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Rimjhim Sharma
तुम्हें भारी पड़ेगा ज़माने के दस्तूर को बदलना कदम कदम पर टोके जाओगे मर्यादा में लिपटा ये जो लिबास है ना तुम्हारा वक़्त बेवक़्त स्त्री होने का एहसास करवा ही देगा। ©Rimjhim Sharma #स्त्रीत्व
Rachna panchhi
स्त्रीत्व श्रृंगार सिर्फ़ आकर्षित करने के लिए नहीं, यह एक जश्न है स्त्रीत्व में होने का।।।। ©Rachna panchhi स्त्रीत्व
Manoj Srivastava
स्त्री धरा स्वरुप है और पुरुष बीज है, उनके बीच स्नेह रुपी संबंध ही संसार का अस्तित्व गढ़ते हैं। जिस तरह वर्षा को जल, भूमि को सिक्त कर उसे उर्वरा कर देता है, फिर उसमें अंकुरित नव पल्लव नवजीवन का उद्भासक बनता है, उसी तरह परस्पर प्रेम स्त्री-पुरुष के जीवन को सूत्रबद्ध रखते हैं। #स्त्रीत्व
shivangi pathak
पुरूष जो जानना चाहता हैं स्त्री को , वो यहीं नहीं जानता , कि अगर वह जान लेगा, स्त्री को सम्पूर्णता , तो वह स्वयं स्त्रीत्व को प्राप्त कर लेगा.... ©shivangi pathak स्त्रीत्व..... #doubleface
shailja ydv
अकेले में कभी तुम खुद की तलाश कर लेना और हो सके तो अपने स्त्रीत्व की खोज भी कर लेना।। क्योंकि तुम सबकी सुनने के लिए ही पैदा नही हुई हो तुम अपनी ख्वाहिशों को मार कर दूसरों की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए नहीं बनी हो।। तुम्हारी भी गरिमा है, तुम्हारा भी अपना अस्तित्व है, तुम्हारे भी कुछ सपने हैं।। उठो और उन्हें नए आयाम दो।। और खुद की एक पहचान भी दो।। **शैलजा यादव** ©Shailja Yadav स्त्रीत्व #standAlone
pooja d
प्रत्येक वेळी विचार करते चिडायच नाही पण ती होतेच अगदी नकळतपणे, काय कारण असेल बर शोध घ्यायचा ठरवला..... मग हळूहळू कारण सापडायला लागली, कामाचा ताण इतका असतो की स्वतः च्या छंद जोपासता ही येत नाही, मग होते ती चिडचिड.... सर्वांचा आवडी निवडी जपत असताना मात्र स्वतः ला विसरून जाते..... मानसिक आधार हवा तसा भेटत नाही, कुणी समजून घेणार नाही मग होते ती चिडचिड...... #स्त्रीत्व #yqtaai
~आचार्य परम्~
।।नारी दशा।। 1.) स्त्रीयस्तेश् पत्रपण कर्मणः । अर्थ:-- जो पाप से लज्जा करे उसे स्त्री कहतें हैं 2.) लजन्ति हिता नित्यं स्वैरेष्वपि पुंभ्यैः अर्थ :-- जो पुरुषों के हित के लिए लज्जा करे वो स्त्री है स्त्री केवल शरीर के बनावट मात्र को नहीं कहा जाता है . एक आदरणीया और जगत्पूज्या स्त्री बनने के लिए त्याग, शालीनता, मर्यादा आदि कठोर नियमों से समन्वित होना पड़ता है. ऐसी स्त्रियों के लिए तो कहा गया है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता " । स्त्री योनी में जन्म लेने के पश्चात तदनुकूल आचरण न करके मनमाना आचरण करने वाली नारीयों के प्रति संवेदना रखना व्यर्थ है ये नारी के रूप में राक्षसी हीं है. जिस प्रकार ताड़का, सूर्पणखा, पूतना आदि नारी होते हुये अपूज्या हैं वैसे हीं मनमाना करने वाली नारीयों को इनके सदृश हीं मानना चाहिये।स्वधर्म का पालन करने वाली माताओं बहनों के प्रति मेरे हृदय में आपार आदर सम्मान हैं 🙏 नारी तो हैं पर नारीत्व नहीं है। नारी तो है पर लज्जा नहीं है । नारी तो है पर शीलता नहीं है। अपने मूलभूत गुणों के त्याग के कारण हीं स्त्रियों का सम्मान कम होते जा रहा है ।। ©परम् वै वास्तविक स्त्रीत्व