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Mihir Choudhary

बिरहा

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तुमने तो हँस के पूछा था  बोलो न कितना प्रेम है 

बोलो कैसे मैं बतलाता
बोलो ना कैसे समझता 

जब अहसास समंदर होता है 
तो शब्द नही फिर मिलते हैं 

उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं  बतलाता 
बोलो न कैसे  दिखलाता बोलो न कैसे  समझता 

 तब भी हिसाब का कच्चा था
अब भी हिसाब का कच्चा हूँ

 जो था वो ना मेरे बस का था
अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं

अब अंदर -अंदर सब जलता है
लावा जैसा सा कुछ पलता है

धीमे धीमे  कुछ रिसता है
कुछ टूट-टूट के पीसता है

नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है
धड़कन बिजली सा दौड़ता  है

अब बेहिसाब ये यादे है 
बस बेहिसाब ये चाहत है 

बोलो क्या वो प्रेम ही था 
बोलो न क्या ये प्रेम ही है

मिहिर... बिरहा

Shailendra Singh Yadav

शैलेन्द्र सिंह यादव की कविता प्रेम बिरह

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तेरे बिन बहते अश्रुजल।
गा रहे बिरह की एक गजल।
प्रेम- प्रणय के प्रेम -भंवर में प्रेम -रस बरसाते हैं।
कितने ग़मों सितम सह जाते हैं।
तुम क्या जानो अपने दिल को कितना समझाते हैं।
 तुम क्या समझो तुम बिन कैसे रह पाते हैं।
प्रेम ताप में तपे हुए तेरे बिन नहीं जीना है ।
बढ़ता जाता दर्दो गम पहले से ज्यादा दूना है
रातें दिन कटते नहीं घर आंगन सूना है।
चाहे हों कितने लाख सितम तेरे बिन नहीं रहना है।
कवि:- शैलेन्द्र सिंह यादव

 #NojotoQuote शैलेन्द्र सिंह यादव की कविता प्रेम बिरह

Anuj Ray

#बिरहा की रातें

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" बिरहा की रातें"

न धुंआ न कहीं ,आग जला करती है,
बिरहा की रातें यूं ही ,खामोश जला करती हैं

जलता है बदन आग की लपटों में,दो बूंद 
की उम्मीद लिये, बेबसी हाथ मला करती है।

फागुन का महीना हो, या घनी सावनी रातें, 
पिया मिलन की आस में, यूं ही ख़ला करती हैं।

©Anuj Ray #बिरहा की रातें

-vinita vinay panchal

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Vijay Kumar

#HappyMusic अच्छी नानी प्यारी नानी रूसा रूसी छोड़ दो #Poetry

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तृप्ति

कल सारी रात बैठ कर ..
मैंने उसे एक खत लिखा..
दिल में जो था वो लफ्ज़ लफ्ज़ लिखा...
वो अनकहा मेरा हर अल्फ़ाज़  लिखा..
शिकवा बेचैनी उलफत कश्मकश लिखा ..
उस से ना मिल पाने का दर्द लिखा... 
अरसे से जो किए जाने वाला  इंतज़ार लिखा ..
बस रह गया तो सिर्फ  और सिर्फ उसका पता ..
जो बरसों से मुझे नहीं पता ...
बस वो ही ना लिखा ..
बाकी सब लिखा..
मैंने  उसे एक खत लिखा..

...तृप्ति #बिरहन
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