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Vishal Vaid
ਢੰਗ ਕੌੜੇ ਸੀ ਵਿਰਿਹ ਵਾਲੀ ਸੱਪਣੀ ਦੇ ਮੈਂ ਬੜਾ ਤੜੱਪੀਆਂ ਤੇ ਹਿੱਲਿਆ ਪਿਆਸ ਬੜੀ ਸੀ ਤੈਨੂੰ ਵੇਖਣ ਦੀ ਪਰ ਇਕ ਬੁੰਦ ਪਾਣੀ ਵੀ ਨ ਮਿਲਿਆ ਚਾਹ ਬੱਸ ਇਨੀ ਸੀ ਕਿ ਤੈਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਚੱਲਣ ਸਾਹ ਮੇਰੇ ਪਰ ਮੇਰੇ ਅਰਮਾਨ ਦਾ ਇਹ ਫੁੱਲ ਕਦੀ ਵੀ ਨਹੀਂ ਖਿਲੀਆ ਯਾਦਾਂ ਤੇਰੀ ਜਧ ਵੀ ਆਈ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਹਰਫ਼-ਹਰਫ਼ ਲਿਖਿਆ ਹਜੂਮ ਇਨਾਂ ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਦਾ ਦਿਲ ਵਿੱਚ ਸਾਹ ਵੀ ਮੇਰਾ ਬੜਾ ਔਖਾ ਨਿਕਲਿਆ #ਪੰਜਾਬੀ #yqpunjabi #ਯਾਦਾਂ #yqbhaji बस ऐसे ही कभी कभी ख्याल बस , शिव कुमार बटालवी और अमृता जी को पढ़ने के बाद जैसे सारी स्कूल वाली पंजाबी ए
_suruchi_
उछल उछल कर चलती थी एक सरिता नन्ही सी जाने कैसी प्यास थी एक अनोखी आस थी उसको तो बस चलना था सागर से एक दिन मिलना था सागर भी तो लहराता था शांत प्रशांत दिखलाता था मन ही मन में हलचल थी कैसे वह इतनी चंचल थी वह प्यार से फसल उगाती थी क्रोध में उतपात भी मचाती थी सागर, ज्ञान का भंडार तो है अनमोल रत्नों का कोठार भी है आसमान के तूफान हाथ मे है पाँव तले पाताल भी है फिर भी क्यों ये भूचाल उठे सागर सीमा न लांघ सके जो गोद मे आये ये सरिता प्यार से इतराये नन्ही गुड़िया ©_suruchi_ उछल उछल कर चलती थी एक सरिता नन्ही सी जाने कैसी प्यास थी एक अनोखी आस थी उसको तो बस चलना था सागर से एक दिन मिलना था सागर भी तो लहराता था
Shruti Gupta
काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर, सपनो के बोझ को लादे, कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई। अनजान सी, निर्भीक हो कर छोटी सी उस पोखर में, अपने काग़ज़ की कश्ती को दौड़ना भूल गई। पुष्प की कलियों से बाते, सांझ में छुप कर वो बरामदे से घंटो तक पथिक को तकना ही मै भूल गई। राह में भी वो बड़े गुब्बारे, उछल उछल कर मुझे दुलारे, क्रोध को सरल भेट से आज भूलना भूल गई। राह में सबसे तेज ही जाना, मां बाबा को संग दौड़ना, गुड़ियों पर जान लुटाना, आज खुदी भूल गई! युवापन की इस आगत में, वयस्क होने की बालवत में हस कर दुख की चाह में, हाय बचपना भूल गई! काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर, सपनो के बोझ को लादे, कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई। अनजान सी, निर्भीक हो कर छोटी सी उस पोखर में, अप
amar gupta
काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर, सपनो के बोझ को लादे, कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई। अनजान सी, निर्भीक हो कर छोटी सी उस पोखर में, अपने काग़ज़ की कश्ती को दौड़ना भूल गई। पुष्प की कलियों से बाते, सांझ में छुप कर वो बरामदे से घंटो तक पथिक को तकना ही मै भूल गई। राह में भी वो बड़े गुब्बारे, उछल उछल कर मुझे दुलारे, क्रोध को सरल भेट से आज भूलना भूल गई। राह में सबसे तेज ही जाना, मां बाबा को संग दौड़ना, गुड़ियों पर जान लुटाना, आज खुदी भूल गई! युवापन की इस आगत में, वयस्क होने की बालवत में हस कर दुख की चाह में, हाय बचपना भूल गई! काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर, सपनो के बोझ को लादे, कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई। अनजान सी, निर्भीक हो कर छोटी सी उस पोखर में, अप
Avinash Jha
देश मेरा बदल रहा गांधी की लाठी आज फिर हारी थी बंदूक की नोक पर खड़ी इंसानियत थी मुक़ बन तमाशा जहाँ देख रह पुलिस खड़ी तालियां बजा रही आवाज उठाने को कल तलक़ जो देश प्रेम था अपनी ही बात कहने को आज बना देसग द्रोह था धर्म की चर्चा प्रेम की निशानी थी संप्रभुता की बातें अब गद्दारी सी थी जल पूरा मेरा ही देश रहा था कही अग्नि सीने में धड़क रही थी कही लिवास देख नज़रें जल रही थी सच में देश मेरा बदल रहा था ©avinashjha 【 Read full poem in Caption】 गांधी की लाठी आज फिर हारी थी बंदूक की नोक पर खड़ी इंसानियत थी मुक़ बन तमाशा जहाँ देख रह पुलिस खड़ी तालियां बजा रही बाहर मौसम सर्द पड़ा था दिलों
Sarita Shreyasi
मेरी ही कही बातें दुहरा कर, अब मुझको ये बहलाने लगी है, स्नेह की दिव्य औषधि लगा कर, सबकी पीड़ा सहलाने लगी है, मेरी अंगुली थाम कर चलने वाली आज, अपने सहारे से मुझे चलाने लगी है, बात-बात पर मेरे सीने से, चिपक जाने वाली बंदरिया, आज मुझे अपना भरोसा दिलाने लगी है, भावनाओं के मध्य भँवर में,बिटिया, मेरी उम्मीद,मेरी खेवैया हो गयी है, मुझे मैया बुला कर धन्य करने वाली, आज पूरे घर की बूढ़ी मैया हो गयी है। एक दिन की बात है, बेटी तीन की होने को थी, धूप मद्धम हो चली थी, शाम भी कहीं खोने को थी, मेरे पैर के अंगूठे में चोट लगी, जख्म ताजा ,दर्द ज्याद
Anil Siwach
Anil Siwach