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संगीत कुमार

(दिन बीत गये) क्या खूब थे वो दिन,जो बीत गये। विद्यालय से महाविद्यालय की ओर चल दिये।। महाविद्यालय में शिक्षण प्रशिक्षण कर लिये। गंगा किना

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(दिन बीत गये)

क्या खूब थे वो दिन,जो बीत गये। 
विद्यालय से महाविद्यालय की ओर चल दिये।। 
महाविद्यालय में शिक्षण प्रशिक्षण कर लिये। 
गंगा किनारे काली मंदिर घाट बैठ गये।। 
क्या  खूब थे वो दिन,जो बीत गये। 

कभी चिड़ियाखाना घूमे  । 
कभी संग्रहालय का अवलोकन  किये।। 
गांधी मैदान जा कुछ झण बैठ गये। 
क्या खूब थे वो दिन,जो  बीत गये।। 

पुनाईचक के लौज का भी वो दिन बीत गये। 
घर बैठ तैयारी सब खूब किये।। 
सहपाठी संग मिलजुल वाद -विवाद किये। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

शाम होते ही चाय पीने निकल पड़े। 
मंदिर ,जा देव दर्शन किये।।
सब्जी खरीद घर आ गये। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

छोटे भाई भी साथ रहे। 
नौकरी भी वो पहले किये।। 
अब तो मन मेरा भ्रमित हुआ। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

सब साथी साथ रेल में चलते थे। 
बिना टिकट भारत दर्शन करते थे।। 
परीक्षा दे घर लौटते थे। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

जबलपुर आने से  घबराते थे। 
टी टी धड़पकड़ खूब करते थे।। 
पर गाड़ी से न उतरते थे ,कोना पकड़े रहते थे। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।।

संगी साथी सब काम पकड़ लिये।
विवाह शादी सब कर लिये ।।
चाचू भी हम बन गये। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 


सब मिलजुल तैयारी खूब किये।
कोई हाकिम तो कोई बैंक पी़ओ़ बने। । 
हम बने लेखा बाबू ,रेल में माथा घीस रहे। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

सब एक-दूसरे से बिछुड़ गये। 
अब न एक-दूसरे से मिल रहे।। 
नया घर संसार सब बसा लिये। 
क्या  खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

  ©संगीत कुमार /जबलपुर 
     ✒️स्व-रचित 🙏🙏 (दिन बीत गये)

क्या खूब थे वो दिन,जो बीत गये। 
विद्यालय से महाविद्यालय की ओर चल दिये।। 
महाविद्यालय में शिक्षण प्रशिक्षण कर लिये। 
गंगा किना

संगीत कुमार

(दिन बीत गये) क्या खूब थे वो दिन,जो बीत गये। विद्यालय से महाविद्यालय की ओर चल दिये।। महाविद्यालय में शिक्षण प्रशिक्षण कर लिये। गंगा किना

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(दिन बीत गये)

क्या खूब थे वो दिन,जो बीत गये। 
विद्यालय से महाविद्यालय की ओर चल दिये।। 
महाविद्यालय में शिक्षण प्रशिक्षण कर लिये। 
गंगा किनारे काली मंदिर घाट बैठ गये।। 
क्या  खूब थे वो दिन,जो बीत गये। 

कभी चिड़ियाखाना घूमे  । 
कभी संग्रहालय का अवलोकन  किये।। 
गांधी मैदान जा कुछ झण बैठ गये। 
क्या खूब थे वो दिन,जो  बीत गये।। 

पुनाईचक के लौज का भी वो दिन बीत गये। 
घर बैठ तैयारी सब खूब किये।। 
सहपाठी संग मिलजुल वाद -विवाद किये। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

शाम होते ही चाय पीने निकल पड़े। 
मंदिर ,जा देव दर्शन किये।।
सब्जी खरीद घर आ गये। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

छोटे भाई भी साथ रहे। 
नौकरी भी वो पहले किये।। 
अब तो मन मेरा भ्रमित हुआ। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

सब साथी साथ रेल में चलते थे। 
बिना टिकट भारत दर्शन करते थे।। 
परीक्षा दे घर लौटते थे। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

जबलपुर आने से  घबराते थे। 
टी टी धड़पकड़ खूब करते थे।। 
पर गाड़ी से न उतरते थे ,कोना पकड़े रहते थे। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।।

संगी साथी सब काम पकड़ लिये।
विवाह शादी सब कर लिये ।।
चाचू भी हम बन गये। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 


सब मिलजुल तैयारी खूब किये।
कोई हाकिम तो कोई बैंक पी़ओ़ बने। । 
हम बने लेखा बाबू ,रेल में माथा घीस रहे। 
क्या खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

सब एक-दूसरे से बिछुड़ गये। 
अब न एक-दूसरे से मिल रहे।। 
नया घर संसार सब बसा लिये। 
क्या  खूब थे वो दिन, जो बीत गये।। 

  ©संगीत कुमार /जबलपुर 
     ✒️स्व-रचित 🙏🙏 (दिन बीत गये)

क्या खूब थे वो दिन,जो बीत गये। 
विद्यालय से महाविद्यालय की ओर चल दिये।। 
महाविद्यालय में शिक्षण प्रशिक्षण कर लिये। 
गंगा किना
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