शहर के की ऊंची दीवारें किसी क़िलेबंदी से कम नहीं लगती। निश्चित नहीं है कि ये परकोटा उस काले, सड़ांध बहाते, मैले गाद को रिहायशों से दूर रखने क #Poetry#City#thought#Hindi#writing#विचार
क़ौम की फिक्र अब मुझे सोने ही कहाँ देती है
बढ़ती हुई बेबसी अब मुझे रोने ही कहाँ देती है
लिख रहा हूं कि शायद क़ौम मेरी जाग जाए
पर क़ौम की बेहि #nojotophoto#इलाही