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सुरेश चौधरी
भद्रं भद्रं कृतं मौनं कोकिलैर्जलदागमे दर्दूराः यत्र वक्तारः तत्र मौनं हि शोभते वर्षा के आरम्भ में, कोयल होती मौन सुन मेढक के शोर में, ज्यादा बोले कौन टर्र टर्र
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी टर्र टर्र सियासी ,फसल काटने वोटो की सियासी लोग आने लगे है पूरे ना कर चुके वायदे अपने वे नये जुमलो के सपने दिखाने लगे है गिरगिट से भी आगे रंग बदलते देश राष्ट्र की कीमत घटाने लगे है वोट देना सिर्फ सियासी मसला है जीतकर वो शतरंज शकुनि जैसी बिछात बैठाने लगे है मात जनता को देकर,अरबो चुनावी ब्रांड पाने लगे है सरकारी खजाने में सेंध लगाकर कर्जदार देश को बनाने लगे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #truecolors टर्र टर्र सियासी #nojotohindi
Abhay Bhadouriya
तुम्हारे जाने का यथार्थ तुम्हारे होने की कल्पना से कहीं ज्यादा दु:खद और भारी था भारी होना दु:ख की प्रकृति है प्रकृति का नियम भी अजीब है
Hardik Agarwal
बारिश (2/2) हैरत है मेरे गालों से गर्दन और फिर सीने से पैरो तक मैं भीग चुका था मगर सर अब भी सूखा कैसे? ना हवाओं में नमी थी ना मिट्टी की सौंधी महक ना मेंढकों की टर्र टर्र, ना पंछियों की चहक एक अजीब सा सन्नाटा था माहौल में एक काग़ज़ की कश्ती भी दिखी जिसमें शायद मेरे अरमान सवार थे कुछ दूर तो तैरी मगर फिर थोड़ा डगमगा कर वो भी गोता खा गई ख़ैर अब जो मौसम कुछ खुला है, याद आया सिरहाना भी सुखाना है नाजाने ये बेमौसम की बरसात थी या सावन बेईमान था मगर बीती रात बारिश बहुत हुई बारिश बीती रात बहुत बारिश थी सिरहाने रखे सब कपड़े भीग गए शायद जिस सावन का मुझे बेसब्री से इंतेज़ार था उसमें फूलों के साथ काँटे भी खिले अचम्
Hardik Agarwal
बारिश (1/2) बीती रात बहुत बारिश थी सिरहाने रखे सब कपड़े भीग गए शायद जिस सावन का मुझे बेसब्री से इंतेज़ार था उसमें फूलों के साथ काँटे भी खिले अचम्भा इस बात का है कि बूँदों से ज़्यादा सिसकियों का शोर था शायद बारिश में भीगना उतना भी मज़ेदार नहीं या शायद हवा ही प्रदूषित हो गई हाँ शायद हवा ही कुछ नासाज़ रही होगी ठीक से कुछ दिख भी तो नहीं रहा था या शायद आँखें ही कुछ धुंधली हो चली थी बारिश बीती रात बहुत बारिश थी सिरहाने रखे सब कपड़े भीग गए शायद जिस सावन का मुझे बेसब्री से इंतेज़ार था उसमें फूलों के साथ काँटे भी खिले अचम्
Dr Upama Singh
रचना अनुशीर्षक में👇👇 #rztask477 #rzलेखकसमूह #restzone #rzhindi #yourquotedidi "अनहद नाद" दिशाओं में...हवाओं में... फ़िज़ाओं में... गुंजायमान है संगीत...
AB
...... कभी-कभी कुछ न कहने से बेहतर है मौन रहना और मौन रहकर अपने आस पास की चीजों को महसूस करना. जैसे रात में टिक-टिक करती मेरे दाएं बाजु दीवार पर ट
vishal gupta
ठहरा हुआ पानी हालातों का एक पोखर कुछ शब्द हैं आधे डूबे से कुछ शब्द हैं टूटे-छूटे से कुछ शब्द हैं रूखे-सूखे से एक काई जमी है सूनेपन..... ©विशाल गुप्ता #poetry #nojotohindi #life #relations #kavishala #truth_of_life पूरी कविता यहाँ पढ़ें..😊👍 ठहरा हुआ पानी हालातों का एक पोखर कुछ शब्द हैं आध
Jiten rawat
" सावन मे तुझे प्रेयसी कुछ याद दिलाने आया हूँ " Read in Caption.. तेरी बाहों में आज फिर से सिमटने आया हूँ, जो याद नही तुझे,मगर मुझे याद है वो सब कुछ, तुम बारिश की बूंदों से भीगती थी मेरे संग, उसी बूंदों से
Nisheeth pandey
प्रेम की तलाश ************ मैं तलाशना छोड़ दिया हूं हर कहीं जहां भी तुम्हारी झलकियां मिलती महसूस हुआ करती थी मुझे पता रहता था -कहां हो तुम सुबह की सैर छोड़ दी क्योंकि घास के पत्तों पर ठहरी मोती सी झिलमिलाती ओस की बूंदों से तुम्हारी स्नेह जुड़ी थी .... दोपहर भी तुम्हारे तिलमिलाहट से कहाँ अछूता था -निरूद्देश्य भागती पिघलाती पसीने से लथपथ शरीर देखती तुम्हारी आखें सड़कों पर बहती गर्म हवाओं में कहीं दूर मृगमरीचिका और उसमें उलझना तुम्हें अच्छा लगता था शाम में तुम्हारा सूर्यास्त की लालिमा ओढ़ना तुम्हें कितना सकून देता था -लगता है सूर्य की अंतिम लालिमा के साथ साथ विलुप्ती में तुम भी -तुम्हारी उपस्थिति की संवेदना करवटें लेने लगती है । रात रात में अचानक चांद को निशीथ पहर निहारना या अचानक जागकर -जादुई चांदनी में या वर्षा की रिमझिम जल से छत पर ख़ुद को लबालब करना आर्तनाद टर्राते मेंढकों की जो तुम्हें लुभाती थी और अंधेरी काली रातों के सन्नाटे में ठंडी हवाँ का स्पर्श लेना मैं ढूंढना तलाशना हर जगह हर पल जहां कहीं भी तुम रहती थी कहां नहीं थी हर जगह थी तुम मगर अब थक सा गया हूं तुम्हारे भावनात्मक स्पर्श के भवँर में डूबते डूबते इसलिये अब मैं तलाशना छोड़ दिया हर कहीं जहां भी तुम्हारी झलकियां मिलती महसूस हुआ करती थी #निशीथ ©Nisheeth pandey #SunSet प्रेम की तलाश ************ मैं तलाशना छोड़ दिया हूं हर कहीं जहां भी तुम्हारी झलकियां मिलती