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Ankit Tripathi
"कविता क्या है?" किसी के मन की गहरी गति है । किसी के दिल की गहरी प्रीत है। किसी के प्रेम की पराकाष्ठा है। किसी के जीवन का सहारा है। किसी के चारु की चंचलता है। किसी टूटे दिल की जुबान है। प्रकृति से प्रेम का प्रकटन है किसी के प्रेम की ओज है। किसी के भावनाओं का वारीश है। किसी के दिल का दरीचा है बिखरे मानुष की रसिका है नाना अनुभूतियों का प्रकटन है। क्या कहें कविता क्या है। मेरे और आपके शब्दों की रसना है कविता वही है जो संवेदनाओं का ज्वार है। जीवन धारा का गहरा सार है। .............अंकित............. ©Ankit Tripathi कविता क्या है?
shubham singh
जिंदगी क्या है जिंदगी एक धुंधला आईना जो कभी हकीकत को बयां नही करती सिर्फ दिखावा करती है इस लिए कोई दुश्मन नही कोई दोस्त नही सबसे स्नेह से मिलो यही है जिंदगी क्या है जिंदगी
Daya Sagar
जीवन की इस कठिन डगर पर। चलता रह मत संशय कर।। कुछ रस्ते टेडे मेडे है। कुछ रिश्ते टेडे मेडे है।। कुछ अपने भी यहां दूर है। कुछ थोड़े से मजबुर है।। यूं जीवन को ना कोस रहा। तू हरदम मदहोश रहा।। कभी सांस में O2 थी। कभी भयंकर C O2 थी।। कभी शुल थे राहों में। कभी चुभन थी बाहों में।। कभी राग भी कुंठित था। कोई सच्चे सुख से वंचित था।। कुछ गले मिले थे अपनों से। कुछ डरे हुए थे सपनों से।। कुछ रंगो में रंग मिला। कोई अपनों के अंग मिला।। कोई बस अंको में लिप्त हुआ। कुछ ज्ञान मिला और तृप्त हुआ।। ये जीवन सारा बीत रहा। कोई हारा और कोई जीत रहा।। कोई खुद को भी ना समझ सका। कोई दूर क्षितिज पर जाके रुका।। मै भी तो कहा रुकने वाला। शब्दों से जीवन लिख डाला।। मैंने भी जीवन जंग लडी। कुछ अपनों के ही संग लडी।। कुछ ने मेरा साथ दिया। कुछ ने मुझको मात दिया।। कुछ ने मुझे प्रकाश दिया। जीवन में उत्साह दिया।। कुछ मोती से बिखर गए। ना जाने वो किधर गए।। बस चमक बिखेरे थे पथ पर। जीवन रूपी इस रथ पर।। सांसों की गिनती ठीक नहीं। जो आया है वो मिट जाएगा, है जग की यही तो रीत नई।। वो जीवन के राग सुनाता है। वो सोए भाग जगाता है।। वो छुपा हुआ कण कण में। वो शक्ल दिखाता दर्पण में।। मैं स्वयं उसे ही अर्पित हूं। हर लम्हा उसे समर्पित हूं।। वो अणु हुआ परमाणु हुआ। वो हर रोगाणु की एक दवा। वो निर्मल है वो निर्जर है। वो अखंड अनादि अमर है।। वो है तो प्रकृति हरी भरी। वो नहीं तो सांसे मरी मरी।। अब जीवन उसके हाथ बचा। बस कोरोना ने इतिहास रचा।। अब चारो और तबाही थी। सम्पूर्ण विश्व में छाई थी।। सब थर थर कांप रहे थे। अनहोनी कोई भांप रहे थे।। फिर शक्ति कोई प्रबल हुई। वो वायरस शक्ति दुर्बल हुई।। विज्ञान जगत में सन्नाटा। बस सिर्फ बचा था टाटा।। सब दूर से हाथ हिला रहे। कोई हाथ से हाथ नहीं मिला रहे।। अब सबकी शक्ति क्षीण हुई। सब नई ऊर्जा जीर्ण हुई।। अब सबका वो ही सहारा था। नरवस था नीरस था जीवन, फिर उसने सबको निहारा था।। फिर धीरे धीरे सब सामान्य हुआ। फिर अंतर्मन को ज्ञान हुआ।। हम निमित्त मात्र है प्राणी। हम मूर्ख है वो है ज्ञानी।। हम खेल खेलने आए है। कुछ कष्ट झेलने आए है।। बस आंखो पर परदा पड़ा हुआ। तभी तो मानव बड़ा हुआ।। अहंकार ने टिकने वाला है। अस्तित्व ही मिटने वाला है।। फिर क्यों आपस में बैर करे। बस इस जीवन की सैर करे।। यूं "दया" लिखे कुछ भावो को। तुम भूलो सारे ज़ख्मों को, तुम भूलो सारे घावो को।। आओ मिलकर कुछ गुनगुनाए। कुछ गीत खुशी के गाएं।। जो आज मिला वो पल हो ना हो किसने देखा है यारो,। फिर कल हो ना हो........... फिर कल हो ना हो........... लेखक:कवि दया सागर। क्या है जिंदगी
Jaani_0
जिंदगी क्या है कभी सुख तलाशती है कभी दुःख से भागती है कभी ख़ुशी चाहती है, कभी सुकून खोजती हैं ---ज़िन्दगी क्या हैं😊 ©Jaani_0 जिंदगी क्या है