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Ajay Shrivastava
Girl quotes in Hindi आनंद का समय था वही, ईश्वरीय गुणों से जिसकी रचना हुई। स्नेह के सभी भावों से युक्त, प्रकृति की अलंकृत संरचना हुई। जब हुई थी वह उसके परिवार में, लक्ष्मी का संदर्भ दिया था सबने। हताश मन से समाज को, बस वह सोचे जा रही है। क्या देवी का संदर्भ, सच में समाज समझ पा रहा है। पल पल बढ़ती हुई वह, अपने कष्ट को सोच रही है। समाज के रूढ़िवादी दृष्टिकोण को, वह अब समझ रही है। त्रेता में सीता, द्वापर में द्रौपदी ! सबका हाल सोच रही है। कलयुग के समाज के आईने में, स्वयं का प्रतिबिंब देख रही है। लक्ष्मी का संदर्भ पाकर, क्यों वह अब कोसे जा रही है। आखिर झूठे सम्मान का भाव दिखा कर, वो छली जा रही है। समाज की विषमता को समझकर, वो बस लड़ती जा रही है। अपनी इच्छाओं को दबा कर, वह जीवन पार की जा रही है। उसकी इच्छाओं का वास्तविक सम्मान कर, वह आस लगाए जा रही है। अपने विचारों में उलझकर, वह हताश हुई जा रही है। भविष्य की चिंता में, न वह बढ़ पा रही है। समाज के विभिन्न प्रसंगों से, अपमानित हुई जा रही है। चरित्र की पराकाष्ठा का प्रमाण, प्रत्येक क्षण दिए जा रही है। लक्ष्मी के संदर्भ की आस का, आशय में मन में संजोए जा रही है। आकाश से ऊंचे गौरवगान के लिए, स्वर दिए जा रही है। बस बढ़कर कुछ कर पायें, वह दिखाने का संकल्प लिए जा रही है। लक्ष्मी, अहिल्या आदि के चरित्र प्रमाणों से, खुद को दृढ़ किए जा रही है। ©Ajay Shrivastava स्त्री- एक स्पर्श और एक स्पर्श पहचान
Sanjay Ashk
राजनीति लगी है बराबर अपने काम पर लोगों को बांट रही जाति-धर्म के नाम पर मंदी,मंहगाई,बेरोजगारी हद से बडी हुई है और वो CAB,NRC थोंप रहे है अवाम पर। संजय अश्क, 9753633830 अवाम् पर
Raj Bhandari
union budget memes अब इससे बेहतर सुन ऐ मेरे यार और क्या होगा, अवाम से उसके प्यार का इज़हार और क्या होगा #NojotoQuote अवाम
Satyavan Singh
आज एक तस्वीर को आवाज देते देते, खुद आवाज बन गया । उस आवाम का, जो गरीबी,मुफलिसी और मुश्किलों में, जी रही थी। लोकतंत्र के हुक्मरान पार्लियामेंट में थे, मैं सड़कों पर था। उनकी मुफलिसी और शोषण को , प्रतिरोध की आवाज दे रहा था। उनके संघर्षो को अपनी आवाज से, नई धार दे रहा था। तभी तो उनकी आवाज बन पाया, नए दौर में इंकलाब ला पाया। ©Satyavan Singh अवाम की आवाज
SANDEEP MUNGARIA
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं मय-कदा ज़र्फ़ के मेआ'र का पैमाना है ख़ाली शीशों की तरह लोग उछलते क्यूँ हैं मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख़्वाब आ आ के मिरी छत पे टहलते क्यूँ हैं मैं न जुगनू हूँ दिया हूँ न कोई तारा हूँ रौशनी वाले मिरे नाम से जलते क्यूँ हैं लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं.... Urdu poetry words meaning in hindi👇 (मय-कदा-शराब पीने की जगह ज़र्फ़-बरतन मेआ'र-मापदंड,मानक) ©SANDEEP MUNGARIA अवाम की मुफ़्लिसी...