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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी आधी आबादी का वोट बटोरने रणबाँकुरे महिला आरक्षण कानून बनाये थे उनके सम्मान में सारे माननीय निर्विरोध आये थे मगर आज हरष उनके सम्मान का देखिये निजी जिंदगी का राजनीतिकरण हो रहा है एक महिला सांसद का चरित्र हनन हो रहा है रहने दीजिये साहब हम घर मे ही भले है बहकती और भटकती सियासत तुम्हे मुबारक हम तो इज्जत के लिये,दाँव पर जिंदगी लगा देते है तुम वेशर्मो से हम पार नही पा पायेंगे तुम्हारी घिनौनी हरकतों से हम महिलायें मैदान ही छोड़ जायेगे प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #HBDKirronKher तुम्हारी घिनौनी हरकतों से हम महिलाये मैदान ही छोड़ जायेगे #nojotohindi
Sujeet Mishra
दरिन्दों ने जुबान काट दी चिल्ला न सकू बस आखरी सांस तक जिस्म से खेलते रहे (रेप)😭 #कैसे #बेरहम #लोग है #दुनिया में #इतनी #घिनौनी #हरकत #करते है । 😡#Nojotohindi
Deeksha verma
व्यथा एक हथिनी की.... 😭😭 क्या क्या दोष था मेरा? मैं जानवर बेजुबान? बस इतना गुनाह मेरा? मेरी कोख में मेरा नन्हा सा अंश था.. उसके भी ले लिये तुमने प्राण 😭 क्या तुम सच में हो इंसान? या कोई हो हैवान? क्या परिभाषा दूँ मैं तुम्हें? कहे तो जाते हो तुम हो बहुत बुद्धिमान😐 मार दिया मुझे और कर दिया मेरे अजन्मे बच्चे को भी निष्प्राण 😭😭😭 ............. Yaaaarr nahii likhaaa ja rahaa isske aage😭😭😭😭😭 😭😭😭😭😭😭 बहुत मन दुःखी हुआ सुनकर... ये दर्द इतना गहरा है कि मेरी कलम भी नहीं चल रही... इस निर्दोष हथिनी का दर्द बयाँ ही नहीं किया जा सकता.. ऐस
मुरली कुमार
बड़े मर्द हैं भय्या हम, कहते फिरें जमाने से, मर्दांगी हमारी निखर जाएगी नई औरतों को आजमाने से।। किसी से इश्क नहीं करते हैं कोई मर्द कभी , महबूबा थोड़ी बनती है औरत एक रात बिताने से।। वो तो जवानी ठंडी करनी थी तो ब्याह कर लिया, अब बीवी थोड़ी बन जाएगी सिंदूर का टीका लगाने से।। औऱ हाँ बाप ने उसके दहेज़ कम दिया, मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता उसके जीने से मर जाने से।। एक नहीं दो नहीं जितनी चाहे लाएंगे, औरत तो बस पुतला है मिल जाती है भाव लगाने से।। कब तक शर्मशार करोगे मर्द जात को, कब तक अपनी घिनौनी हरकतों से बाज आओगे। जब कूबत नहीं है पालने की किसी को तो घर लाते हो क्यों हो, और अगर हवस ह
हिमांचल मिश्रा (बादल)
ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात की हमारे देश मे महिला सशक्तिकरण की बात सिर्फ संसद की चार दिवारों ओर चौखट तक ही सीमित होकर रह जाते वो कभी समाज
Murli Bhagat
बड़े मर्द हैं भय्या हम, कहते फिरें जमाने से, मर्दांगी हमारी निखर जाएगी नई औरतों को आजमाने से।। किसी से इश्क नहीं करते हैं कोई मर्द कभी , महबूबा थोड़ी बनती है औरत एक रात बिताने से।। वो तो जवानी ठंडी करनी थी तो ब्याह कर लिया, अब बीवी थोड़ी बन जाएगी सिंदूर का टीका लगाने से।। औऱ हाँ बाप ने उसके दहेज़ कम दिया, मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता उसके जीने से मर जाने से।। एक नहीं दो नहीं जितनी चाहे लाएंगे, औरत तो बस पुतला है मिल जाती है भाव लगाने से।। कब तक शर्मशार करोगे मर्द जात को, कब तक अपनी घिनौनी हरकतों से बाज आओगे। जब कूबत नहीं है पालने की किसी को तो घर लाते हो क्यों हो, और अगर हवस ह
Pramod Kumar
yogesh atmaram ambawale
बलात्कार सा लगता है मुझे,उस हरपल, राह चलते हुए,कोई नजरों से घूरता है जिसपल| बुरा लगता है बहुत,बड़ी घिन सी महसूस है होती, सवाल रहता है मन में,क्या उनके घर में मां बहन नहीं होती| शारीरिक बलात्कार से कम नहीं होती है ये वारदाते, अकेले भी बैठू कभी,तो दिल रोता है याद कर ये बातें| कोशिशें बहुत है रहती,के उन्हें नजरंदाज किया जाए, पर आखिर कब तक,उन्हें यूं ही खुला छोड़ दिया जाए| अंकुश नहीं लगाया अगर इन्हें उसी वक्त, जिस वक्त वो ऐसी घिनौनी हरकतें है करते| यकीन मानो रोका नहीं अगर उन्हें अभी, तो आगे बलात्कार से भी नहीं रोक सकते| मुझ पर है बीत रही जैसी,वैसे ही औरों पर भी बीत रही होगी, मैं तो रोकूंगी अभी उन्हें,शायद शुरुआत के लिए ही सब रुकी होंगी| क्रांति तो नहीं पर कई तो कोई शुरुआत तो होगी, घूम रहें है जो दरिंदे बेखौफ,उनपे कोई लगाम तो होगी| चरण : चौथा.. अंकुश लगना जरूरी है.. #rzकाव्यशाला #rzकाव्यसंदर्भ #restzone #yqdidi #औरतों_की_स्थति #yqhindiquotes बलात्कार सा लगता है मुझे,उ
Satyam Kumar
" लाल धब्बा " ( अनुशीर्षक में पढ़े ) दिसंबर का महीना था , रात के पौने 11 बजे रहे थे , मेरी फोन की घंटीयाँ रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी , मैंने हड़बड़ाहट में जैसे-तैसे फोन उठाई