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Sheel Sahab
अपने हुस्न का वार जरा धीरे से करना , मर्तबान भी शीशे का है, मेरा दिल भी नाजुक है.. #मर्तबान
Anamika
मर्तबान में रखे,पुराने अचार जैसी है तेरी यादें, कभी भी खोलूं, महक सांसों में घुल जाती है #यादें_तुम्हारी #मर्तबान #तूलिका #योरकोटहिन्दी
Kumaar Mausam
कम्बख्त हसीनाओ ने दिल तोड़ा हैं हर मर्तबा मेरा ; मर्तबान समझकर ..... _AwaraShayar✍ दिल मेरा मर्तबान by #KumarMausam #KaviKumarMausam #AwaraShayar #omeee07 #omHR02
ABHISHEK SWASTIK
अपना पूरा जीवन मर्तबान को तराशने में व्यतीत कर देते हैं, और वही मर्तबान उन्हे पानी को तरसा देते हैं😔 -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) माता पिता कुम्हार की तरह हैं अपना पूरा जीवन मर्तबान को तराशने में व्यतीत कर देते हैं, और वही मर्तबान उन्हे पानी को तरसा देते हैं😔 -©अभिषेक
Abhishek Asthana
अपना पूरा जीवन मर्तबान को तराशने में व्यतीत कर देते हैं, और वही मर्तबान उन्हे पानी को तरसा देते हैं😔 -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) माता पिता कुम्हार की तरह हैं अपना पूरा जीवन मर्तबान को तराशने में व्यतीत कर देते हैं, और वही मर्तबान उन्हे पानी को तरसा देते हैं😔 -©अभिषेक
Vijay Tyagi
यह मर्तबान.... अपना ही गिरेबान है.. जिसमें मानव झांककर देखता नहीं है.. यद्यपि अपनी नकारात्मकता सहेजता यहीं है.. मन रूपी कांच कलुषित हो गया है.. मानव स्वयं नहीं कर पा रहा अपने ऊपर दया है.. जरूरत ना कि ज्ञान बांटने की है.. वस्तुस्थिति अपने गिरेबान में झांकने की है...... उक्त पंक्तियां आदरणीय "सीमा शकुनी" जी के द्वारा "मर्तबान" के ऊपर लिखी गई रचना से प्रेरित होकर लिखी हैं... "सीमा शकुनी" जी बहुत ही प्रतिभाशाल
AK__Alfaaz..
क्या थीं वो, आग थीं, पानी थीं, आसमान थीं, खूँटियों पर टँगी, तस्वीरों की मुस्कान थीं, मिट्टी थीं, बिछौना थीं, संसार थीं, दरीचे से झाँकती, धूप का एहसास थीं, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में #क्या_थीं_वो..? क्या थीं वो, आग थीं, पानी थीं, आसमान थीं,
Vijay Tyagi
वक़्त-बेवक़्त नहीं हरवक़्त मुझे वो याद आया आया है मिलने गले देखो ईद के बाद आया उसके हाथों में हमेशा देखा तोहफा वस्ल का याद नहीं वो घर मिरे कभी खाली हाथ आया आकर आज खाली हाथ आया खाली हाथ नहीं रंजोगम तूफां-ए-आब भरके दिल में साथ लाया गोया के वक़्त ने उभार दी कुछ लकीरें पेशानी पे उमरदराजी उमर से पहले अपने ऊपर लाद लाया गुलदस्ता-ए-गम में मौजूं नौ-गुल चंद ख़ुशगवार थोड़ी कड़वी बातों संग थोड़ी मीठी याद लाया रफ़्ता-रफ़्ता ढलती शब में बुझने वाला है चराग मर्तबान में 'माशारत्ती' जुगनुओं की तादाद लाया विजय त्यागी "तुम आओगे, दर नज़र दोनों खुले पाओगे" वक़्त-बेवक़्त नहीं हरवक़्त मुझे वो याद आया आया है मिलने गले देखो ईद के बाद आया उसके हाथो
Vijay Tyagi
झील के किनारे टिमटिमाते सितारे उतर आए पेड़ों की टहनियों पर जुगनुओं के रूप में... ...शेष अनुशीर्षक में... झील के किनारे टिमटिमाते सितारे उतर आए पेड़ों की टहनियों पर जुगनुओं के रूप में, चाँद भी मचल उठा इन जुगनुओं के लिए हो गया तैयार आने को धरा पर
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर