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सुसि ग़ाफ़िल
'व्याकुलता' का सबसे गहरा कुआँ सिर्फ "मन" है | 'व्याकुलता' का सबसे गहरा कुआँ सिर्फ "मन" है |
Anuradha Priyadarshini
देखो फिर महकी अमराई कोयलिया भी है आई आमवा के डाली बौराई है जैसे वो मुझको ही बुलाई ©Anuradha Priyadarshini #अमराई
PRASAD
चूल्हा मिट्टी का मिट्टी तालाब की तालाब ठाकुर का । भूख रोटी की रोटी बाजरे की बाजरा खेत का खेत ठाकुर का । बैल ठाकुर का हल ठाकुर का हल की मूठ पर हथेली अपनी फ़सल ठाकुर की । कुआँ ठाकुर का पानी ठाकुर का खेत-खलिहान ठाकुर के गली-मुहल्ले ठाकुर के फिर अपना क्या ? गाँव ? शहर ? देश ? ©PRASAD #BehtiHawaa ठाकुर का कुआँ ।। ओमप्रकाश वाल्मीकि की
Amar'Arman' Baghauli hardoi UP
व्यक्तिगत व्यवहार या बिरादारी को देखकर वोट देकर देश की बर्बादी का हिस्सा न बने।इसलिये सोच समझ कर ही वोट करें। अमर'अरमान' ©Amar'Arman' #अमराई #vacation
Jitendra Kumar Som
जो कुआँ खोदता है वही गिरता है एक बादशाह के महल की चहारदीवारी के अन्दर एक वजीर और एक कारिंदा रहता था। वजीर और कारिंदे के पुत्र में गहरी दोस्ती थी। हम उम्र होने के कारण दोनों एक साथ पढ़ते, खेलते थे। वजीर के कहने पर कारिंदे का लड़का उसके सब काम कर देता था। वह वजीर को चाचा कहकर पुकारता था। बादशाह कारिंदे के पुत्र को बहुत प्रेम करता था। बादशाह के कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कारिंदे के पुत्र को अपने पुत्र के समान ही समझते थे। बादशाह ने उसे महल और दरबार में आने-जाने की पूरी छूट दे रखी थी। कारिंदे के पुत्र के प्रति बादशाह का प्रेम देखकर वजीर को बहुत ईर्ष्या होती थी। वजीर चाहता था कि बादशाह केवल उसके पुत्र को ही प्रेम करें। यदि बादशाह ने उसके पुत्र को गोद ले लिया तो बादशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ही राजगद्दी पर बैठेगा। वजीर की इच्छा के विपरीत बादशाह का प्रेम कारिंदे के पुत्र के प्रति बढ़ता ही गया। बादशाह वजीर के पुत्र को जरा भी पसंद नहीं करते थे। इसलिए वजीर कारिंदे और उसके पुत्र से मन-ही-मन ईर्ष्या करने लगा। वजीर ने कारिंदे के पुत्र को मारने का निश्चय किया। वजीर ने कारिंदे के पुत्र को रुमाल और पैसे देकर गोश्त लाने के लिए कहा। वजीर ने कारिंदे के पुत्र को अच्छी तरह समझाया कि गोश्त बाजार में गली के नुक्कड़ वाली दुकान से ही लाना। कारिंदे का बेटा रुमाल और पैसे लेकर बाजार की ओर चल दिया। उसने देखा कि उसका मित्र वजीर का बेटा भी वहाँ पर खेल रहा है। वजीर के लड़के ने कारिंदे के पुत्र से कहा कि तुम मेरा दांव खेलो, मैं जाकर गोश्त ले आऊँगा। कारिंदे के पुत्र ने उसे पैसे और रुमाल देकर दुकान का पता बता दिया। इस प्रकार वजीर का पुत्र गोश्त लेने चला गया और कारिंदे का पुत्र दांव खेलने लगा। वजीर के पुत्र ने दुकानदार को पैसे और रुमाल देकर कहा कि इसमें गोश्त बाँध दो। कसाई ने रुमाल में बने हुए निशान को पहचान लिया। इस रुमाल को वजीर ने कसाई को दिखाते हुए कहा था कि जो लड़का इस रुमाल को लेकर गोश्त लेने आए तुम उसे मौत के घाट उतार देना। कारिंदे के पुत्र को मारने के लिए वजीर ने कसाई को पैसे भी दिए थे। कसाई ने अन्दर भट्ठी जलाकर सारी तैयारी पहले ही कर ली थी। कसाई ने रुमाल और पैसे लेकर उस लड़के को वहाँ बैठने के लिए कहा और स्वयं अन्दर गोश्त लेने चला गया। तभी वहाँ पर लड़का भी चला गया। कसाई ने तुरंत उस लड़के को उठाकर जलती हुई भट्ठी में झोंक दिया। कारिंदे का पुत्र अपना दांव खेलकर अपने घर जा रहा था कि उसे रास्ते में वजीर मिल गया। कारिंदे के पुत्र ने पूछा―‘चाचा, भैया गोश्त ले आया?’ इतना सुनकर वजीर के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। तभी कारिंदे के पुत्र ने कहा ―'चाचा भैया ने मुझसे रुमाल और पैसे ले लिए थे और कहा कि तुम मेरा दांव खेल लो, मैं गोश्त लेकर घर चला जाऊँगा। मैंने भैया को दुकान का पता भी बता दिया था।' वजीर की आँखों के आगे अँधेरा छा गया और उसके मुख से एक शब्द भी नहीं निकला। अपने पुत्र को याद करता हुआ वजीर अपने घर चला गया। वजीर कह रहा था कि जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है उसमें स्वयं गिरता है। शिक्षा :- इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। साभार:- 'कहावतों की कहानियाँ' ©Jitendra Kumar Som #navratri जो कुआँ खोदता है वही गिरता है
Neelam bhola
बस करो!अब बहुत हुआ, बंद करो ये अंधा कुआँ, जहाँ बेटी दफनाई जाती है,कोई चीख नहीं सुन पाती है, बंद करो ये अंधेरी खार, सुन लो जरा उसकी चीख पुकार, दुनिया किस मानवता की बात करती हैं, सदियां गुजरी मानव आए, बेटियां आज तलक डरती हैं, डरती हैं अंधेरे से,डरती हैं किसी के साए से, डरती हैं इस काली रात से,बेवजह हर बात से, और ये डर क्यों है?सोचा है कभी, बेटी की मनोदशा को समझा है कभी, किसी को हक नहीं खेले उसकी अस्मत से, खूनी भेड़िये अनजान हैं उस बेटी की किस्मत से, समाज की प्रताड़ना और वो अकेलापन, काली स्याही से लिख देते हो तुम उसका जीवन, नहीं तुम मानव कहलाने लायक नहीं, मरना तुम्हें था,तुम्हें जीने का कोई हक नहीं, ये मोमबत्ती,दिए,चिराग जलाते हो क्यों?, सड़क पे उतरते हो बेटों को नहीं सिखाते हो क्यों?, बेटा बेटी के इस फर्क को नहीं मिटाते हो क्यों?, अंधी है सरकार,राजा सब, नया कानून कोई नहीं लाते हो क्यों? ©Neelam bhola अंधा कुआँ
Aprasil mishra
जीवन का उत्कर्ष कहाँ है, सुधा कहाँ है स्वर्ग कहाँ है? ढूढ़ रहा हूँ पग-पग भू पर, प्रेम दीप्त संसर्ग कहाँ है?? (अनुशीर्षक अवलोकनीय) **************** जीवन का उत्कर्ष कहाँ है, सुधा कहाँ है स्वर्ग कहाँ है? ढूढ़ रहा हूँ पग-पग भू पर, प्रेम दीप्त संसर्ग कहाँ है?? मानवता का अर्