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sweta kumari
माँ शारदे की चिठ्ठी अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाई, मैंने पूछा-कौन हो भाई? डाकिये ने आवाज लगाई, आपके नाम की चिठ्ठी है आई। चिठ्ठी को उलट-पलट कर देखा,मेरे समझ ना आई मैंने पूछा ये चिठ्ठी कहाँ से आई, किसने भिजवाई। खैर, खोलकर देखा तो उसमें संदेश था भाई, अज्ञान के अंधेरे में सृष्टि है समाई। हाय!अब मनुष्यता भी हो गई पराई, भ्रष्टाचार के हलों से हो गई इसकी जुताई। गरीबों के बीच आज है भूखमरी छाई, ज्ञान की देवी बनकर मैं इस संसार में आई। विद्या से भी तूने कर ली ठगाई, हाय!मनुष्य तुझे जरा भी लज्जा ना आई। पापकर्म से तूने कर ली सगाई, ये पढ़कर मेरी आँखें भर आई। सच्चे ज्ञान के प्रकाश से, मानव मस्तिष्क की करनी होगी सफाई। पूरी चिठ्ठी पढी़ तो तब समझ मैं पाई, अरे,यह तो माँ शारदे की चिठ्ठी है आई। ✍️श्वेता कुमारी ©sweta kumari #one session व्यंग्य प्रधान कविता
Vikrant Kumar Vikki
पूजा करने से क्या होगा कर्म किया कीजिये बजाय प्रसाद बाटने को प्रसाद मेहनत का लीजिये आरती मंगल व्रत उपवास ये सारी बाते है बक़वास चाहे धर लो कितना भी ध्यान पर न होगा उससे कल्याण कर्म बड़ा है सबसे प्यारे आगे बढ़ोगे इसी के सहारे कर्म को अपना पूजा मानो इससे बड़ा न दूजा जानो।। सो करो कर्म पे विश्वास वरना होगा सत्यानाश।😇 कर्म की प्रधानता
Pradyumn awsthi
किसी भी इंसान के जीवन पर उसके कर्मों का 99% प्रभाव पड़ता है और केवल 1% ही उसका भाग्य जिम्मेदार होता है यदि मानव चाहे तो अच्छे कर्मों से अपने भाग्य को भी बदल सकता है इसीलिए मानव के लिए कर्म की प्रधानता बताई गई है ©"pradyuman awasthi" #प्रधानता कर्मों की
Imran Shekhani (Yours Buddy)
कमलेश
आसान मंज़िल पहले दोस्तों के साथ घूमने जाने के लिए घर में झूठ बोलते थे अब गर्लफ्रेंड के साथ घूमने जाने के लिए झूठ बोलते हैं ©expresslove हास्य व्यंग्य #shyari #व्यंग्य #Love
Rãjpøôt BãÑä Ãkâsh
हमें क्या फर्क पड़ता है, हमें क्या फर्क पड़ता है, अगर आज कोई ठोकर खाता हैं, कोई गड्डे में गिर जाता हैं, अरे भाई इसी से तो ही वोट बैंक बनता हैंI हमें क्या फर्क पड़ता है, अगर दो माले की बिल्डिंग 20 माले का होता हैं, चाहे उस बिल्डिंग में दबकर लोग मरता हैं, पर भाई पैसा तो उधर से ही मिलता हैंI हमें क्या फर्क पड़ता हैं, कोई भूखा मरता हैं, या कचरा प्लास्टिक खाता हैं, यार नेता है हमारा पेट तो भर जाता हैंI Writer Akash✍️ #व्यंग्य
Rakesh Kumar Dogra
"व्यंग्य" शब्द की व्यंजना शक्ति द्वारा निकला एक गूढ़ार्थ होता है। इतना आसान नहीं है तुमने मज़ाक बना रखा है। वो जहाँ होता है तुम्हे वहां तक घूमकर पहुंचना भी होता है। वो सीधे सीधे नहीं होता लच्छेदार होता है। अपने साथ एक खूबसूरत मोड़ लिए होता है। उसकी खिड़की से सारा दृश्य अभिसरित* होता है। *एक ओर केन्द्रित होता है। व्यंग्य
Mr. Singh Hindi Classes
ये तो माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन ख़ाक हो जाएँगे हम,तुमको खबर होने तक। व्यंग्य