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mangalviras
इस इन्सानी जिवन मे इन्सान को किसी की व्यथा और भगवान की कथा दोनो ही सुननी पडती है ः क्योंकि की किसी भी व्यथा का निवारण जितना भगवान की कथा सै हो सकता है ः उनता तो किसी की भी सलाह या सुझाव सै नही होता ः ः।।मंगल विरास ।।ः ©mangalviras व्यथा का निवारण
Parasram Arora
व्यथा का आध्यात्म समझना हो तो पहले व्यथित होना सीखना पड़ेगा या उस व्यथा क़ो लानेके लिये संवेदनक्षमता क़ो बढ़ाना पड़ेगा कितनी बार होती है कोशिश व्यथा क़ो बाहर लाकर उसे खुली हवा में सांस लेने दिया जाय और सहानुभूति के उपहारों से नवाज़ा जाय ताकि उसके दंश क़ो थोड़ा कम कर दिया जाय... किसी के कंधो का सहारा लेकर उसका दामन आंसुन से भिगो दिया जाय लेकिन एक कठोर ह्रदय अपनी व्यथा की कथा क़ो कह पाने में असमर्थ रहता है या अपने भीतर की बात क़ो कह कर खुद क़ो. छोटा साबित नही करना चाहता ©Parasram Arora व्यथा का आध्यात्म
Parasram Arora
Happy Rath Yatra लोग कहते हैँ ँइन गीतों मे कोई शाश्वत सार नही है ये तो दुख का ही सरगम है सुख की मधु मनुहार नही है कंण कंण मे पीड़ा मुस्काती अम्बर की पलकें भीगी धरती रोये पर मैं. गाऊँ मुझको यह मंजूर नही है ©Parasram Arora दुख का सरगम.....
NEHA SHAAH
काय सांगू मी या जगाला आपले आपले रडगाणे सगळ्यांचेच इथे पर्वा आहे का कोणाला ? नमस्कार मित्रहो आताचा विषय आहे व्यथा माझी... #व्यथा #व्यथा1 #collab #yqtaai #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Taai
सिन्टु सनातनी "फक्कड़ "
कल देखा रावण कौ ऐसे हाथों जलतेे, जो श्री राम, के मर्यादा का करते है ना जो अनुसरण, था रखा उसने पहन चौला राम का लेकिन था ना वो अभिमानी लंकेश के संयम से अवगत, देख अमर्यादित हाथों में राम का धनुष दशानन भी बोल पड़ा, किस निर्लज्जता से तुम मुझे जलाने आये हो, मैने बैशक सीता हरण का कर्म कु था किया, लेकिन उसकी सजा तो मैनें लाखो बर्ष पहले अपने प्रियजनो महल अट्टालिका खोकर सीताप्रिय के हाथों था पाया, तुम जिस विजय के बदले ये आडम्बर रचाते हो, तुम्हें पता भी वो रास्ता मैनें क्यों था अपनाया, कटी नाक लिए खड़ी थी भगिनी (बहन) भरी सभा में मेरी, सूर्पनखा ने वृतांत विस्तार से था मुझे बताया, मैं दानव हठी था तो क्या? लेने भगिनी के अपमान का प्रतिशोध था मुझे अधिकार नहीं, था मुझे ज्ञात की अवतार है श्री राम भगवान का, था ना जीत मैं सकता जिससे, फिर भी मैनें अपने भगिनी के अपमान का प्रतिशोध लेने का था ठाना, बेशक हरण सीता का था किया, लेकिन मर्यादा मैनें भी था दिखलाया, संयमित होकर ही पास था उसके आया, तो सुनो ऐ पाखंडीयो, वेदना मेरी इससे कुछ और हो नहीं सकता, जो पाया था मोक्ष लाखो बर्ष पहले मरकर श्री राम के हाथों सत्ययुग में, उसे जलना पड़ता है हर साल अमर्यादित हाथों कलयुग में। पतित पावन राम ना बन सको तो रावण बनकर हि आना, नारी के सम्मान में संयम तनिक मुझसा तो दिखाना, फिर चाहो तो हर साल दशहरे में ही क्यों हर रोज ये आडम्बर रचाना, और तील-तील मुझे जलाना, मुझे पीड़ा नहीं जलने मे मुझे तुम बेसक जलाऔ, लेकिन राम ना सही रावण तो बन आऔ, फिर भी लगता है तुम बेहतर हो मुझसे तो, वो पड़ी अगनी वान अब मुझपर चलाऔ, और मुझे जलाकर फिर साल भर के लिए सो जाओ। ©फक्कड़ मिज़ाज अनपढ़ कवि सिन्टु तिवारी #रावण का रुदन(व्यथा) #nojotoapp #nojotohindi #nojotonews
Rk
मैं एक पंछी मारा मारा फिरता हूंँ ना किधर जगह है मेरा आशियाँना बनाने की फिर लाचार होकर किसी के घर मे अपना आशियाँना बनाता हूँ जब बच्चों को छोड़कर जाता हूँ घोसले मे चिंता में डूबा रहता हूँ कोई मेरे इस आशियाँने को कर देना तितर-बितर मैं एक पंछी मारा मारा फिरता हूँ ©Rk पंछी की व्यथा# पंछी का दर्द #पँछी
Usha Dravid Bhatt
मैं कहां तुम्हें संदेश भेजूं उर की व्यथा का अवशेष भेजूं, सकल घन उमड़ते चले हैं विरह के पथ में खो गए हैं स्वांस जो अटकी कमल में विश्वास हीन श्रृंगार भेजूं, मैं कहां तुम्हें संदेश भेजूं । आंखों के कम्पित रुदन में सपनों के सुरभित चमन में क्षितिज की पावस परिधि में उषा किरण संग प्राण भेजूं, मैं कहां तुम्हें संदेश भेजूं । दामिनी सा विकल मन है विरह में बहती पवन है तड़ित गति से जलती शिराएं स्निग्ध पलकों में विषाद घन है अश्रुओं के प्रणय रथ में बुझती चिता की राख भेजूं , मैं कहां तुम्हें संदेश भेजूं उर की व्यथा का अवशेष भेजूं ।। ©Usha Dravid Bhatt उर की व्यथा का अवशेष कैसे ......... #NAPOWRIMO