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प्रकाश साळवी
बेरंग करून गेला !! रंगात रंग सारा बेरंग करून गेला या जीवनाचा सारंग करून गेला ** कुठून कसा आला हा कोरोना समृध्द जीवनाला भणंग करून गेला ** का नाही करीत धिक्कार चायनाचा जगणाऱ्या श्वासाचा सुरुंग करून गेला ** गर्दी म्हणू नका ही दर्दी च होती बेछूट हासून हा तुरुंग करून गेला ** जरा कुठे तो बाहेर आलो म्हणूनी ताल लावला बांबूंनी मृदुंग करून गेला ** प्रकाश साळवी बदलापूर - ठाणे २२ एप्रिल २०२० बेरंग करून गेला .. !
sanatani boy
☺️Vishu☺️
कधी कधी अस होतं की आपल्याला आपल्या आवडत्या व्यक्ती ला काहीच बोलायचं नसत पण रागात चुकून निघून गेलेला एखादा शब्द त्या व्यक्तीच्या मनाला खुप लागून जातो व त्यामुळे आपली आवडती व्यक्ती आपल्या पासून दूर होऊन जाते आज माझ्या कडून अशीच चुकी झाली पण माझ्या बॉयफ्रेंड ने माफ करून दिल sorry pillu......😭😭
Sthapak Harshita
थी द्रुपद देश की राजकुमारी,.................................................. थे परम ज्ञानी कुलगुरु परम महात्मा विदुर परम पितामह वहाँ उपस्थित थे पर उस अधर्म में अपना धर्म निभाने ये सभी वहाँ बैठे नतमस्तक थे फिर गुरु की प्रेरणा से द्रौपदी को गुरु मंत्र का ज्ञान ध्यान तब आया और फिर सती द्रौपदी ने श्री कृष्ण को करुणा की गुहार से चिल्लाया जैसे ही श्री कृष्ण बहन की पुकार सुनते है छोड़ देते है सब काम वही और बिन खडाऊं ही दौड़े आते हैं श्री कृष्ण ने द्रौपदी की सारी का इतना चीर बढ़ा डाला..और खिचवा खिचवा कर दुश्वासन का हाल बेहाल कर डाला | वहाँ बैठे सभी अधर्मियों को गजब अचंभा होता है ऐसे कैसे एक बेबस नारी का चीर एकतरफा बढ़ता है तब श्री कृष्ण की मौजूदगी का द्रौपदी को अनुभव होता है फिर हो जाती है बेफिक्र द्रौपदी, और फिर सौगंध उठाती है और उसी सौगंध के चलते एक कृष्ण भक्त नारी वृहत महाभारत की नीव रख जाती है| इतिहास गवाह है इस युग में जब जब एक सती नारी की लाज पर आंच आती है, फिर इस सारे ब्रह्मांड में एक प्रलय सी खलबली मच जाती है | ©Sthapak Harshita द्रौपदी
Sharddha Saxena
द्रौपदी जो यज्ञ के ताप से निकली थी थी द्रोपद की द्रौपदी वो। ना बचपने की अनुभवी थी थी यौवन की युवती वो। अर्जुन की होकर भी वो सम्मान से वंचित थी थी कुंती के वचनों से पांचों भाइयों की पत्नी वो। कुलवधु थी पांडव की फ़िर भी हुई अपमानित थी द्रुपद की द्रौपदी से पांडवों की पांचाली वो। एक खेल ऐसा खेला जिससे हुईं वो शोषित थी पांचाली से बनी दुर्योधन की दासी वो। खींचे बाल लाई सभा में किया गया वस्त्र हरण ऐसे हुई अपमानित थी फ़िर दासी से हुई कृष्णा की भक्तन वो। सभा में बैठे प्रत्येक की वधू थी फ़िर क्यों हो गए सभा में बैठे सारे नपुंसक वो। सारी सभा झुकाए नज़र थी ऐसे मे कृष्ण को ही पुकारती वो। कृष्ण की भक्ति से ही देखी चमत्कारिक शक्ति थी एक चीर का ऋण फ़िर कृष्ण ने उतारा वो। अपमानित हुई सभा में ही बोली उसी सभा में थी खुले केश में पांडव लेंगे मेरा प्रतिशोध वो। सारे रिश्तों को भूल कर लाईं सबको रण में थी अपमानित से महाभारत की कारण बनी अब वो। कोई बने ना द्रौपदी अब ऐसी शक्ति बनना है नारी को अपने ही हाथो से दुशासन का संहार करे वो। फ़िर कोई दुर्योधन उसे सभा में खींच नही सकता आज की नारी को कोई रोक नहीं सकता। ©Sharddha Saxena द्रौपदी