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कवि प्रदीप वैरागी
तुम क्या जानो पीर पराई , छान रहे हो दूध मलाई मेरे घर सन्नाटा है, अपना गीला आटा है। #पीर
Rashid MoMeen
में आईना की तलाश में दर बा दर भटकता रहा, जब मिला मेरे पिरो मुरशिद से राजो नियाज, तो वली की हकीकत को समजने लगा, इशकू में सचचाही का समंदर मिलता है , चला अगर मुरीद हक परसती पर तो पिर के वासीले से खुदा मिलता हैं,, ना मायूस होकर बैठना अपने ही घर में, ठोक ए शेख अपने ही दिलका दरवाजा फिर देख किसकी शकल में खुदा मिलता हैं, पीर
gio creation
इक देश राझां इक देश हीर। किथे मिल जावे बदली नू समन्दर दोवें मनावें इको जेहा पीर।। ©gio creation #पीर #WalkingInWoods
manav raj(मानव)
मौसम भी तेरी फितरतों की तरह, बदल रहा है आजकल । लगता है रब को भी, बस बहुत हुआ! नादानीयों तक तो ठीक था,गल्तियां भी शायद माफ थी,लेकिन जान बुझ कर... नहीँ साहब, ये रब हैं, इसका दुलार और वार,दोनो ही बहुत सधे हुए होते हैं । उसने जग बनाया हैं,उसे तू क्या बनाएगा। सुधर जाएँ हम तो ठीक हे , वर्ना वो मंजर भी आएगा जब वो मोहिनी नृत्य नहीं तांडव दिखाएगा । अन्तस पीर#
DEV KUMAR
उठ रही है मन मे मेरे पीर परायी ना जाने क्यू मन है कुंठित आँख मे आस्क ना जाने क्यू मैं अकेला बेचैन हु बैठा ना जाने क्यू सोच रहा हूँ रो रहा हूं ना जाने क्यू उठ रही है मन मे मेरे पीर परायी ना जाने क्यू लूटी आज एक अस्मत फिर है बिखर गयी बाहर चमन की मानवता से फिर उठा भरोसा इंसानियत ने फिर दम तोड़ा उठ रही है मन मे मेरे पीर परायी ना जाने क्यू पलते थे सपने जिन पलकों पर उनमे अँधियारा झाँक रहा लबो पे चुप्पी बदन कपड़ो से झाँक रहा लूटी है अस्मत फिर किसी की सारा जग ये जान रहा उठ रही है मन मे मेरे पीर परायी ना जाने क्यू पहुंची आंगन घर बाबुल के सारा घर उसे ताक रहा माँ बाप की ऑंखें शर्म से झुकी दरसक बने लोगो सारा मज़ारा जाँच रहे, उठ रही है मन मे मेरे पीर परायी ना जाने क्यू कपडे छोटे जिस्म खुला ये तने भी सुनते है 8 के बाद घर से निकले तो परिणाम यही बताते है संस्कारो मे कमी ये लड़की के जताते है एक बार की लूटी अस्मत ये रोज़ बज़ारो मे लुटाते है उठ रही है मन मे मेरे पीर परायी ना जाने क्यू मन है कुंठित आँख मैं आस्क ना जाने क्यू पीर prayi