Nojoto: Largest Storytelling Platform

New बहुव्रीहि Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about बहुव्रीहि from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, बहुव्रीहि.

    PopularLatestVideo

जगदीश कैंथला

द्वंद्व, बहुव्रीहि समास #बात

read more
mute video

Jyoti choudhary

कनन्हिया जी राधा जी के पास हो या न हो हमेशा " करीब " ही रहते है यही तो प्रेम है . . Let's Follow Guys 👉PankuWriter Collab Challenge With 👉 #lovequotes #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine

read more
कन्हैया तेरे आदते ही निराली हैं 
तभी तो हम तेरे दिवाने हैं  कनन्हिया जी राधा जी के पास हो या न हो हमेशा " करीब " ही रहते है यही तो प्रेम है
.
.
Let's Follow Guys
 👉#PankuWriter
Collab Challenge With
👉

Anamika

कनन्हिया जी राधा जी के पास हो या न हो हमेशा " करीब " ही रहते है यही तो प्रेम है . . Let's Follow Guys 👉PankuWriter Collab Challenge With 👉 #lovequotes #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine

read more
   मैं एक इश्क हूं, और तू मेरी आदत,
    जन्म जन्मांतर चलती रहेगी ये इबादत
     कनन्हिया जी राधा जी के पास हो या न हो हमेशा " करीब " ही रहते है यही तो प्रेम है
.
.
Let's Follow Guys
 👉#PankuWriter
Collab Challenge With
👉

रजनीश "स्वच्छंद"

समास।। मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ, एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ। मध्य पदों को छोड़ कर, मैं समस्त पद बना। पहले लगा जो पूर्वपद, अंत मे उत्तरपद जना। #Poetry #Quotes #Knowledge #kavita

read more
समास।।

मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ,
एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ।
मध्य पदों को छोड़ कर,
मैं समस्त पद बना।
पहले लगा जो पूर्वपद,
अंत मे उत्तरपद जना।
नकचढ़ी या हथकड़ी,
मैं हूँ शब्दों की लड़ी।
एक वाक्य को समा लिया,
किया लघु तेरी घड़ी।
तेरे मुख चढ़ा रहा,
मैं भक्तियों का लोप कर।
कभी बदल दूँ अर्थ तो,
न दुख मना न क्षोभ कर।
भेद मेरे जान ले,
सिमटता हूँ छः प्रकार में।
काव्य गीत लेख कथा,
गूंजता हूँ अलंकार में।
अव्यय जो आगे चल रहा,
अव्ययीभाव मुझको बोलते।
प्रथमपद प्रधान है,
जो वाणी-तुला ले तोलते।
प्रतिदिन, प्रतिपल,
यथाशीघ्र यथाशक्ति हो।
आमरण निर्विकार भी,
अनुरूप यथाभक्ति हो।
प्रधान हुआ जो दूसरा,
मैं तत्पुरुष बन जाता हूँ।
कारकों का लोप कर,
नवशब्द हो तन जाता हूँ।
तुलसीदासकृत धर्मग्रंथ,
राजपुत्र रचनाकार हूँ।
देशभक्ति राजकुमार,
मनुजहित गीतासार हूँ।
कर्मधारय मैं हुआ,
उत्तरपद ही प्रधान है।
विशेष्य संग विशेषण,
उपमेय संग उपमान है।
प्राणप्रिये चंद्रमुखी,
श्यामसुंदर नीलकमल।
अधमरा देहलता,
परमानन्द चरणकमल।
उत्तरपद और पूर्वपद का,
सामंजस्य खास है।
आगे अंक या पीछे अंक,
यही द्विगु समास है।
पंचतंत्र या नवग्रह,
ये त्रिलोक त्रिवेणी है।
चौमासा नवरात्र कहो,
ये पंचप्रमान अठन्नी है।
पद न कोई गौण हो पाए,
दोनों रहें प्रधान ही।
द्वंद्व समास कहायें ये,
रखते दोनों का ध्यान भी।
नर-नारी और पाप-पुण्य,
सुख-दुख ऊपर-नीचे है।
अपना-पराया देश-विदेश,
गुण-दोष आगे-पीछे है।
मैं छीनू परधानी सबकी,
पद मैं तीजा बनाता हूँ।
अपना मतलब रहूँ छुपाये,
बहुब्रीहि कहलाता हूँ।
वीणापाणि और दशानन,
लंबोदर पीताम्बर हूँ।
चक्रधर और गजानन,
मैं घनश्याम श्वेताम्बर हूँ।
मेरी बातों को गांठ बांध लो,
काम तेरे मैं आऊंगा।
ले रहा जो छोटा विराम अभी,
फिर आ मैं भरमाउंगा।

©रजनीश "स्वछंद" समास।।

मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ,
एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ।
मध्य पदों को छोड़ कर,
मैं समस्त पद बना।
पहले लगा जो पूर्वपद,
अंत मे उत्तरपद जना।
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile