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Sonam Jain

दोनों गुलाब की रचना मेरे द्वारा की गई है माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा से प्रेरित मेरी कविता👍👍 #MyPoetry #गुलाब #gulab #Love # #Music #India #Prem #pyaar #writersofinstagram #nojotopoetry #Nojotovoice #nojotohindi #nojotoenglish #nojotoapp #nojotomusic #Nojotocomedy #Kalamse #OpenPoetry #nojotosangam

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JALAJ KUMAR RATHOUR

यार कॉमरेड, आज रोज़ डे है।प्रेम के इस पावन पर्व का प्रथम दिन ।सच कहूं न यार तो मुझे नहीं पता कि क्यूं हम फूलों का सहारा लेकर अपने प्रेम के #जलज

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यार कॉमरेड,
आज रोज़ डे है।प्रेम के इस पावन पर्व का प्रथम दिन ।सच कहूं  न यार तो मुझे नहीं पता कि क्यूं हम फूलों का सहारा लेकर अपने प्रेम के खिलता हुआ देखना चाहते हैं।मुझे पता है कि तुम्हे गुलाब बहुत पसंद है और मुझे तुम।लेकिन किसी को पसंद करना उसे पा लेना नहीं होता, ये भी तो हमें समझना होगा।कॉलेज की क्यारियों से तुम्हारे लिए गुलाबो के फूलों को तोड़ना एक वक़्त में शौक था मेरा।सुबह सुबह तुम्हारे बस्ते में इन्हे रख ,अपने प्रेम को भारी महसूस करता था मैं।लेकिन जिस दिन तुमने माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता "पुष्प की अभिलाषा " सुनाई थी। उसी दिन से मैंने फूलों को तोड़ना छोड़ दिया था।सच बताऊं यार फूलों का सहारा लेकर खिलने वाला प्रेम जल्द ही मुरझा जाता है।शायद उसे किसी तितली या भंवरे की बद्दुआ लग जाती है।प्रेम में सिर्फ एहसासों का होना जरूरी है दिखावों का नहीं।जिस प्रकार हम प्रभु को सिर्फ भक्ति के माध्यम से पा सकते हैं फूलों और चादरों को दान करने से नहीं।उसी प्रकार हम किसी के प्रेम को पा सकते हैं उस पर विश्वास करके और उसका साथ देकर के।
....#जलज कुमार
हैपी रोज़ डे प्रिय कॉमरेड

©JALAJ KUMAR RATHOUR यार कॉमरेड,
आज रोज़ डे है।प्रेम के इस पावन पर्व का प्रथम दिन ।सच कहूं  न यार तो मुझे नहीं पता कि क्यूं हम फूलों का सहारा लेकर अपने प्रेम के

JALAJ KUMAR RATHOUR

प्लेसमेंट-एक सफल असफलता पार्ट-15 फरवरी का महीना शुरू हो चुका था। ये महीना हजारों दिलों के टूटने का बोझ अपने कंधे पर लिए सदियों से जी रहा है, #जलज

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प्लेसमेंट-एक सफल असफलता
पार्ट-15
फरवरी का महीना शुरू हो चुका था। ये महीना हजारों दिलों के टूटने का बोझ अपने कंधे पर लिए सदियों से जी रहा है,क्युकी इसको पता है कि दिल तोड़ने के साथ साथ ये उन दिलो को जोड़ता भी है, जो समाज में इसकी गरिमा को बनाये रखेंगे, गुलाब की कीमतें इस महीने में आसमान को छू लेती है। क्युकी लोग इसका प्रयोग अपनी अपनी प्रेमिकाओ को , जिन्हें वो अक्सर चाँद कहते है, को लुभाने में करते है, कई गुलाब, ख्वाब पूरे करते है। कई गुलाब ख्वाब तोड देते है,टूटना हमेशा ह्रदय को आघात पहुँचाता है फिर भी ना जाने क्यूँ लोग आसमान टूटते हुए तारों से दुआएं मांगते है, बचपन में दादी कहती थी "स्वप्निल जो व्यक्ति टूट जाता है ना,उसकी हाय और दुआए दोनो असरदार हो जाती है " आज ऐसा ही लगता है। 7 फरवरी की सुबह थी हॉस्टल के बाग में लगे गुलाब गायब हो चुके थे। सात दिन तक चलने वाले इस प्रेम के त्यौहार का आज पहला दिन था। आज गुलाबों  से सजे बुके और खुद को गुलाबों सा निखारती हुई लड़कियां ही नजर आ रही थी सड़को पर और उन गुलाबों की खुबसुरती पर मंडराते भँवरे, 
सड़को पर कई फूल बिखरे हुए थे। मुझे  इस समय फूलो की दुर्दशा देख छायावाद के कवि माखन लाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा की पंक्तियाँ" चाह नही, मैं सुरबाला के घहनो में गूंथा जाऊँ, चाह नही मैं विधप्यारी को लल चाऊँ" याद आ रही थी, तभी पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा "स्वप्निल, मुझे एहसास हो गया था। कि ये अवनी ही है। मैं पीछे मुड़ा तो देखा गुलाबी ड्रेस में गुलाब लग रही अवनी मेरे सामने खडी थी और मैं भँवरो सा उसके पास खड़ा हुआ था, प्रेम रोग भी ऐडी  की चोट जैसा होता है, जब तक खुद को ना लगे तब तक दूसरे के हालात समझ ही नही आते...
.... #जलज कुमार राठौर प्लेसमेंट-एक सफल असफलता
पार्ट-15
फरवरी का महीना शुरू हो चुका था। ये महीना हजारों दिलों के टूटने का बोझ अपने कंधे पर लिए सदियों से जी रहा है,

