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Shree
मेरी सुबह का खिला, इतराता, झूमता, खुशनुमा ख्याल-सा, सुसज्जित संज्ञान, ओ! आदित्य प्रकाश मेरे.. हां, तुम हो। बर्फ़-सी शीतल ब्यार की व्याकुलता, निषिद्ध प्रेम का अट्टहास लिए स्वतंत्र विचरन की दिशा, द्वार और वेग.. तुम हो। उद्यानों में लदी, झूमती पुष्पलता को थपकियां देते, चूमते बौराये भौंरे के हृदयावरण में संचित मधु अंश.. तुम हो। ओ सुनो ना, किंचित राग अह्लादित छेड़ती सागर तट पर टूटी सीपीयों के अनुनय अनुराग गाती लहरें.. तुम हो। मुंडेर पर चहचहाते पक्षियों के झुंड की सुंदर क्रीड़ाओ, कलाओं में अव्वल स्वच्छंद अविस्मरणीय उड़ान.. तुम हो। मेरी सुबह का खिला, इतराता, झूमता, खुशनुमा ख्याल-सा, सुसज्जित संज्ञान, ओ! आदित्य प्रकाश मेरे.. हां, तुम हो। बर्फ़-सी शीतल ब्यार की व्याकुल
खामोशी और दस्तक
बाधाएँ आती हैं आएँ घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। कुछ काँटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। ©खामोशी और दस्तक बाधाएँ आती हैं आएँ घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा।
kavi manish mann
इस संकट की घड़ी में मुझे अटल बिहारी बाजपेई जी की एक कविता याद आ रही है। कृपया कैप्शन में पढ़े🙏✍️✍️ बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों से हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना ह
Mr.Poet
बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों से हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना ह
Sachin Ratnaparkhe
कि जैसे कभी मिले ही नहीं, बोए जो पुष्प उस उद्यान में, वो अब तलक खिले ही नहीं। #उद्यान #पुष्प #yosimwrimo में आज का simile #challenge #बिछड़करलगताहै #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi
Ek villain
बिहार की छवि देश को मानव संसाधन उपलब्ध कराने भर की ही रही है देश के तमाम राज्यों में बिहार के काम कर भरे मिलेंगे इसका एहसास देश को तब हुआ जब करुणा संक्रमण की पहली लहर के दौरान बिहार की तरफ आने वाली सड़कों पर हु जुनून चलता हुआ दिखाएं यह सतीश से बनी क्योंकि उद्योग स्थापित करने के लिए केवल बातें ही होती रही है किसी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया हालांकि अब यहां स्थित बदल रही है बाहर के उधमी किस तरह देखने लगे और यह सभी देश के सकारात्मक माहौल बनने लगा बिहार बसने वाले यह सब मेगा अपने प्रदेश को कैसे संभाल सकती है इसकी बनेगी बिहार के काम करो का चनपटिया मॉडल दरअसल कॉल में घर लौटे रेडिमेंट इस इंडस्ट्री में कार्यकर्ता काम करो को पश्चिमी चंपारण जिला प्रशासन ने बंधी एक चीनी मिल में जगह दी है उन्होंने रेडिमेड परिधान बनाना शुरू किया वर्ष 2020 के जून में शुरू हुई स्टार्टअप का टर्नओवर ₹10 से ऊपर हो चुका है इस प्रश्न को सिविल सर्विस दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री से मिला है ©Ek villain #उद्योगों के जरिए छवि बनाने का प्रयास #SunSet
Anjali Raj
हरी भरी अभिलाषाओं के हरे भरे उद्यान में पंछी बनकर दिल ये मेरा कभी यहाँ उड़े कभी वहां उड़े सौ बार लिया आलिंगन में कभी हल्की चपत से समझाया पर ये नटखट ना एक सुने कभी यहाँ उड़े कभी वहां उड़े अंजलि राज #YQdidi #अभिलाषा #पंछी #myquotes #अंजलिउवाच #उद्यान
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी खोद दिये पातालऔर पहाड़ पेड़ काट डाले है निज स्वार्थ में पड़कर नजारे मौसमो के बदल डाले है कल कारखानों के वेस्टेज और रसायनिक धुँआ से आसमान नदियों के तट जहरीले कर डाले है प्रदूषण से धुँआ धुँआ शहर रोगों से जीवन अधमरे कर डाले है सरकारे पल्ला झारती उल्टे जनता पर प्रदूषण के जुर्माने थोप डाले है शोर मचाती पराली और ढाबो का बड़े उद्योगों को शह दिये जा रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" बड़े उद्योगों को शह दिये जा रहे है #EveningBlush