Find the Latest Status about तेज आवाज from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, तेज आवाज.
anuragbauddh
इंकलाबी राग हमारी निरंतर बढ़ती जाएगी.। इस लहू का कतरा कतरा यकीनन इंकलाब लाएगी.। बलात्कारी आदि के खिलाफ.। जुल्म ज्यादती के खिलाफ.। बेसाजो का सज जरूरी है.। तेज आवाज जरूरी है.। तेज आवाज जरूरी है
Manku Allahabadi
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्। धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥ शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है, जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण, गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई। शिव तांडव स्त्रोत (श्लोक-11) ©Manku Allahabadi शिव तांडव स्त्रोत (भाग - 11) ............................................ जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्
Prashant Fulwariya
तुम्हारे नफरत के पेड़ अब मैं काटूंगा तुमको तुम्हारी सही जगह बताऊंगा और यह जो तुम औकात औकात चिल्ला रहे हो ना बेटा एक दिन तुम्हारी सारी अकड़ निकालूंगा। -Prashant fulwariya हमारे सामने आवाज धीरे करके बात किया करो क्योंकि तेज आवाज तो मैं मेरी जान जिससे हर सुबह की शुरुआत जिसे हर रात सोने से पहले में देखना चाहता
rupali yadav
डिअर तुम, तुम मुझे अपनी ओर GRAVITY से भी ज्यादा ताकत से खिंचते हो। ठीक वैसे जैसे न्यूटन के सिर पर सेब गिरा था, मैं भी तुम्हारी ओर खिंचती चली आई... तुम्हारे प्यार में गिरने तक। एक तेज आवाज के साथ जैसे दिल जोरों से धड़क रहा हो.. मेरा दिल डूबता गया, जैसे अभी - अभी आसमान से निचे आया हो। ये मेरा पहला प्यार है... 🌻ACP SIR❤️ डिअर तुम, तुम मुझे अपनी ओर GRAVITY से भी ज्यादा ताकत से खिंचते हो। ठीक वैसे जैसे न्यूटन के सिर पर सेब गिरा था, मैं भी तुम्
Dear diary
...........तन्हा मन........ ....क्या तुम लौट आओगे .... जब कभी सफर पर जाना हो । या कभी स्याह रात में डर से हाथ थामना हो । क्या तुम लौट आओंगे ....।। पहली बारिश में प्यार का इजहार करना हो । बालकनी में खड़े होकर साथ में अगर कॉफ़ी पीना हो । कांधे पर सर रखकर तकलीफ को कम करना हो । क्या तुम लौट अाओंगे ......।। बादलों की गड़गड़ाहट की तेज आवाज से डरकर तुम्हरे गले लगाना हो । पहाड़ियों की उचाई को तुम्हारा हाथ पकड़कर चड़ना हो । और देर शाम तक सूर्य अस्त देखना हो । तो क्या तुम लौट आओंज..... ।। मेरा मन तुमसे लगता था अब तुम है नहीं तो इस मन को केसे समझाऊं । तुम्हरे चले जाने के बाद सब कुछ अधूरा रह गया, तुमको गए आज पूरे 2 साल 7 महीने और हो गए, अब अब तो ये बारिश भी जेसे काटने लगती है ।नफरत सी हो गई है मुझे खुद से और तुम्हरे चले जाने के बाद इस ज़िन्दगी से । तुम्हरे इस कदर छोड़ कर चले जाना, मानो किसी ने दीपक से सुकी बाती चुरा ली हो, कहने को बहुत सी बाते है ,पर अब मुझसे कहीं नहीं जाती । .......…..... ...........तन्हा मन........ ....क्या तुम लौट आओगे .... जब कभी सफर पर जाना हो । या कभी स्याह रात में डर से हाथ थामना हो । क्या तुम लौट आओंगे
JALAJ KUMAR RATHOUR
सुनो, तुम उसे दिन मुझे याद करोगी ,जब तुम कहीं दूर शहर में अपने प्रिय के समक्ष बैठी होगी और जब वो तुम्हे एक टक निहारते हुए।तुम्हारी जुल्फों को तुम्हारे झुमके के पीछे फंसा रहा होगा, तुम उस दिन मुझे याद करोगी । जब वो तुम्हारे करीब आकर थामेगा, तुम्हारी नर्म हथेलियों को स्पर्श करेगा तुम्हारे लवो को एक गुजारिश रहेगी की तुम मूंद लेना अपने नयनो को क्युकी शायद ये देखने के बाद तुम मुझसे नजर ना मिलाओ ,परन्तु जब तुम उसे मना नही कर पाओगी तब तुम मुझे याद करोगी, तुम याद करोगी वो हक जो तुम मुझ पर जताती थी। क्युकी शायद आज वो हक किसी और के पास होगा, जब तुम तिमिर से घिरे उस कमरे में शांत हो सिसकियां लोगी, हो सकता है। उस दिन मैं याद आऊंगा तुम्हे, जब जब तुम्हारे प्रिय की तेज आवाज तुम्हारे कानों में गुंजायमान होंगी तब याद आऊंगा मैं तुम्हे, अपने मांग के सिंदूर में, माथे की बिंदिया में, मंगलसूत्र में,कानों के झुमके में, होठो की लाली में, आँखो के काजल में, मंगलसूत्र में, हाथो के कंगन और मेहंदी में ,पैरों की पायलों, बिछियो में और एड़ियों की महावर में तुम पाओगी मेरा प्रतिबिंब जब जब तुम श्रृंगार करोगी क्युकी तुम्हारे लिए मेरा प्रेम अनंत है और अगर इनमे से कही नजर ना आऊँ तो तुम देखना आसमां मे, तुम पाओगी मुझे......... ....... #जलज कुमार सुनो, तुम उसे दिन मुझे याद करोगी ,जब तुम कहीं दूर शहर में अपने प्रिय के समक्ष बैठी होगी और जब वो तुम्हे एक टक निहारते हुए।तुम्हारी जुल्फों
Er.Shivampandit
विविधता में एकता ©Er.Shivam Tiwari #विविधता_में_एकता दिन भर घर के बाहर की सड़क पर ख़ूब कोलाहल रहता है और सांझ ढलते सड़क के दोनों किनारों पर लग जाता है मेला सज जाती हैं दुकानें
Saurabh Upadhyay
वो मोटी सी किताब जिसके पन्ने सीलन से मुड़ एवं फूल गए हैं (शेष अनुशीर्षक में) वो मोटी किताब जिसके पन्ने सीलन से मुड़े एवं फूले हुए थे उसके पन्ने पर उंगली रखे मैं उसके शब्दों का वाचन कर रहा हूं जिसका स्वर, मानो एक शून्य
Saurabh Upadhyay
मुझे हमेशा से भरोसा है एक दिन मैं यहां से भाग जाऊंगा (शेष अनुशीर्षक में) मुझे हमेशा से भरोसा है मैं एक दिन यहां से भाग जाऊंगा दूर कहीं किसी पहाड़ पर या किसी जंगल में एक छोटा सा घर बनाऊंगा या फिर कोई ऐसा शहर जहां क