JALAJ KUMAR RATHOUR

यार कॉमरेड, आज जब पुरानी किताबों को बेचने के लिए पलट रहा था तो तुम्हारा दिया गुलाब मिला।बिल्कुल मुरझाया हुआ सा था मेरी तरह।मेरी आंखो में वो #जलज

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यार कॉमरेड,
आज जब पुरानी किताबों को बेचने के लिए पलट रहा था तो तुम्हारा दिया गुलाब मिला।बिल्कुल मुरझाया हुआ सा था मेरी तरह।मेरी आंखो में वो आखिरी रोज डे चित्रित होने लगा जो मैंने तुम्हारे साथ बिताया था।तुम्हारे दिए ग्रीटिंग कार्ड हो या पेन, मैंने सदैव सभी को सम्भाल के रखा था और मैं हर वो हर चीज संभालना चाहता था जिसे तुम्हारा स्नेह मिला था। 7 Feb की उस कड़कड़ाती ठंड में ,मैंने तुम्हारे लिए नहाया था।दादी बोलती थी कि कुछ अच्छा करने से पहले नहा लिया जाए तो वो कार्य अच्छे से पूर्ण होता है।उस रोज अपनी पॉकेट मनी के 20 रुपए बचा कर लिया था,तुम्हारे लिए वो पन्नी और हरी पत्तियों वाला गुलाब।बात पैसों की थीं और नहीं भी।सच बात तो ये है कि हम मध्यम वर्गीय परिवार के लड़के प्रेम बेहिसाब करते हैं पर प्रेम में थोड़ा हिसाब भी रखते हैं।हम लड़के होते ही ऐसे हैं सपने तो स्विट्जरलैंड के देखते हैं पर जा पाते हैं मनाली तक भी नही।जब क्लास में तुम्हे देखा तो सोचा दे दूं सबके सामने ये गुलाब तुम्हें।लेकिन तभी मेरे अंदर से आवाज आई" अपनी नहीं तो उसकी इज्जत का ख्याल रख"। मैं थम गया था उस वक्त और सपनों के संसार से निकाल कर वास्तविकता के समक्ष खड़ा था।मेरी उदासी को भांपते हुए जब तुमने आंखो से इशारे कर "क्या हुआ " पूछा तो थोड़ी हिम्मत आयी थी।छुट्टी होने के बाद मैंने तुम्हे वो गुलाब का फूल दिया तो तुमने भी मुझे गुलाब का फूल देकर ,मुस्कराते हुए कहा था "माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा कभी पढ़ना"।उस दिन से लेकर आज तक मैंने हजारों कविताएं और किताबे पढ़ी पर सदैव यही अफसोस था कि मैं कभी तुम्हारी आंखे नहीं पढ़ पाया।पता नहीं उनमें मेरे लिए क्या था।खैर जो भी था एक सुकुं देता था ।...#जलज कुमार

©JALAJ KUMAR RATHOUR यार कॉमरेड,
आज जब पुरानी किताबों को बेचने के लिए पलट रहा था तो तुम्हारा दिया गुलाब मिला।बिल्कुल मुरझाया हुआ सा था मेरी तरह।मेरी आंखो में वो

JALAJ KUMAR RATHOUR

प्लेसमेंट-एक सफल असफलता पार्ट-16 चमकदार छोटे छोटे सितारों से सजी अवनी की गुलाबी ड्रेस, माथे पर छोटी सी गुलाबी बिंदी और कानो मे गुलाबी नख से #जलज

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प्लेसमेंट-एक सफल असफलता  (पार्ट-16) 
चमकदार छोटे छोटे सितारों से सजी अवनी की गुलाबी ड्रेस, माथे पर छोटी सी गुलाबी बिंदी और कानो मे गुलाबी नख से जड़े झुमके, अवनी और मेरे प्रति उद्दीपन को प्रकट कर रहे थे। तभी अवनी ने कहा, " कहाँ खो गए मिस्टर स्वप्निल, मैंने मन में बड़बडाते हुए कहा, "तुम्हारी आँखो में', अवनी ने शायद पढ लिया था मेरे मन को, वो मुस्करा कर बोली, " तो बताओ कैसी लग रही हूँ मैं, मैंने हँसते हुए कहा ,"कतई जहर" , वो हंसती रही कुछ मिनिटो तक फिर बोली, "तो मिस्टर स्वप्निल मेरे लिए रोज वगैरा नही लाये मैंने अवनी की इस फरमाईश को सुनकर ,उसका हाथ थाम ,उसे डायेरेक्टर ऑफ़िस के सामने वाले बाग में ले गया, जहाँ गुलाब के   फूल खिले हुए थे। अवनी  को उन फूलों का स्पर्श  कराते हुए मैंने उसे छायावाद के कवि माखन लाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा की पंक्तियाँ" चाह नही, मैं सुरबाला के गहनो में गूंथा जाऊँ, चाह नही मैं विधप्यारी को लल चाऊँ.... हे वनमाली देना मुझे उस पथ पर फेंक,मातृ भूमि पर शीष चढ़ाने जिस पथ पर जावे वीर अनेक",अवनी मुझे देख रही थी और वो खामोश थी । खामोशी किसी भी चीज की अधिकता के पश्चात आती है और अधिकता तो संघर्ष से या संघर्ष के समय मिलती है, परंतु  अवनी खुश थी। शायद उसे पुष्प की अभिलाषा समझ आ गयी थी, जिसके आगे उसकी अभिलाषा बहुत ही छोटी थी। जब हम किसी की ख्वाहिश के लिए अपनी ख्वाहिश को भुला देते है। उस दिन हम माँ और प्रकृति का एक हिस्सा बन जाते है। क्युकी देने की भावना ही तो माँ और प्रकृति है। थोडी देर बाद हम लोग कैंटीन पहुँच गये। आज कैंटीन में केक और लड़को की जेब दोनो  कट रही थी। मगर फिर भी चारों तरफ खुशी का माहौल था। मगर अवनी इन सभी से अलग थी जो रुपयो के मामले मे बिल्कुल निष्पक्ष व्यवहार रखती थी। हमारी इसी बात पर तो झगड़े होते थे कि इस बार बिल मैं पेय करता हूँ पर अवनी अपना हिस्सा नही देने देती थी किसी को, शायद उसे लगता था कि किसी के बिल को चुकाने से हम उसके दिल के करीब हो जाते है, पर अवनी तो मेरे करीब पहले से ही थी, समोसा और पेस्टीज खाने के बाद हम चल दिये, लेक्चर लेने,पर अवनी ने कहा"स्वप्निल चल यार लंका होते हुए,अस्सी घाट चलते है, मैंने सिर हाँ में हिला दिया और हम निकल पड़े अस्सी घाट की ओर..... 
.... #जलज कुमार राठौर प्लेसमेंट-एक सफल असफलता
पार्ट-16
चमकदार छोटे छोटे सितारों से सजी अवनी की गुलाबी ड्रेस, माथे पर छोटी सी गुलाबी बिंदी और कानो मे गुलाबी नख से

Babu Dhaker

पुष्प की अभिलाषा #कविता

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Neeraj Kumar

"पुष्प की अभिलाषा"

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Anokhi

# पुष्प की अभिलाषा....! #कविता #nojotovideo

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RK SHUKLA

पुष्प की अभिलाषा #कविता

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पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं, मैं सुरबाला के 
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
माखनलाल चतुर्वेदी पुष्प की अभिलाषा

पवन प्रकाश मिश्रा

पुष्प की अभिलाषा

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