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Sardar Singh Rathor

वंदे मातरम सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम #nojotophoto

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 वंदे मातरम सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम

संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

कविता संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

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कविता  -  पापा जी का डंडा गोल , मम्मी  जी की रोटी गोल , नानी जी का ऐनक गोल , नाना जी का पैसा गोल , बच्चे  कहते लड्डू गोल , मैडम कहती दुनिया  गोल । कविता   संध्या  उर्फ  सुधा  अस्थाना

संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

कविता संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

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 कविता   संध्या  उर्फ  सुधा  अस्थाना

संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

कविता - संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

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कविता - " नील  परी "-   आसमान  से हँसती  गाती  नील  परी    भू  पर  आती  आकर  के  नन्ही  बगिया  को  खूशबू  से    ये  भर  जाती  जादूगर  सी  छड़ी  लिए  है बैठी  बच्चों     के  सिरहाने  इसके  आते  ही  फूलों  से झरने  लगते  मीठे  गाने इसकी  मुस्कान  मोती  हैं  और  चाँद  है इसकी   बिंदिया      बच्चे  इसको  खूब  जानते  कहते  है  लो आ गयी नन्ही  निंदिया कविता  - संध्या  उर्फ  सुधा  अस्थाना

संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

कविता - संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

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कविता- "मै भी स्कूल जाऊॅगा"-  मम्मी  मुझको बस्ता ला दो मै भी स्कूल मे जाऊॅगा  ए बी सी डी  पढ़ूंगा मै भी क ख ग घ  भी पढ़कर आऊॅगा सीखूंगा बातें नयी और आकर सबको बतलाऊॅगा मम्मी मुझको बस्ता ला दो मै भी स्कूल में जाऊॅगा  पढ़ लिखकर एक दिन मैं  भी नाम बहुत कमाऊॅगा होगा गर्व तुझे उस दिन जब देश के काम मैं आऊॅगा कलाम भगत सिंह  जैसा बनकर इस जग मे छा जाऊॅगा मम्मी मुझको बस्ता ले दो मैं भी स्कूल जाऊॅगा कविता - संध्या  उर्फ  सुधा  अस्थाना

संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

कविता - संध्या उर्फ सुधा अस्थाना

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कविता - "सीखो " - फूलों से तुम हॅसना  सीखो  ,                            भ॔वरो  से  नित  गाना  ।                                                                  वृक्षों की  डाली  से  सीखो  ,                                                           फल  आये  झुक  जाना  ,                                                              सूरज  की  किरणों से  सीखो  ,                                                         जगना  और  जगाना  ।                                                                   लता  और  पेड़ो  से  सीखो  ,                                                        सबको  गले  लगाना  ।                                                                      दूध  और  पानी  से  सीखो  ,                                                         मिल  जुल कर  सबसे  रहना  ।                                                        अपनी  पृथ्वी  से सीखो  ,                                                             हॅस  हॅस  कर  सब  कुछ  सह  जाना  । कविता  - संध्या  उर्फ  सुधा  अस्थाना
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