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मोहित "बेख़बर"
कुंद पुष्प देह रंग, भसमी विभूति अंग, जटा में बिराजै गंग, चंद जाके भाल है । गौरा सोहे वाम भाग, कंठ पें है नील दाग, वासुकी गले में नाग,डरो अति विशाल है। करै रोग शोक नास,दास को बधावै आस, मेटैं भव जीव फांस, कठिन जो कराल है। रामे नित जोड़ें हाथ, चरणनि में नावै माथ, भोले भंडारी नाथ, काल हूं के काल है ।। ©Rohit Sharma ##काल के काल "महाकाल"##
कवि: अंजान
जब जब धरा पर अंधकार बढ़ता जाएगा तब तब कोई वीर शिवाजी फिर भगवा लहराएगा। ©कवि: अंजान #ShivajiMaharajJayanti #motivate #Life #कविता #वीरगाथा #शायरी
Parasram Arora
आकुलता लिए. भविष्य भोर की पहली किरण की प्रतिक्षा कर रहाहै और अव्यय अतीत गुमनाम कब्रों मे फिर से सांस लेने की कोशिश कर रहा है जबकि आलसी वर्तमान का कीड़ा अपनी मंद गति का पुनर्नमूल्यांकन करने के लिएफिर से साहस बटोर रहा है ©Parasram Arora समय के तीन काल
Radharaman
हे कालो के काल महाकाल,इस कोरोना के काल से हमे निकाल, जय महाकाल .
Gajendra Prasad Saini
एक कवि के भाव को तुम कभी शोर मत समझना... उजाला दोपहर का लिखता है उसे बोर मत समझना... बस ये कुछ अल्फ़ाज़ अपने मन के लिखता है किसी दूसरे के शब्दों का उसे चोर मत समझना... कवि के भाव...