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परवाज़ हाज़िर ........
hashamat ki bunai me zaruri he ke tum khudadar ban jao.. lakhire khichti jani he ke tum galib ki gazal me kahi bus shabd naa rah jao... ©G0V!ND DHAkAD #dailymessage #the #book हशमत की बुनाई में ज़रूरी हे के तुम खुददार बन जाओ.. लखीरे खिचती जनि हे.. के तुम ग़ालिब की ग़ज़ल में बस शब्द ना रह जाओ
jai rangmanch
Nashib Sain
ज़न - स्त्री, जनि, नारी, औरत, #nashib #nashibcollection #quote #nashibsingh #afreedomwritersdiary #ncb #shayari #hindishayri #hindiurdushay
Sujit Kumar Kar
I will fight, even after being crippled That's my spirit तुलसीदास रामचरितमानस के बालकाण्ड में लिखते हैं कि शिव पार्वती ने विवाह रीति की शुरुआत, मुनियों के कहे अनुसार भगवान गणेश की पूजा करके की। "म
Vikas Sharma Shivaaya'
शुक्र एकाक्षरी बीज मंत्र- 'ॐ शुं शुक्राय नम:।' माँ लक्ष्मी का महामंत्र- ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।। इसका जाप करने से स्थिर धन, दौलत और वैभव प्राप्त होता है। “ अरु हलधर सों भैया कहन लागे मोहन मैया मैया-नंद महर सों बाबा अरु हलधर सों भैया।। ऊंचा चढी चढी कहती जशोदा लै लै नाम कन्हैया-दुरी खेलन जनि जाहू लाला रे! मारैगी काहू की गैया।। गोपी ग्वाल करत कौतुहल घर घर बजति बधैया-सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया।। ” बाल कृष्ण ने यशोदा को मैया, बलराम को भैया और नंद को बाबा के नाम से पुकारना शुरू किया है। बाल कृष्ण अब बहुत शरारती हो गए हैं। वह तुरंत यशोदा की नज़रों से दूर हो जाते है। इसीलिए यशोदा को ऊंचाई पर जाकर कन्हैया कन्हैया पुकारना पड़ता है। 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' शुक्र एकाक्षरी बीज मंत्र- 'ॐ शुं शुक्राय नम:।' माँ लक्ष्मी का महामंत्र- ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे
Satyaprem Upadhyay
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 22 हनुमानजी रावण को भगवान् की शरण में जाने के लिए कहते है प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि। गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥22॥ हे रावण! खर को मारनेवाले रघुवंश मणि रामचन्द्रजी भक्तपालक और करुणाके सागर है इसलिए यदि तू उनकी शरण चला जाएगा,तो वे प्रभु तेरे अपराध को माफ़ करके तुम्हे अपनी शरण मे रख लेंगे॥22॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम श्रीराम को मन में धारण करके कार्य करें राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥ रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥ इसलिए तू रामचन्द्रजी के चरणकमलों को हृदय में धारण कर और उनकी कृपा से लंका में अविचल राज कर॥ महामुनि पुलस्त्यजी का यश निर्मल चन्द्रमा के समान परम उज्वल है, इस लिए तू उस कुल के बीच में कलंक के समान मत हो॥ राम नाम बिना वाणी कैसी लगती है राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥ बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी॥ हे रावण! तू अपने मनमें विचार करके मद और मोहको त्यागकर, अच्छी तरह जांच ले कि राम के नाम बिना वाणी कभी शोभा नहीं देती॥हे रावण! चाहे स्त्री सब अलंकारो से अलंकृत और सुन्दर क्यों न होवे परंतु वस्त्र के बिना वह कभी शोभायमान नहीं होती।ऐसे ही राम नाम बिना वाणी शोभायमान नहीं होती॥ राम नाम भूलने का क्या परिणाम होता है राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥ सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥ हे रावण! जो पुरुष रामचन्द्रजी से विमुख है उसकी संपदा और प्रभुता पाने पर भी न पाने के बराबर है क्योंकि वह स्थिर नहीं रहती किन्तु तुरंत चली जाती है॥श्री राम से विमुख पुरूष की संपत्ति और प्रभुता रही हुई भी चली जाती है और उसकी पाना न पाने के समान है।देखो, जिन नदियों के मूल में कोई जलस्रोत नहीं है,(अर्थात् जिन्हे केवल बरसात ही आसरा है),वहां बरसात हो जाने के बाद फिर सब जल सुख ही जाता है, कही नहीं रहता॥ भगवान् राम से भूलने वाले की क्या गति होती है सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥ संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥ हे रावण! सुन, मै प्रतिज्ञा कर कहता हूँ कि रामचन्द्रजी से विमुख पुरुष का रखवारा कोई नहीं है॥हे रावण! ब्रह्मा, विष्णु और महादेव भी रामचन्द्रजी से द्रोह करने वाले को बचा नहीं सकते॥ आगे शनिवार को ... विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज848 से 859 नाम 848 कथितः सम्पूर्ण वेदों में जिनका कथन है 849 योगी योग ज्ञान को कहते हैं उसी से प्राप्त होने वाले हैं 850 योगीशः जो अंतरायरहित हैं 851 सर्वकामदः जो सब कामनाएं देते हैं 852 आश्रमः जो समस्त भटकते हुए पुरुषों के लिए आश्रम के समान हैं 853 श्रमणः जो समस्त अविवेकियों को संतप्त करते हैं 854 क्षामः जो सम्पूर्ण प्रजा को क्षाम अर्थात क्षीण करते हैं 855 सुपर्णः जो संसारवृक्षरूप हैं और जिनके छंद रूप सुन्दर पत्ते हैं 856 वायुवाहनः जिनके भय से वायु चलती है 857 धनुर्धरः जिन्होंने राम के रूप में महान धनुष धारण किया था 858 धनुर्वेदः जो दशरथकुमार धनुर्वेद जानते हैं 859 दण्डः जो दमन करनेवालों के लिए दंड हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 22 हनुमानजी रावण को भगवान् की शरण में जाने के लिए कहते है प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि। गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 18 हनुमानजी अक्षय कुमार का संहार करते है कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥18॥ हनुमानजी ने कुछ राक्षसों को मारा और कुछ को कुचल डाला और कुछ को धूल में मिला दिया और जो बच गए थे वे जाकर रावण के आगे पुकारे कि हे नाथ! वानर बड़ा बलवान है।उसने अक्षय कुमार को मार कर सारे राक्षसों का संहार कर डाला ॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम मेघनाद और ब्रह्मास्त्र का प्रसंग रावण मेघनाद को भेजता है सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥ मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥ रावण राक्षसों के मुख से अपने पुत्र का वध सुन कर बड़ा गुस्सा हुआ और महाबली मेघनादको भेजा॥और मेघनाद से कहा कि हे पुत्र!उसे मारना मत किंतु बांध कर पकड़ लें आना, क्योंकि मैं भी उसे देखूं तो सही वह वानर कहाँ का है॥ मेघनाद हनुमानजी को बंदी बनाने के लिए आता है चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥ कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥ इन्द्रजीत (इंद्र को जीतनेवाला) योद्धा मेघनाद असंख्य योद्धाओ को संग लेकर चला। भाई के वध का समाचार सुनकर उसे बड़ा गुस्सा आया॥हनुमान जी ने उसे देख कर यह कोई दारुण भट (भयानक योद्धा) आता है ऐसे जानकार कटकटा के महाघोर गर्जना की और दौड़े॥ हनुमानजी ने मेघनाद के रथ को नष्ट किया अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥ रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥ एक बड़ा भारी वृक्ष उखाड़ कर उससे लंकेश्र्वर रावण के पुत्र मेघनाद को विरथ अर्थात रथहीन, बिना रथ का कर दिया॥उसके साथ जो बड़े बड़े महाबली योद्धा थे,उन सबको पकड़ पकड़ कर हनुमान जी ने अपने शरीर से मसल डाला॥ हनुमानजी ने मेघनाद को घूंसा मारा तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥ मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई॥ ऐसे उन राक्षसों को मारकर हनुमानजी मेघनाद के पास पहुँचे।फिर वे दोनों ऐसे भिड़े कि मानो दो गजराज आपस में भीड़ रहे है॥हनुमानजी मेघनाद को एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े और मेघनाद को उस प्रहार से एक क्षण भर के लिए मूर्च्छा आ गयी। मेघनाद हनुमानजी से जीत नहीं पाया उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥ फिर मेघनाद ने सचेत होकर बहुत माया रची, अनेक माया ये फैलायी पर वह हनुमानजी से किसी प्रकार जीत नहीं पाया॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 718 से 729 नाम 718 महामूर्तिः जिनकी मूर्ति बहुत बड़ी है 719 दीप्तमूर्तिः जिनकी मूर्ति दीप्तमति है 720 अमूर्तिमान् जिनकी कोई कर्मजन्य मूर्ति नहीं है 721 अनेकमूर्तिः अवतारों में लोकों का उपकार करने वाली अनेकों मूर्तियां धारण करते हैं 722 अव्यक्तः जो व्यक्त नहीं होते 723 शतमूर्तिः जिनकी विकल्पजन्य अनेक मूर्तियां हैं 724 शताननः जो सैंकड़ों मुख वाले है 725 एकः जो सजातीय, विजातीय और बाकी भेदों से शून्य हैं 726 नैकः जिनके माया से अनेक रूप हैं 727 सवः वो यज्ञ हैं जिससे सोम निकाला जाता है 728 कः सुखस्वरूप 729 किम् जो विचार करने योग्य है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 18 हनुमानजी अक्षय कुमार का संहार करते है कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल