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शुभेंद्र सिंह 'संन्यासी'

शुभेंद्र सन्यासी's Stories in 2018 #Throwback2018 शुभेंद्र सन्यासी की कहानियाँ 2018 में #लम्हें2018 2018 #Nojoto2018

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JK बड़ोदिया

सन्यासी #Dussehra2020

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आसान नहीं होता है धर्म कर्म  ओर भाव में अनुरक्त होना
आसान नहीं होता किसी का भक्त होना
फल की कामना करना आसान है लेकिन 
आसान नहीं होता है दुनिया से विरक्त होना 
# JK Badodiya

©JK बड़ोदिया सन्यासी

#Dussehra2020

Deepanshi Srivastava

सन्यासी #BuddhaPurnima2021

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वो सन्यासी क्या सन्यासी ,जो बिन चखे तजे संसार को ,
व्यक्ति वही है भक्त असल जो इसमें रम कर भी पाले राम को..।।🙏🏻

©Deepanshi Srivastava सन्यासी

#BuddhaPurnima2021

VaibhavSingh

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Parasram Arora

सांसारिक बनाम सन्यासी #विचार

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best  out of  the waste......
संसार  के समुचित waste (लोभ.. मोह घृणा
हिंसा क्रोध ) क़ो जलाकर  "सन्यासी " best(प्रेम करुंणा अहिंसा प्रमुदिता )  
बनाने में सफल हो जाता है  जबकि  "सांसारिक " वर्ततियों के लोग  ताउम्र वासनाओं और व्रतियों के गुलाम बने रहते है

©Parasram Arora सांसारिक बनाम सन्यासी

जोगन!

#मन सन्यासी #Journey #कविता

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Parasram Arora

सन्यासी और संसारी #विचार

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अगर तुम  यह जानकर  जी रहे हो
कि यह सब एक दिन छिन जाएगा और इस छिनने में तुम्हे कोई पीड़ा होने की सम्भावना  नही है.. तब
तुम  सन्यासी हो या वैरागी हो

अगर तुम  जंगल भाग गए और एक लंगोटी
रखली पास और.....   एक झोपडी  बना ली
और तुम्हे डर लगता है  कि अगर  ये  छिनेगी  तो
मैं इसे छोड़ न पाऊंगा..... और ज़ब मौत आकर लंगोटी  मांगेगी तो मेरे हाथ सरलता से खुलेंगे नही तो तुम
वहा भी संसारी हो....

©Parasram Arora सन्यासी और संसारी

महाराजा पूर्वोदयउदित जैन

 #वहरहीस#सन्यासी#हो गया

Mishra Kaushal

तन काशी तकता है,
जब सांसे प्यासी हो जाती है ....
     होठो पे गंगा बहती है,
     आत्मा सन्यासी हो जाती है!! #सन्यासी #काशी #शिव
#misraword #misralove

Death_Lover

 भज मन! चरण-कँवल अविनाशी।

 जेताई दीसै धरनि गगन विच, तेता सब उठ जासी।।

 इस देहि का गरब ना करणा, माटी में मिल जासी।। 

  यों संसार चहर की बाजी, साझ पड्या उठ जासी।। 

 कहा भयो हैं भगवा पहरया, घर तज भये सन्यासी। 

 जोगी होई जुगति नहि जांनि, उलटी जन्म फिर आसी।।

 अरज करू अबला कर जोरे, स्याम! तुम्हारी दासी। 

मीराँ के प्रभु गिरधर नागर! काटो जम की फांसी।।

अर्थ

मीराबाई इस पद में कहती हैं कि हे मन तू कभी नष्ट ना होने वाले भगवान् के चरणों में ध्यान धरा कर। तुझे इस धरती और आसमान के बीच जो कुछ दिखाई दे रहा हैं। इसका अंत एक दिन निश्चित हैं। यह जो तुम्हारा शरीर हैं इस पर बेकार में ही घमंड कर रहे हो, यह भी एक दिन मिटटी के साथ मिल जाएगा। यह संसार चौसर के खेल की तरह हैं। बाजी शाम को खत्म हो जाती हैं।उसी प्रकार यह संसार नष्ट होने वाला हैं। भगवान् को प्राप्त करने के लिए भगवा वस्त्र धारण करना काफी नही हैं। इसके साथ ही मीरा ने इस पद के माध्यम से लोगों को यह भी बताने की कोशिश की है कि – सन्यासी बनने से न ही ईश्वर मिलता हैं, न जीवन मरण के इस चक्कर से मुक्ति मिल पाती है। इसलिए अगर ईश्वर को प्राप्त करने की युक्ति नहीं अपनाई तो इस संसार में फिर से जन्म लेना पड़ेगा। वहीं मीराबाई ने अपने प्रभु से हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा है कि – मै तुम्हारी दासी हूं, कृपया मुझे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलवाओ।
(मेरे राम)

©Himanshu Tomar #मेरे_राम #मीराबाई #मन #भगवा #सन्यासी #महंत #दास
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