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vishnu prabhakar singh
मेरे स्पर्शी भाव और अलबेली खुशबू चाहने वाले कुछ अंजान भी हैं प्रकृति मेरे अंग भंग से निकले,आह भी प्यारा हर स्थिति,अवसर का गुलाब तुम्हारा। मैं तुमसे 'मोंगरे सा इश्क़' करती हूँ... लिख- लिख के इतना लिखे है कि मोंगरा खुद आकर ये बोल कर गये हैं , माफ़ कर दे... जीने दे... बख़्स दे मुझ
vishnu prabhakar singh
मेरे पुष्पगुच्छ रोमानी निर्विषा मात्र निवेदन वरन तुम्हें गर प्रेम गर मीरा वर्ण नति करना मुझे हरना,उसे रीझना सुगंध मेरा,शपथ मेरा विष का लेना सहारा गुलाब तुम्हारा। नज़रे मिला कर तुमसे... मैं नज़रे चुरा लेती हूँ , महक में तेरी.... मैं, मेरे... होश भुला देती हूँ , अठखेलियां, नादानियां सब संग तेरे करती हू
vishnu prabhakar singh
मेरे पुष्पगुच्छ रोमानी निर्विषा मात्र निवेदन वरन तुम्हें गर प्रेम गर मीरा वर्ण नति करना मुझे हरना,उसे रीझना सुगंध मेरा,शपथ मेरा विष का लेना सहारा गुलाब तुम्हारा। नज़रे मिला कर तुमसे... मैं नज़रे चुरा लेती हूँ , महक में तेरी.... मैं, मेरे... होश भुला देती हूँ , अठखेलियां, नादानियां सब संग तेरे करती हू
अज्ञात
पेज-24 अगले दिन सुबह का सूरज उगने को है... पंछियों का कलरव कोई सुखद ख़बर आने का संकेत दे रहा है तभी कथाकार की पहली दृष्टि अचानक "बिजली" पर पड़ी.. ! बिजली.. ! कौन बिजली..? वही जो ताऊ जी के साथ सुधा के घर आ धमकी...! गांव की छोरी..छैल छबीली...आँगन में मुख चमका रही है..!अपने घर से श्रृंगार पेटी लाई है.. श्रृंगार पेटी.. एक टिन चादर की छोटी सी संदूक..! संदूक में ताला..! ताले के अन्दर बोरोप्लस, सरसों का तेल, मुरदाशंख, बड़ी कंधी, ककई, पॉन्ड्स पाउडर, मोंगरा इत्र की शीशी...! छोटा सा आईना..! मटमैले रंग की घाघरा चोली में केशरिया दुप्पटा कमर में कसा हुआ... दाहिने हाथ में गुदना गुदा... " कजरी मेरी मइया ".. बाएं हाथ में बिजली... ! नैलपॉलिस कत्थाई रंग लग रहा है ... मुख में बोरोप्लस लिपा पुता सा दिखता है.. दो चोटी लाल फीते में कान के ऊपर दो गोले बनाये हुये...बालों में मन भर सरसों का तेल चुपड़ा हुआ कानों के पास से बूंद बूंद रिस रहा है... सामने बालकनी में हमारी पुष्पा जी अपने दांतों की परवरिश में लगी बड़े गौर से बिजली का श्रृंगार देख रही हैं.. तभी इतने में जे.एल.फेमिली पुष्पा जी के घर से गुजरते हुये मंदिर की ओर बढ़ रहे हैं..पुष्पा जी बालकनी में मुखमंजन करते हुये तीनों को बड़े गौर से देखती हुई और..तभी उनका ब्रश दांतों की पकड़ से छूटकर नीचे गिर जाता है.. और अचानक पुष्पा जी के ज्ञान चक्षु जाग्रत होते ही... आगे पेज-25 ©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी पेज-24 अगले दिन सुबह का सूरज उगने को है... पंछियों का कलरव कोई सुखद ख़बर आने का संकेत दे रहा है तभी कथाकार की पहली दृष्टि अ
Roopanjali singh parmar
"पुरानी मोहब्बत" #रूपकीबातें #roopanjalisingh मुझे इस नए दौर में मोहब्बत पुरानी वाली चाहिए। चाहती हूँ कि तुम और मैं किसी शाम सितारों के नीचे चाँद के साथ-साथ चलें हाथों में हाथ डाले दूर क