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AK__Alfaaz..
है इश्क जरा...नमक सा तुझसे.., तू मुझमें घुल सा गया...मेरे स्वादानुसार.., #जरा_सा_इश्क_कर_लीजिए_स्वादानुसार प्रेम हो तो नमक के जैसा ना कम ना ज्यादा.. जैसे नमक किसी भी भोजन मे सीमित मात्रा मे डाला जाये तो उसका स्वाद
poonam atrey
जायकेदार लफ़्ज़ तेरे जायकेदार लफ़्ज़ तेरे,कानों में मिश्री सी घोल देते हैं, जो तू कह ना पाया बात दिल की,वो भी बोल देतें हैं, तेरी प्यार भरी बातें मुझे, रब की सौग़ात सी लगती है, नमकीन सी निगाहें तेरी, मीठी भात सी लगती है, तेरी हर बात मुझे ,रसगुल्ले का स्वाद देती हैं, जलेबी सी उलझी बातें भी , जीवन मे रस सा उतार देती हैं, बस यूँ ही मेरी जिंदगी को, ढोकले सा नरम रखना, कुरकुरे काजू के साथ, चाय हमेशा गरम रखना।। ©poonam atrey #जायकेदारलफ्ज़तेरे #पूनमकीकलमसे #नोजोटोहिन्दी Bhardwaj Only Budana Navash2411 बादल सिंह 'कलमगार' Vishalkumar "Vishal" Ravikant Dushe Ka
Dr Upama Singh
“एसिड अटैक” (प्रेरक लेख) अनुशीर्षक में://👇👇 मेरी एक दोस्त भावना एक दिन लखनऊ शहर में शिरोज काफ़ी रेस्त्रा में साथ जाने के लिए आमंत्रित किया। ये रेस्त्रा लखनऊ के अलावा आगरा और उदयपुर में
Mahfuz nisar
किताबें जो बाक़ी छोड़ जाती हैं, कुछ मुड़े और प्यारे निशान, घर की आलमारी में सँजोये, बचपन की यादों का एक पूरा घर होती है किताबें, अल्फ़ाज़ की जायकेदार खुशबु, खुशी का एक तलघर, नायाब सा एक सफ़र, एहसास का बेबाक बाँकपन, मज़ेदार बातों का सिलसिला, जिसके भीतर महक होती है, उन दिनों कि जब हम अपनी जीवन को पन्नों में ढूंढ रहे होते हैं, वो चाॅक के भूर्भूरे जो मोर के पँखो का खाना होता था, और किताब के बाहरी जिल्द पर हल्दी के वो पीले निशान जो हमने किताबों को मुहब्बत में लगा दिये थे, किताबें जो बाक़ी छोड़ जाते हैं, कुछ मुड़े और प्यारे निशान, कभी ना थमने वाला एक फलसफा, मौज़ू दर मौज़ू सवाल-जवाब का तजकिरा, जिसमें खिड़की-दरवाजे से बड़े क्यूँ, आँगन में रौशनदान क्यूँ, चादर इतनी छोटी क्यूँ , पाँव इतने खुरदुरे क्यूँ, और न जाने क्या-क्या, आपके सोच से कभी मेल खाती, तो कभी कोई इत्तेफाक नहीं रखती, बेसुरे,बदमज़े कुछ पेचिदे मसले भी,तो कभी बेहद आसान और सुलझे हुए बातों की छोटी छोटी लोइ, बेहतरी के कभी पैरोकार होती हैं, तो कभी-कभी सबब होती खात्मे का, सबमें बराबर हिस्सों में बँटकर, फिर एक दिन किताबें मृत हो जाती है, और बनती है ,एक अमर कृति। जो कागज़ो से निकल कर इंसानी ज़ेहन को अपना नया घर बनाती है, और फिर वहीं से अपनी निशानी की छुआ- छुआई खेलती रहती है। किताबें जो बाक़ी छोड़ जाती हैं, कुछ मुड़े और प्यारे निशान। ✍महफूज़ World book day... किताबें जो बाक़ी छोड़ जाती हैं, कुछ मुड़े और प्यारे निशान, घर की आलमारी में सँजोये, बचपन की यादों का एक पूरा घर होती है किताबें, अल्फ़ाज़ की
अज्ञात
