस्ताक्षर सी हठी वहीं हूं मैं जज़्बात ए हर्षिता H- ह से हारी नहीं हूं मैं A- ए से एकता की ऐठन में चलती नही हूं मैं R- र से रोती हुई आंखों में रुसवाई नहीं हूं मैं S - स से सहमा सिमटा सुलगता
Guru dayal Yadav
१. "आजुक संस्कार" मुक्तक 2017/11/18th Nov. बाते बात मे जे किछ कहैत छन्हि ओ दिखओना अछि, तोड़ि क' एना जायत छथि रिस्ता जेना खिलओना अछि प्रेम करै वालाके की पता संस्कार की होइछै समाज में व्याह लोकके लेल संस्कार, पहिरन आ बिछओना अछि ---------- ग़ज़ल /मैथिली/ "नेह'क स्वप्न" २. एना नहिं हंसियऊ अहां देखक' हमर हिया सिहैर जेतय मुसकि मुसकि तंग करबै जौं नेह'क स्वप्न बिखैर जेतय सिनेह भरल उमंगके फूल, फूलैय' जेना चारूदिश संगीं जे बनि जेबय अहां सांचों हमर भाग्य निखैर जेतय | ~~~~~~~ ३. मैथिली / ग़ज़ल " धोखेबाज" अय दुनियां में कियाे हमरा जका बेकल नहिं रहय, हजारोके फाटल करेज हमरे जका देखल नहिं रहय, टुकड़ा टुकड़ा भ'क तड़पै प्रेममे दिल सबह'क ऐठाम! सुंदर मुखड़ाक लोक निर्दय आ कपटी भेटल नहिं रहय | Guru dayal yadav १. "आजुक संस्कार" मुक्तक 2017/11/18th Nov. बाते बात मे जे किछ कहैत छन्हि ओ दिखओना अछि, तोड़ि क' एना जायत छथि रिस्ता जेना खिलओना
mukesh verma
Karan chauhan
"जिसे गले लगाना था उसे उसने खुद से जुदा कर दिया, हमने इश्क़ मैं उस शक्स को खुदा भी कह दिया, बन सकती थी हमारी बात भी ,पर उसने कोशिश तक ना कि, तुम अपना ख्याल रखना ये कहके, हमे उसने अलविदा कर दिया," "खुद कि छत को छोड़ कर गैरो कि छत पर बैठ गये, तेरे ईन्तजार में हम गमो के बिस्तर पर लेट गये, हमे देख कर उसे खुशी होनी चाहिए थी, चहरा देख के हमारा फ़िर ना जाने क्यु वो ऐठ गये," "उस्कि नजरों का तीर आज तक जहन में है, हकिकत में नहीं वो मेरे वहम में हैं, जान होता इश्क़ गर तो तुम मिलने को तरस जाते, तुम ने पलट कर देखा होता, तो सायद हम गुजर ही जाते," "ये किस कि दुआ हैं जो कमजोर नहीं, बर्बाद होकर भी हम फ़कीर नहीं, जिसे चाहा वो हि दिल्ल दुखाता है, हमराही मिले तुजे वो जिसे तु चाहता है, मज्बुर है खुदा,एसी तेरी तक़दीर नहीं," ©Karan chauhan जिसे गले लगाना था उसे उसने खुद से जुदा कर दिया, हमने इश्क़ मैं उस शक्स को खुदा भी कह दिया, बन सकती थी हमारी बात भी ,पर उसने कोशिश तक ना कि, त