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Ashish sharma😍
प्रेम विस्तार है एवं स्वार्थ संकुचन
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी महापुरुष का चिंतवन ,सर्व समाजिक होता है जातियों और भाषाओं में जो बांट दे वो संकुचन समाज होता है गुरुनानक की समदर्शिता सर्वव्यापी थी हमारी परम्पराओ का सन्देशवाहक बन आया था प्रकाश फैले ज्ञान का,सेवा को ही भगवान तक पहुँचने का माध्यम बनाया था प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #paper वो संकुचन समाज होता है #nojotohindi
Kautilya
ऐंठन क्यों होती है? ऐंठन विशेष रूप से पैर, उंगलियों और पिंडलियों की मांसपेशियों में आम है। शारीरिक रूप से, ऐंठन परिसंचरण संबंधी विकारों या शारीरिक परिश्रम के कारण होने वाली मांसपेशियों का अचानक संकुचन और ऐंठन है। ऐंठन का बार-बार होने वाला कारण गर्भपात करने वाली हरकत या नीरस दोहराव वाली हरकत हो सकता है। ऐसी ऐंठन उन लोगों में विकसित होती है जो पीसी पर बहुत अधिक टाइप करते हैं या कंप्यूटर माउस के साथ खेलते हैं, अपने पैरों पर काम करते हैं, या गहन व्यायाम करते हैं। पैरों में ऐंठन अक्सर शरीर में कैल्शियम और पोटेशियम लवण की कमी के कारण होती है। यह अक्सर गहन व्यायाम, मूत्रवर्धक लेने और निर्जलीकरण के साथ होता है। हमारा एनएफटी चैनल ©Kautilya #happykarwachauth ऐंठन क्यों होती है? ऐंठन विशेष रूप से पैर, उंगलियों और पिंडलियों की मांसपेशियों में आम है। शारीरिक रूप से, ऐंठन परिसंच
Veer Keh Raha
जो न विस्तार में हैं, न संकुचन में, न सृष्टि में हैं, न प्रलय में, न अहं में हैं, न त्वं में, न द्वंद में हैं, न ही शांति में, जो हैं तो हैं
Divyanshu Pathak
हर व्यक्ति हर कार्य नहीं कर सकता। फूल में सुगंध है, फैला नहीं सकता। हवा माध्यम बनती है। पूरे वातावरण में सुगंध व्याप्त हो जाती है। सभी साधन, सुविधाएं हमारे माध्यम हैं। लेकिन भौतिक माध्यमों का मूल्य अघिक नहीं होता। जीवन को सार्थकता देने वाले माध्यम सर्वोपरि होते हैं। इनमें मां और गुरू सबसे महत्वपूर्ण हैं। मां जीवन का स्वरूप निर्माण करती है। गुरू गति प्रदान करता है। : आज मां केवल बाहरी जीवन का निर्माण कर रही है। इसीलिए बच्चे बडे होकर दूर चले जाते हैं। मां को अकेले ही बुढापा काटना पडता है। गुुरू भीतर के व
Divyanshu Pathak
जीवन हमारा शब्दों से भरा है। अपने शब्द, महापुरूषों के शब्द, शास्त्रों के शब्द, मीडिया और शिक्षा के शब्द, समाज के शब्द। कहीं ओर-छोर दिखाई नहीं पडता शब्द जाल का। मार्ग मिले कैसे आगे जाने का। हम कहते कुछ और हैं, करते कुछ और हैं। हर शब्द का अवसर के हिसाब से अर्थ निकालते जाते हैं। चलते जाते हैं। हमारा अहंकार शब्दों के आगे जाने नहीं देता। कहेगे विनम्रता, झुकेंगे भी, हां में हां भी भरेंगे, किन्तु करने में अहंकार भी होगा, रूखापन भी होगा और जरूरत लगी तो टकराव भी हो जाएगा। :💕👨 Good morning ji ☕☕☕☕☕☕☕☕🍫🍫🍫🍫🍉🍉🍉🍉🍎🍧🍧🍧🍎🍎🍎🍎🍇🍇🐒☕🍫🙋🍀☘ : विषय कोई भी हो, मनोदशा वही रहेगी। समर्पण तो बहुत दूर होगा। वैसे भी समर्पण जीवन का सबस
AB
( अनुशीर्षक ) तुम्हारे प्रश्नचिन्ह,. इन्हें देख कर मेरे मस्तिष्क की नाड़ियाँ हाँ थोड़ा संकुचन अनुभव करती हैं, परन्तु फिर सोचती हूँ. अगर तुम्हारे व्यथित मन
Divyanshu Pathak
सारे पुराणों को,उनके कथानकों को विज्ञान के फार्मूलों की तरह खोलना होगा। तब पहली बात तो यह स्पष्ट होजाएगी कि ब्रह्म शक्तिमान तो है, किन्तु क्रिया भाव नहीं है। जिसका पौरूष भाव बढ़ता चला जाएगा, उसका क्रिया भाव घटता जाएगा। रावण की तरह उग्र और उष्ण होता चला जाएगा। उसका गतिमान तत्व घटता चला जाएगा। तब उपासना से श्रद्धा और समर्पण अर्जित करके स्त्रैण बनना ही पडेगा। सृष्टि ब्रह्म का विवर्त तो है, दिखाई माया देती है ब्रह्म को अपने भीतर बन्द रखती है। प्रकृति में नर-मादा नहीं होते। दोनों पर सभी सिद्धान्त समान रूप से लागू होते हैं स्वरूप भिन्नता का नाम ही सृष्टि है। उनमें समानता देखना ही दृष्टि है। 🌹💐#पंछी😊🌻#पाठक🏵🔯🕉🔯🕉🔯🌷#कन्या🤗🏵😃#संस्कृति🌻💠😊#संस्कार🌹#शब्द🌹🕉🔯🤗#शक्ति🔯🕉🔯🕉🔯 कन्या का एक नाम षोडशी है। इसका अर्थ यह नहीं है कि वह सोलह साल की है
AB
( अनुशीर्षक ) यह गंध अम्नियोटिक द्रव की निःसंदेह संसार सबसे सुंदर महक होगी लिपी - पुती हुई है तुम्हारी नग्न देह पर, मेरी सूंघने की क्षमता को और ज़्यादा ती
AB
और फिर उस दिन तुमसे मिलकर मैंने जाना प्रेम का रंग नीला भी होता है,. प्रिय ज्योत ( Jyoti ), बहुत सी कविताएं पढ़ी, बहुत से पत्र पढ़े परन्तु यह पहली बार था जब मैंने नीलाभ प्रेम पढ़ा था,. और ज्ञात हुआ था प्रेम क