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Sunil Kumar Maurya Bekhud
इक परी सलोनी नन्ही सी आई थी मेरे आंगन में देकर खुशियों को बेशुमार रब ने डाला था दामन में नाज़ुक नाज़ुक से हाथ पैर मुस्कान लबों पर प्यारी सी मन मोह सभी का लेती थी इतनी प्यारी किलकारी थी मन हर्षित था आनंदित था लक्ष्मी आई थी मधुबन में हम उसको पाकर धन्य हुए प्रभु की रचना अलबेली थी चिड़ियों सा कलरव मधुर मधुर करती गोदी में खेली थी हे प्रभु उसको देना न कभी कोई भी मुसीबत जीवन में ©Sunil Kumar Maurya Bekhud # पुत्री के जन्मदिन पर कविता
शिव झा
26 जुलाई/जन्म-दिवस *कन्नड़ साहित्य के साधक : डा. भैरप्पा* अपने उपन्यासों की विशिष्ट शैली एवं कथानक के कारण बहुचर्चित कन्नड़ साहित्यकार डा. एस.एल. भैरप्पा का जन्म 26 जुलाई, 1931 को कर्नाटक के हासन जिले के सन्तेशिवर ग्राम के एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ। आठ वर्ष की अवस्था में एक घण्टे के अन्तराल में ही इनकी बहिन एवं बड़े भाई की प्लेग से मृत्यु हो गयी। कुछ वर्ष बाद ममतामयी माँ तथा छोटा भाई भी चल बसा। इस प्रकार भैरप्पा का कई बार मृत्यु से साक्षात्कार हुआ। इनके पिता कुछ नहीं करते थे। अतः इन्हें प्रायः भूखा सोना पड़ता था। अब इनकी देखभाल का जिम्मा इनके मामा पर था; पर वे अत्यन्त क्रूर एवं स्वार्थी थे। अध्ययन में रुचि के कारण भैरप्पा ने कभी अगरबत्ती बेचकर, कभी सिनेमा में द्वारपाल का काम कर, तो कभी दुकानों में हिसाब लिखकर पढ़ाई की। एक बार उन्होंने मुम्बई जाने का निर्णय लिया; पर पैसे न होने के कारण वे पैदल ही पटरी के किनारे-किनारे चल दिये। रास्ते में भीख माँग कर पेट भरा। कभी नाटक कम्पनी में तो कभी द्वारपाल, बग्घी चालक, रसोइया आदि बनकर मुम्बई में टिकने का प्रयास किया; पर भाग्य ने साथ नहीं दिया। अतः एक साधु के साथ गाँव लौट आये और फिर से पढ़ाई चालू कर दी। चन्नरायपट्टण में प्राथमिक शिक्षा के बाद भैरप्पा ने मैसूर से एम.ए. किया। जीवन के थपेड़ों ने इन्हें दर्शन शास्त्र की ओर आकृष्ट किया। मित्रों ने इन्हें कहा कि इससे रोटी नहीं मिलेगी; पर इन्होंने बी.ए एवं एम.ए दर्शन शास्त्र में स्वर्ण पदक लेकर किया। इसके बाद ‘सत्य और सौन्दर्य’ विषय पर बड़ोदरा के सयाजीराव विश्वविद्यालय से इन्हें पी-एच.डी की उपाधि मिली। 1958 में इनकी अध्यापन यात्रा कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली होती हुई मैसूर में पूरी हुई। 1991 में डा. भैरप्पा अवकाश लेकर पूर्णतः लेखन के प्रति समर्पित हो गये। इनका पहला उपन्यास ‘धर्मश्री’ 1961 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद यह क्रम चल पड़ा। सार्थ, पर्व, वंशवृक्ष, तन्तु आदि के बाद2007 में इनका 21वाँ उपन्यास ‘आवरण’ छपा। ‘उल्लंघन’ और ‘गृहभंग’ का अंग्रेजी एवं भारत की14 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। डा. भैरप्पा के उपन्यासों के कथानक से पाठक का मन अपने धर्म एवं संस्कृति की ओर आकृष्ट होता है। इनके अनेक उपन्यासों पर नाटक और फिल्में भी बनी हैं। इनकी सेवाओं को देखते हुए कर्नाटक साहित्य अकादमी, केन्द्रीय साहित्य अकादमी तथा भारतीय भाषा परिषद, कुमार सभा पुस्तकालय जैसी संस्थाओं ने इन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया। डा. भैरप्पा अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे तथा उन्होंने अमरीका में आयोजित कन्नड़ साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। कला एवं शास्त्रीय संगीत में रुचि के कारण उन्होंने अनेक अन्तरराष्ट्रीय संग्रहालयों का भ्रमण कर उन्हें महत्वपूर्ण सुझाव दिये। डा. भैरप्पा ने यूरोप,अमरीका, कनाडा, चीन, जापान, मध्य पूर्व तथा दक्षिण एशियाई देशों की यात्रा की है। प्रकृति प्रेमी होने के कारण उन्होंने हिमालय के साथ-साथ अण्टार्कटिका, आल्प्स (स्विटरजरलैण्ड), राकीज (अमरीका) तथा फूजीयामा (जापान) जैसी दुर्गम पर्वतमालाओं का व्यापक भ्रमण किया। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह डा. भैरप्पा को स्वस्थ रखे, जिससे वे साहित्य के माध्यम से देश और धर्म की सेवा करते रहें। (संदर्भ : कुमारसभा पुस्तकालय पत्रक) #जीवनी #जन्मदिन #जन्मदिवस #इतिहास #भारत #InspireThroughWriting
KAVI सaगaर
जिस की ग़ज़लों से पता चला की में नशे में मेरा इतबार मत करो जिस ने बताया कि कई धूप तो कई छाया जिस ने चौदवीं का चाँद बताया जिस ने पानी की किस्ती के बारे मे समझाया जिस ने अपनी गज़लों का से जग जीता जन्मदिन की शुभकामनाएं
Ekta Singh
महफ़िलों में रौनक आ जाती है उनके आने से। शब्द मुस्कुरा जाते हैं उनके कलम उठाने से। चिरागों को जलाने का हुनर रखती हैं वो, सभी राज खुल जाते हैं उनके गीत गाने से। ©Ekta Singh जन्मदिन की शुभकामनाएं
Brandavan Bairagi "krishna"
देखा एक ख़्वाब, रेखा जी को जन्मदिन की ढेर बधाई शुभकामनाये। 💐🎂💐 जन्मदिन की बधाई।
Archana Singh
बे मौसम भी कोयल कुक ने लगी जब से आयी मेरी बगिया में.... हर रुत सावन सी लगी.... ©Archana Singh जन्मदिन की शुभकामनायें.