पेज -40 मानक.. ! जिसके जीवन का पहला अद्भुत अनुभव दिल में अजीब से बेचैनी मगर सबसे छुपाने की जद्दोजहद मगर तकरीबन सभी इस दौर से गुजरे हुये मानक के मनोभावों का चुपचाप आंकलन कर मंद मंद मुस्कुराते हुये.. किन्तु बहनों का अपना ही जलवा मानक को घेर कर यूं बैठे हुये हैं मानो आज ही दुल्हन वरण कर ले जायेंगे.. कुछ बहनें बार बार मनीषा के कमरे में घुसकर उसके सौंदर्य का वर्णन कर मानक को एक नज़र देखने को ऐसे तड़पा रहे हैं कि कहीं ये ना हो मानक दौड़कर उस तक पहुंच ना जाये लेकिन मानक अपने को पूरी तरह साधकर बैठा हुआ है..बहनों का अपना अलग ही अंदाज दिखता है.. आज मानक को अपनी रसीली बातों से छेड़ने का ऐसा मौका फिर कब मिलेगा ... आगे कैप्शन में.. 🙏 ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी पेज -40 शेष भाग कोई मनीषा की बार बार इतनी तारीफें कर रहा.. कोई कहता मत छेड़ो मेरे भैया को.. कोई उसे मनीषा को दिखाने के लिये
अज्ञात
पेज-52 कथाकार संजयदृष्टि से इस विषय से जुड़े हर एक दृश्य पर नज़र रख रहा है मानो कथाकार किन्तु कथाकार कितने दृश्यों पर एक साथ नज़र रख पायेगा.. फलतः कभी कभी महत्वपूर्ण दृश्य छूट जा रहे हैं..यहाँ कथाकार अपने सभी पाठकवृन्दों से क्षमाप्रार्थी है और वो इसलिये क्यूंकि कथाकार प्रत्येक दृश्य को दर्शाना चाहता है मगर सबको समेटने के चक्कर में कुछ ना कुछ छूट जाता है, इन छूटते दृश्यों से बौखलाकर कथाकार की अंतर्चेतना हृदयस्थल छोड़कर,. हर दीवार तोड़कर,.. अलादीन के चिराग़ की बाहर निकल आई और कथाकार को तबीयत से फटकारते हुये बोली- अन्तर्चेतना- हूम्म..! क्यूँ रे उलटी खोपड़ी के मानव.. ये बता किस विषय पर कहानी लिखी जा रही है..? कथाकार-मानक का आभासी विवाह..! अंतर्चेतना-तुझे अंतर से मैं किस ओर जाने को प्रेरित कर रही हूं..? कथाकार-विवाह की पूर्णता की ओर.. ! अंतर्चेतना- तो बुड़बक.. सीधे चल..ना..! दायें बाएँ क्यूँ मुड़ता है..!😡 कथाकार- क्षमा.. क्षमा.. भूल हो गई...जो आज्ञा..!🥺🙏 अंतर्चेतना- हूम्म.. ! आगे से बताउंगी नहीं.. सीधे कुचला करूंगी तुझे..!👹👹👹 याद रखना.. ! कथाकार-🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙅♂️ आगे कैप्शन में.. 🙏🙏 ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी पेज-52 आगे कथाकार ने अंर्तचेतना को दंडवत प्रणाम किया और फिर अपनी दृष्टि मानक के आभासी विवाह पर केंद्रित की.. कथाकार देख र
Sachin Ratnaparkhe
छत्रपति शिवाजी के जन्म दिवस के अवसर पर उनकी महिमा का रितिकाल के कवि भूषण द्वारा ब्रज भाषा में विभिन्न अलंकारों एवम् वीर रस से युक्त अत्यंत मनमोहक सुंदर चित्रण पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। यह पढ़ने के दौरान ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसा साक्षात् महाराज छत्रपति शिवाजी का दर्शन हो रहा हो। यह पौराणिक काव्य शैली आधुनिक हिप होप संगीत शैली (रेप सॉन्ग्स) से काफी मिलती जुलती है और ये बेहद ही खूबसूरत अनुभूति है। और भुषण के इन छंदो को महाराष्ट्र में ठोल ताशे बजाकर बड़ी मस्ती में और बहुत ऊर्जा के साथ गाया जाता है। (Caption me puri Kavita padhe) इन्द्र जिमि जंभ पर , वाडव सुअंभ पर । रावन सदंभ पर , रघुकुल राज है ॥१॥ पौन बरिबाह पर , संभु रतिनाह पर । ज्यों सहसबाह पर , राम व्दिजराज है ॥२