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प्रकाश साळवी
तु कृष्ण मी प्रेयसी तुझीच राधा जीवनाचा अर्थ समजून घे साधा ** प्रेम म्हणजेच आहे जीवन वेड्या दे प्रेमात झोकून नको ऐकू वावड्या ** मन मोहन तु मोहवी मनाला मी गौळण राधा तु कान्हा सावळा ** प्रकाश साळवी सहजच लिहित जावे मना मनाला रिझवित जावे
inder Dhaliwal
ना जाने जाते-जाते तू क्या कर गया सारा जमाना रोता है। हर महफिल में आजकल जिक्र तुम्हारा होता है। ©inder Dhaliwal ना जाने जाते- जाते।
Vikas Sharma Shivaaya'
संत ना छाडै संतई- जो कोटिक मिले असंत । चन्दन भुवंगा बैठिया-तऊ सीतलता न तजंत । सज्जन पुरुष किसी भी परिस्थिति में अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे कितने भी दुष्ट पुरुषों से क्यों ना घिरे हों, ठीक वैसे ही जैसे चन्दन के वृक्ष से हजारों सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह कभी अपनी शीतलता नहीं छोड़ते ! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' सज्जनता
Sneh Lata Pandey 'sneh'
बैरी बदरा जब -तब नभ में छा जाये। जब चाहे गरजे चाहे जल बरसा जाये। हिय में पीर उठे पपीहे की पी पी सुन। आ जाते घर साजना मन ये हर्षा जाये। ©Sneh Lata Pandey 'sneh' #cloud #आ जाते घर साजना
Sidhu xyz
आपकी हर एक अदा पे हम हजारों दफा मरते हैं, यूहीं तो नहीं आपकी क्ला को झुक के सज्दा करते है। #सज्जदा
@thewriterVDS
"कबीर" कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर । जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर । भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा। . ©@thewriterVDS #कबीर #जो #जाने #पर #पीर #इंसान #पीड़ा #दुख #सज्जन #Chalachal
@Sushilkumar_Sushil
आम आदमी जब किसी की बुराई करता है ; तो वह अज्ञानता वश, मगर जब बुद्धिमान व्यक्ति किसी की बुराई करता है ; तो उसे पता होता है कि वो बुराई क्यों कर रहा है । आम व्यक्ति किसी की बुराई करता है ; पीठ पीछे या किसी दूसरे व्यक्ति के सामने । मगर बुद्धिमान व्यक्ति किसी की बुराएँ नहीं करता है , बल्कि उसकी आलोचना करता है एकांत में उसे समझाता है एकांत में ले जाके । ©@Kavi_sushilkumar_Sushil सज्जन पुरुष
dilip khan anpadh
(सर्जना) ---------- मुझे कलम दो तलवार नहीं, कोई और औजार नहीं, रण घमसान मचा दूंगा, कइयों को धूल चटा दूंगा।। मुझे प्रीत दो प्रतिकार नहीं, और कोई उपहार नहीं, अहं को मैं मिटा दूंगा, कइयों का शीश झुका दूंगा।। मुझे गीत दो चिंघाड़ नहीं, और कोई संचार नहीं, नफरत को जड़ से मिटा दूंगा, कइयों का स्नेह जगा दूंगा।। मुझे शब्द दो दुत्कार नहीं, और कोई इजहार नहीं, मन का द्वन्द मिटा दूंगा, मानव-मानव को मिला दूंगा।। मुझे राह दो रथकार नहीं और कोई उपहार नहीं, मंजिल तक मैं पहुंचा दूंगा कइयों का आश जग दूंगा।। मुझे छंद दो फनकार नहीं और कोई झंकार नहीं सुर खुद ही बना दूंगा कइयों का प्रीत जगा दूंगा।। मुझे धर्म दो धर्मकार नहीं और कोई अलंकार नहीं मूल मंत्र मैं बता दूंगा मन के भ्रम को मिटा दूंगा।। मुझे अर्थ दो आकार नहीं और कोई विचार नहीं नई दुनियां बना दूंगा जीवन जीना सीख दूंगा।। दिलीप कुमार खान "अनपढ़" सर्जना #Waterfall&Stars