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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश
ओस भले ढंक लें भौतिक दृश्य पर मन के भाव तो मन से देखे जाते हैं। मैं तो देख पाता हूँ और तुम।। शुभ दिन। गिरीश पोएम
Ashish Penart
उम्मीद राह बना देती है हर पत्थर में, कभी कभी मंजिल दिखाती है जुगनू की रौशनी भी। आशीष पोएम
Ali sir (A+A)
जो किसान का नहीं हो सकता है वो भारत माँ से प्रेम भी नहीं करता है स्वाभाविक है किसान अन्नदाता है और राष्ट बिना अन्न के नहीं चल सकता है... (रविन्द्र नाथ टैगोर) ©A. R. Zaidi रबीन्द्रनाथ टैगोर
D.M Bhosale
मुजोर मुजोर झालीय नोकरशाही उन्मत्त झालेत बाबू कुणाचाच नाही राहिला यांच्यावरती काबू काम चिमूटभर त्याला लाच खिसाभर सर्वदूर पाहिले तरी कारभार लालफिती ढेकणागत गरिबांचे रक्त सारे पिती हक्काच्या कामापायी मारावे किती खेटे तेंव्हा कुठे ७/१२ सारखा एखादा कागद भेटे जाग्यावर नसते कुणीच मोकळे असतात टेबल काय बोलावे तर प्रत्येकावरती पुढाऱ्याचे लेबल शौचालयाच्या अनुदानासाठीही द्यावी लागते लाच कुणाचीच कशी नाही यांच्यावरती टाच स्वार्थासाठी साहेबाची भांडीकुंडी घाशी हरामी साल्यांची जिंदगी अशी कशी ~DMB पोएम
Abhishek Singh
एक लेखक ना जाने कितना कुछ लिख जाता है इतिहास के बारे मे एक कलाकार अपनी कला से ना जाने कितना कुछ दिखा जाता है लेखक से आज पूरी दुनिया का इतिहास जिन्दा है लेखक से आज बने हुए इतिहास का काल ज़िंदा है लेखक एक ऐसा गुमनाम चेहरा है जो हमेशा अपनी बात छिप के करता है कभी अपना चेहरा नहीं दिखता बस अपनी बात कह के उलटे पाव चल जाता है लोगो को एहसास भी नहीं हो पाता की आज जो हम बोल रहे है जो हम लिख रहे है वो एक लेखक की प्रतिक्रिया है जिसमे हर इंसान अनुकूल है #रबीन्द्रनाथ टैगोर
Abhishek Singh
एक लेखक ना जाने कितना कुछ लिख जाता है इतिहास के बारे मे एक कलाकार अपनी कला से ना जाने कितने किरदार निभाता है लेखक से आज पूरी दुनिया का इतिहास जिन्दा है लेखक से आज बने हुए इतिहास का काल ज़िंदा है लेखक एक ऐसा गुमनाम चेहरा है जो हमेशा अपनी बात छिप के करता है कभी अपना चेहरा नहीं दिखता बस अपनी बात कह के उलटे पाव चल जाता है लोगो को एहसास भी नहीं हो पाता की आज जो हम बोल रहे है जो हम लिख रहे है वो एक लेखक की प्रतिक्रिया है जिसमे हर इंसान अनुकूल है #रबीन्द्रनाथ टैगोर