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Neelam bhola
मेरी ही डाली को काट के तूने मेरा हार बनाया है, हे इन्सा तू मानव नहीं, दानव का साया है, मेरे ही कारण हैं तेरा सारा व्यक्तित्व, लंबी है मेरी ये गाथा,है नहीं संक्षिप्त, तेरी कितनी पीढ़ियों को किया मैंने बड़ा है, और आज तू मेरे अस्तित्व के पीछे पड़ा है, मैं ना आया कभी भी रोकने मानुष तेरी गति, क्षीण मुझको कर दिया,कर दी है मेरी दुर्गति, मेरे बिना निरअर्थ है तेरी ये सारी उन्नति, रुक जरा,सुन कभी मेरे हृदय का क्रंदन, मेरे बिना मुश्किल है तेरी आपदा का प्रबंधन, मैं अकेला ही नहीं,सारी वृक्ष जाति रो रही, आ जरा तू सुन ले,मेरे साथ इनका भी रुदन, माना कि तुझको चाह है गगनचुंबी मकानों की, लालच की तेरी मंशा और जगमगाती दुकानों की, जानी नहीं अंतर्दशा तूने सभी खलिहानों की, अब भी समय है,इस भूल को ले तू सुधार, कर ले तू निश्चय,अब नहीं ये परिहार, अदण्डित रह सकेगा तभी तेरा ये संसार!!! -नीलम भोला वृक्ष की अन्तर्दशा
HARSH369
हमारी राह मे बाधा कोई दुसरा नही बनता हम खुद अपने आप बनते है, हम हि जिम्मेदार होते है अपनी कमियो के आलस ,क्रोध,काम की वासना, किसी दुसरे कि प्रगती से सीखने कि बजाय चिड़ना.. यहि वो कारण होते है जो हमारे लक्ष मे बाधा बनते है अत हमे व्रक्ष कि भाती फल भी देने है छाया भी और आवश्यकता पढ़ने पर लकड़ी भी..!! ©SHI.V.A 369 #वृक्ष की छाया
Arvind Singh
वो बीज जिसे किसी ने सीचा था अपने प्रेम के करुणा जल से बृक्ष बन अब लुटा रहा प्रेम अपने मीठे मिठे फल से। छाया देकर उसने कितनो को पल दो पल की राहत दी है टिकी है नजरें किसी की आहट में जिसके लिए उसने इतनी मेहनत की है। चैन लुटा खुद बैचैन खड़ा है की कब उसको वो छाया देगा करुणा रस से सीच गया उसे जो वो कब उसके जीवनरस का पान करेगा।। #gif वृक्ष की अभिलाषा #अरविंद
Sandeep Lucky Guru
एक दिन सहसा सूरज निकला अरेक्षितिज पर नहीं नगर के चौकः धूप बरसी पर अन्तरिक्ष से नहीं, फटी मिट्टी से । छायाएँ मानव -जन की दिशाहीन सब ओर पडी़ -वह सूरज नहीं उगा था पुरब में, वह बरसा सहसा एक वृक्ष की हत्या
Sandeep Lucky Guru
बीचों-बीच नगर केः पहियों के ज्यों अरे टूट कर बिखर गये हों दसों दिशा में। कुछ क्षण का वह उदय -अस्त! केवल एक प्रज्वलित क्षण की दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी । फिर? छायाएँ मानव जन की नहीं मिटीं लम्बी हो-हो करः मानव.ही सब भाप हो.गये। छायाएँ तो अभी लिखी हौं एक वृक्ष की हत्य
Stuti Choudhary
संस्कृति में उपस्थिति से साहित्य और कलाओं तक फल , फूल औषधियों से छाया की प्राप्ति तक । वह आंतरिक शांति का अनुभव वह पूजा - स्थल का वयवहार वह लोक - देवता का मूर्ति स्थल ।। किसी वृक्ष में बाँधे धागे कुछ मंगल योग्य जीवन तक । वह कविता -कथा के साधन बने घर , आंगन कतारों तक ।। आज जीवन यात्रा की समाप्ति पर कलेजा चिरते काटे गये । अद्भुत यात्रा की समाप्ति तक ।। वृक्ष की जीवन यात्रा ।