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Sarita Malik Berwal

अंधेरे को चीरती रोशनी
ख़ुद अंधेरा हो जाती है
जब रात के बाद
सवेरे का कोई ज़िक्र ना हो
 ऑंखें मूंदकर अंधा होने का ढोंग
रचाने वाला इंसान 
शायद भूल जाता है
कि प्रकृति जिसे अंधत्व देती है 
उसे आंतरिक संवाद का
सौभाग्य भी देती है
पर वाह रे अभागे मानव!
तू स्वरचित अंधत्व का
क्षणिक आनंद भोगना चाहता है
तो तुझे स्वयं से संवाद का सुख
कभी नहीं मिल पाएगा 
ख़ामोश आवाज़ों को वो कान क्या सुनेंगे 
जो मशीनों के शोर के आदी हो गए हैं!
सच की कहानी वो होंठ क्या कहेंगे
जो गुनेहगारों के फ़रियादी हो गए हैं!

©Sarita Malik Berwal #अंधत्व

KISHAN KORRAM

"जीवन एक प्रेमनगरिया हैं दो ज़ान जिसकी डगरिया हैं व्यापार होता है दिलों का और प्रेम अंधत्व में बिक जाता हैं मोल दो ज़ान का उचित हैं तो ठीक हैं #शायरी #kishan #©Reserved

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"जीवन एक प्रेमनगरिया हैं
दो ज़ान जिसकी डगरिया हैं
व्यापार होता है दिलों का
और प्रेम अंधत्व में बिक जाता हैं
मोल दो ज़ान का उचित हैं तो ठीक हैं
वरन प्रेम तो अंधा होता हैं" "जीवन एक प्रेमनगरिया हैं
दो ज़ान जिसकी डगरिया हैं
व्यापार होता है दिलों का
और प्रेम अंधत्व में बिक जाता हैं
मोल दो ज़ान का उचित हैं तो ठीक हैं

शब्दिता

#कैसे_रहते_हैं_हम स्वयं को हम इस तरह सुरक्षित कर पाते हैं भ्रष्ट मानसिकता के बीच रहते हुए भी स्वयं की विचारधारा को गंगा सी पवित्र कर पाते ह

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#कैसे_रहते_हैं_हम
    अनुशीर्षक पढ़ें #कैसे_रहते_हैं_हम

स्वयं को हम इस तरह सुरक्षित कर पाते हैं
भ्रष्ट मानसिकता के बीच रहते हुए भी स्वयं की विचारधारा को गंगा सी पवित्र कर पाते ह

✍️ लिकेश ठाकुर

दहशत की मंडी में कुछ लोग व्यर्थ ही चले आते हैं, खुद तो जख्मी होते हैं औरों को जख्म दे जाते हैं। घाव में मरहमपट्टी के आड़ में बेबसी दिखा जाते #nojotopoetry #UNITY #विचार

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दहशत की मंडी में कुछ लोग व्यर्थ ही चले आते हैं,
खुद तो जख्मी होते हैं औरों को जख्म दे जाते हैं।
घाव में मरहमपट्टी के आड़ में बेबसी दिखा जाते हैं,
ख़ुद है कितने गहरे पानी में ये हमराज बता जाते हैं।
मजहबी अंधत्व का ऐनक कायरता से लगा जाते हैं,
अपना ईमान समझ थूकने में कुछ ग़द्दारी दिखा जाते हैं।
मूरत एक हैं ईश्वर खुदा की कोई इंसानियत जगा जाते हैं,
असलम राजू एक सच्चे दोस्त यहाँ दोस्ती निभा जाते हैं।
बैर भाव के कड़वे रस पर कोई अमृत छिड़क जाते हैं,
हम सब एक भारत के वासी देशभक्ति दिखा जाते हैं।।
✍️लिकेश ठाकुर दहशत की मंडी में कुछ लोग व्यर्थ ही चले आते हैं,
खुद तो जख्मी होते हैं औरों को जख्म दे जाते हैं।
घाव में मरहमपट्टी के आड़ में बेबसी दिखा जाते

MANJEET SINGH THAKRAL

देश के इतिहास में ये पहला ऐसा दौर है... जब रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार की बात करने वालों को "#देशद्रोही" कहा जाने लगा है। अब देश की जनता को #विचार #जयहिंद #जयभारत #LostInCrowd

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देश के इतिहास में ये पहला ऐसा दौर है... जब रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार की बात करने वालों को "#देशद्रोही" कहा जाने लगा है। 
अब देश की जनता को तय करना है कि "देशद्रोही" कौन है वो जो आपके के हको के लिए लड़ रहे है या वो जो देश को धर्म - जाति, नफरत के द्वारा बांट देना चाहते है और अंधत्व धारण करवा कर चंद पैसे वाले रसूखदार लोगो का गुलाम बना देना चाहते है।
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका इस पर भी लगाई जानी चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को ये अधिकार किसने दिया कि वो देश के किसी भी नागरिक की देशभक्ति और निष्ठा पर बिना वजह उंगली उठाये (वो भी केवल इसलिए क्योंकि वो सत्ता के गलत फैसलों और आम नागरिक के हितों के लिए आवाज़ उठा रहा है) और उसे "देशद्रोही" , "पाकिस्तानी", "खालिस्तानी", "आतंकवादी", "नक्सली" आदि जैसे शब्दों से संबोथित करे।।

#जयहिंद #जयभारत।।

©MANJEET SINGH THAKRAL देश के इतिहास में ये पहला ऐसा दौर है... जब रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार की बात करने वालों को "#देशद्रोही" कहा जाने लगा है। 
अब देश की जनता को

Sachin Ratnaparkhe

हम भी उधर चले यह कारवां जिधर चले, अंधत्व में हो विलीन पता नहीं किधर चले। क्या अजीब दृश्य है जो राह मिले वहां चले, अंत क्या है पता नहीं फिर

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हिंदी ग़ज़ल:- "अनिश्चित राह के अनंत राही"

(कैप्शन में पढ़े.......)

यह मेरा सौभाग्य एवं संयोग है कि हिंदी ग़ज़ल के प्रणेता एवं मेरे प्रिय कवि में से एक दुष्यंत कुमार के जन्मदिन पर यह हिन्दी ग़ज़ल की रचना कर सका। हम भी उधर चले यह कारवां जिधर चले,
अंधत्व में हो विलीन पता नहीं किधर चले।

क्या अजीब दृश्य है जो राह मिले वहां चले,
अंत क्या है पता नहीं फिर
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