निरंतर हो रही प्रेम की पीड़ाएं क्षणिक खत्म कहाँ होती हैं,
खत्म होती हैं, तो उनकी आशाएँ और आकांक्षाएं,
जो रह रह कर ये आभास दिलाती हैं, कि मृत #prem_nirala_
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Prem Nirala
कविताएँ वो नहीं, जो कही और सुनी जाती हैं, "कविताएँ वो! जो ढलती साँझ के अंधेरों में, नींद से भरी कई दिनों की थकी ऊँघती आँखों के कोरों से बहते #prem_nirala_