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Geetkar Niraj
Akhilesh Varshney
इस परीक्षित को बचाओ सृष्टि को फिर से सजाओ, व्यष्टि को सुन्दर बनाओ सौंध कर पर्यावरण को, विश्व को नन्दन बनाओ । जल हुआ दूषित -प्रदूषित, वायु विष-सरिता बनी है ध्वनि-प्रदूषण भी विकारी राग की ही सनसनी है। बन्द कर ताण्डव प्रलय का, मलय-घ्वनि में गुनगुनाओ सौंध कर पर्यावरण को, विश्व को नन्दन बनाओ। धूल-धुआँ-धूसरित जगतीतले पाला पड़ा है होश में मानव नहीं, बस बन गया चिकना घड़ा है। मद-नशा काफूर करके, जिन्दगी अनमोल बचाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। प्रकृति देवी प्राण-रक्षक, पर बना दी जीव भक्षक सन्तुलन ऐसा बिगाड़ा, बन गई है वही तक्षक । जान की बाजी लगी है, इस परीक्षित को बचाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। नगर बदले हैं नरक में, गर्क मे पावन नदी हैं अश्रुपूरित देवता हैं देवियां भी रो रही हैं हवन- सामिग्री, दही, घी को न यूँ कूड़ा बनाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। वृक्ष, जल, थल, नभ पुकारें, करुण- क्रन्दन कर निहारें सांस के उज्ज्वल प्रणेता, देख दुर्गति हैं किनारे। देव-भूमि भरें न आहें, रक्ष-संस्कृति को मिटाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। श्वेत शतदल की पंखुरियाँ, तोड़ती भौतिक अँगुरियाँ क्षीण काया हो गई है, शुष्क लकड़ी सी पसुरियाँ। तरु बबूलों के रुपाये, वन गुलाबों के उगाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। ©Sirf Aapka #chaand पर्यावरण दिवस पर विशेष।।
Ek villain
पर्यावरण प्रदूषण विश्वव्यापी समस्या है जो दर्द होने का आधुनिक सभ्यता जनित उपभोक्तावादी की देन है आईपीसी यानी इंटर गवर्नमेंट पैनल ऑफ क्वालिटी चेंज की हालांकि जारी रिपोर्ट में इस समस्या समस्या की गंभीरता को दर्शाते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रति सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है पिछले दो दशक शताब्दी में प्राकृतिक संपदा का जितना दोहन हुआ है और वातावरण को जितना विषय पर किया जा चुका है उतना ही 2000 वर्ष में भी नहीं हुआ है पूरे विश्व आज इस प्रदूषण की समस्या को दूर कर दी हालांकि यह समस्या मनुष्य स्वयं की करने के फल है लिहाजा इसका निदान उसी से ही करना होगा इसके समाधान की दिशा में बैठे तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं तमाम नियम और कानून बनाए जाते हैं परंतु इन्हें व्यवहार में कम ही लिया जाता है ऐसे में पर एक अर्थशास्त्री और लेखक और अपने अनुभव के आधार पर कई उपाय भी सुझाए हैं जिन्हें आसानी से उपयोग में लाए जा सकते हैं इसके लिए तमाम धार्मिक परंपरा है जिन्हें निरंतर बढ़ती जा रही है इस संकट के साधनों के लिए प्रयास पिछली सदी के उत्तरार्ध में ही शुरू किए गए थे परंतु इन विभिन्न देशों में अपने अपने हितों को साधने के क्रम में इस प्रकार पर या नहीं दिया गया जिसकी पुस्तक में जिक्र है लेखक ने प्रदूषण की सामग्री कारणों की पहचान करते हुए दर्शाने का प्रयास किया है ©Ek villain #पर्यावरण प्रदूषण पर दृष्टि #Holi
Ek villain
देश के 132 शहर में पार्टिकुलेट मैटर के स्तर पर 20 से 30% तक काम करने के लिए किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम एनसीएपी के 3 साल के परिणाम निराशा करने वाले हैं केंद्रीय परिणाम मंत्रालय द्वारा जारी हालांकि आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी स्तर पर यह तो बहुत कम पर करती हुई है या हुई है नहीं आती कहां से 9 घंटे में इंटर्न हां मैंने ध्यान नहीं दिया जाता शहरों में पीएम टो 5:00 पीएम 10 के स्तर पर गिरावट नाम मौत हो गई जबकि काफी शहरों में वृद्धि देखने को मिली 102 शहरों में वायु प्रदूषण नियंत्रण किया था बाद में इसमें 30 शहर और जोड़े गए इन सभी 132 शहरों को लाना अपार्टमेंट शहर कहा जाता है क्योंकि इन्होंने एन एस पी के तहत 2011 15 की अवधि में जो राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं किया कोई अवेटेड और एयर क्वालिटी मीटर सिस्टम सी एच यू एस के प्रांत वायु गुणवत्ता नागरिक आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि जिन शहरों में 2019 और 21 के पी एम और पीएम 10 के स्तर में गिरावट दर्ज की गई है गाजियाबाद नोएडा दिल्ली मुरादाबाद पीएम वाराणसी 2019 में पांचवी रायगढ़ से 2021 में 37 लाइन पर आ गया सूची में शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में से चार उत्तर प्रदेश जबकि तीन शहर बंगाल के थे आज शहर गाजियाबाद दिल्ली नोएडा बारिश में मुरादाबाद जोधपुर मंडी गोविंदगढ़ और हावड़ा pm10 के लिहाज से सबसे प्रदूषित शहर है ©Ek villain #पिछले पायदान पर पर्यावरण #Nofear
Aakash Dwivedi
सुहावना मौसम है आया । झोली भर कर खुशियां लाया।। धरा मनहर सुगन्ध महकावे चहूं दिशी गगन साज सजावे। मन्द पवन मन को अति भावे वो ऋतु राज वसन्त कहलावे।। पेड़ों पर छाई हरियाली नए नए शाक सजाये डाली। दृश्य मनोहर मन हर्षावे पतझड़ बीत वसंत जब आवे।। बाग बगीचे, वन मुस्काए फसलें खेतों में लहराएं। अद्भुत, अदम्य और अनन्त है सबसे न्यारा यह वसन्त है।। गगन चूम जब कोयल आवे अपने मीठे बोल सुनावे। मन पुलकित, हृदय प्रसन्न है सबका प्यारा यह वसन्त है।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi #कविता #विचार #शायरी #पर्यावरण #वसंत #AakashDwivedi #OneSeason
Amit Nayan
*पर्यावरण को बचाने की जद्दोजहद* पर्यावरण दिवस पर विशेष @अमित नयन पर्यावरण के प्रति सजग रुप से जागरुकता एवं राजनीतिक चेतना जागृत करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पुरे विश्व में मनाया जाता है। इतिहास की मानें तो, सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के प्रति चिंता जताने के उपरांत स्वीडन की राजधानी स्टाॅकहोम में एक सम्मेलन कर 5 जून 1973 को पर्यावरण दिवस का शंखनाद किया गया, जिसमें विश्व के 119 देशों ने शिरकत की।इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का उदय हुआ तत पश्चात प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में पुरी दुनिया में इसका फैलाव हुआ।जिसका उद्देश्य समस्त मानव जाति को विभिन्न रूप से होने वाले प्रदुषण की समस्याओं से अवगत कराना था। प्रमुख पर्यावरण मुद्दे जैसे जंगलों की वृहद स्तर पर कटाई, ग्लोबल वार्मिंग, खाद्य पदार्थों की बर्बादी तथा नुकसान इत्यादि से बचाव तथा भविष्य के मद्देनजर संभावित खतरों से आगाह करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने की प्रथा आरंभ हुई। पर्यावरण को बचाने की कानूनी रूप से कवायद सन 1986 को 19 नंबर के दिन शुरू हुई। जिसमें वायु,जल,भूमि के साथ साथ मानव , पेड़-पौधे तथा अन्य जीवित पदार्थों को प्रमुख रूप से शामिल किया गया। पर्यावरण संतुलन जैसे बिगड़ने लगता है, उसके भयावह परिणाम पुरी दुनिया को एक बार में हीं झकझोर देता है। उदहारण के तौर देखें तो जब पृथ्वी पर बोझ बढ़ता तो भूकंप जैसी त्रासदी हमारे सामने दस्तक देता है।यह एक भयंकर प्राकृतिक आपदा है। पिछले दिनों एक ऐसी घटना केरल के मल्लपुरम के गलियारे में घटी जो मानवता के मूल्यों एवं संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है? जहां धरती का विशालतम सह सबसे ताकतवर जानवर एक भुखी हथिनी को क्रुर एवं असंवेदनशील मानसिकता वाले कुछ लोगों ने अनानास में पटाखे भरकर उसे खाना का औफर दिया। जिसे खाने के दौरान उस हथिनी के मुंह एवं जीभ बुरी तरह जख्मों से भर जाता है,तब वो छटपटाते हुए नदी की ओर भागती है। नदी में जाने के कुछ देर बाद वह हथिनी दम तोड़ देती है।यह घटना मानवता को शर्मशार कर रही । किस निर्ममता के साथ उनलोगों ने एक जीव की हत्या की?ये सोच कर रूह कांप उठती है।यह पहले ऐसी घटना नहीं है जो मानवता को शर्मशार कर रही है, वैसी अनेक घटनाएं दैनिक रुप से होती है। प्रर्यावरण के रक्षक हीं जब भक्षक बन जाएं तो प्रकृति क्रुर रूप धारण करेगी हीं। प्रर्यावरण को बचाने के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की कवायद है। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह संभव नहीं दिखता। प्रर्यावरण को बचाने के लिए कितने बेजुबानों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है।इसका उदाहरण है अमेजन के जंगल का जलना, करोना का फैलना, गर्भवती हथिनी की निर्मम तरीके से हत्या। अतः अब हमें प्राकृतिक आपदा से सावधान होने की आवश्यकता है। सम्मिलित रूप से हमारा प्रयास होना चाहिए कि रचनात्मक तरीके से आने वाले पीढ़ी को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने का एक छोटा सा प्रयास हो, ताकि वे प्राकृतिक आपदा का दंश न झेल सके , साथ ही बेजूबानों को अपनी प्राणों की आहुति ऐसे न देनी पड़े। चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा के पिछले दिनों गुजर जाने से पर्यावरण संरक्षक का एक दीप अस्त हो गया। लेकिन जाते-जाते उन्होंने हमारे पर्यावरण के प्रति सभी की जवाबदेही को अपने कामों के उदाहरण द्वारा तय किया, चिपको आंदोलन के प्रणेता को क्रांतिकारी इस्तकबाल ✊ वर्तमान परिपेक्ष में हमें वृक्षारोपण की अनिवार्यता को स्विकार करते हुए हमें अपने कदमों को आगे बढाना है ,तभी पूर्ण रूप हमारे पर्यावरण की साख बच सकती है। बिहार@* ©Amit Nayan #विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष #PrideMonth