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manoj kumar jha"Manu"
प्रियो भवति अद्वेष्टा द्वेष न करने वाला सबका प्रिय होता है। (स्कन्दपुराण, श्रावण मास महात्म्य) प्रियो भवति अद्वेष्टा द्वेष न करने वाला सबका प्रिय होता है। (स्कन्दपुराण, श्रावण मास महात्म्य)
Banbihari
“ यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् ” जो मनुष्य इश श्लोक का मतलब समझ जाए वो फिर कभी अपने कर्मो से नहीं मुकरे गा और नाही धर्म और मनुष्यता की हानि करेग । परन्तु यह श्लोक को समझने के लिए मनुष्य को मन से , हृदय से , सज्ज होना पड़ेगा , नहीं तो जितना भी समझने का प्रयास करें मनुष्य बस इसे याद कर पाएगा । ©Banbihari यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् भगवद गीता श्लोक #भगवदगीता #BhagvadGita #india #nojo
Bali Inspiration
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानीं भवति भरत अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मनम् श्रीजाम्यहम् Yada Yada Hi Dharmasya Glanir Bhavati Bharata Abhyuthanam Adharmasya Tadaatmaanam Srijaamyaham Meaning: Whenever There Is A Decline In Righteousness And An Increase In Sinfulness, O Arjun, At That Time I Manifest Myself On Earth. Bali Inspiration again prayer for your reincarnation because sin is increasing. Oh! God come on earth again and destroy this sinfulness from roots and established again Ram Rajya 🙏❤️🤗 ©Bali Inspiration यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानीं भवति भरत अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मनम् श्रीजाम्यहम् #RadhaKrishna #jai_shree_ram #God #Love #Ram #nojotoquote
Dr Jayanti Pandey
सबसे मुश्किल होता है अपने बच्चों के स्वार्थी किरदार को स्वीकार करना और फिर उसे नज़र अंदाज़ करना। कुपुत्रो जाएत: क्वचिदपि कुमाता न भवति सब कुछ समझकर, उसे नज़र अंदाज़ करते हैं मां बाप बच्चों से किस स्वार्थ में प्यार करते हैं? कभी धन कभी आ
Divyanshu Pathak
करना तय तुम भूल गए हद मेरे अपमान की! क्यों तुम तोड़ रहे हो यूँ सरहद अभिमान की? ममता समता गुरुता प्रभुता सब कुछ नारी है! बेशर्म ज़रा सी शर्म करो लाज़रखो ईमान की। आदिकाल से ही मेरा मन दंश झेलता आया है। ख़्वाब - ख़यालों से मेरे पुरुष खेलता आया है। मेरा ग़ुनाह है देह मेरी! या स्त्री होना गलती है! जाने क्यों हिस्से में मेरे समझौता ही आया है? जिसके हाथ में शक्ति है मानव के निर्माण की। नारी निर्माता भवति क्या तुमने ये पहचान की? तुम हठ में बस खींच रहे ऐसे अपनी ओर मुझे! या बात समझ में आई है अब मेरे सम्मान की। समझौता कहाँ तक ------------------------- करना तय तुम भूल गए हद मेरे अपमान की! क्यों तुम तोड़ रहे हो यूँ सरहद अभिमान की? ममता समता गुरुता प्र
Divyanshu Pathak
रे मनवा! देख रे मनवा, लोग कैसे लगते हैं जनम-जनम के भूखे, अनन्त कामनाओं वाले मानसिकता पूरी तरह अभावग्रस्त, किसी को भूख धन की, किसी को पुत्र की, किसी को यश की, किसी को सुख की, राग-द्वेष, लोभ मोह, अभिनिवेश और ऊपर से अहंकार रोकता नहीं जो कामना के आवेग को प्रवाह में आवेश के बंधन में डालते
Divyanshu Pathak
जानता है तू क्यों आया है इस नर देह में काटने को कर्म-फल पिछले जन्मों के। जनम भी कितने चौरासी लाख! कैसे काटेगा ?.......☺ भ्रमण कर-करके भू-मण्डल पर जल और नभ में, और इस बीच सृजित करोगे नित नए कर्म भी भोगते रहने को भविष्य में भी। करती है सारे खेल माया महामाया प्रक
Divyanshu Pathak
तुलसी मीठे बचन ते,सुख उपजत चहुँ ओर ! बसीकरन इक मंत्र है,परिहरू बचन कठोर !! :💕☕☕☕😊🍧 👨good morning ji ! 😊💐💐 मन में कामना उठी, बुद्धि ने कहा कि पूरी करना है, प्राण गतिमान हुए। वाक् के एक-एक परमाणु का स्थान नए परमाणु ले