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Kh_Nazim

मज़दूर...! यह मजदुर है साहब, पर मजबूर नहीं.. रूखी सूखी रोटियां चटनी से खाते पर हाथ नही फैलाते, पत्थर तोड़ पानी बहते जो मकान खड़ा है #कविता #मज़बूर #khnazim

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मज़दूर...!
यह मजदुर है साहब,
पर मजबूर नहीं..
रूखी सूखी रोटियां
चटनी से खाते 
पर हाथ नही फैलाते,
पत्थर तोड़ पानी बहते
जो मकान खड़ा है
इनके पसीने से बना है
यह मजदुर है साहब,
पर मजबूर नहीं।
दुनियाँ की चकाचोंध से भटकते नहीं
अपनों के लिए मेहनत से डरते नहीं
रोज़ कुआँ खोदते है,रोज़ प्यास भुझाते है
यह ईंट ईंट जोड़ अपना 
आसियान सजाते है ।
यह मजदुर है साहब,
पर मजबूर नहीं।
जन को तो आरक्षण मिला साहब
पर मझधार भूल गए.
सत्ता में आ के
वो इन के अधिकार भूल गए
जो कुछ भी बना है...
सड़क,मकान,बहुमंजिला इमारत
इन में दबके तुम्हारी...
यह सियासत खड़ी है
यह मजदुर है साहब,
पर मजबूर नहीं..
अब...
बेग़री से जो तुमने जोड़ रखा था 
उन हालातों में जीना हुनर सीख रखा है
यह मजबूर है साहब,
 मज़दूर नहीं..! मज़दूर...!
यह मजदुर है साहब,
पर मजबूर नहीं..
रूखी सूखी रोटियां
चटनी से खाते 
पर हाथ नही फैलाते,
पत्थर तोड़ पानी बहते
जो मकान खड़ा है

R.S. Meena

#rsmalwar #yqdidi इन्द्रियाँ इन्द्रियों को वश में करना अब किसी के बस में नहीं। कर सके जो भीष्म सी प्रतिज्ञा, ऐसा तो जग में नहीं।। आधुनिकता

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इन्द्रियाँ
इन्द्रियों को वश में करना अब किसी के बस में नहीं।
कर सके जो भीष्म सी प्रतिज्ञा, ऐसा तो जग में नहीं।।

आधुनिकता का दोष है इसमें या है कोई पागलपन,
बात-बात पर ताप बढ़ जाएँ, हो ज्वर से जलता तन।
ज्वार-भाटा की घड़ी आने पर, पकड़ से दूर जाता मन,
उतरे जब ज्वर शरीर का, प्रायश्चित करने को जाता वन।

चैन की नींद खरीदने की ताकत किसी धन में नहीं।
इन्द्रियों को बस में करना अब किसी के बस में नहीं।

आविष्कारों की भेंट चढ़ गई प्रकृति की अनुपम छाया,
बहुमंजिला इमारतों में वातानुकुलित यंत्रों को अद्भुत माया।
प्राकृतिक फलों के रस को छोड़ के, पीते कृत्रिम पदार्थ
जहर से जहर बने शरीर में, जो पल में हो जाएँ चरितार्थ।

शुद्ध हवा में विष मिलाना, अब किसी के हक में नहीं।
इन्द्रियों, को बस में करना अब किसी के बस में नहीं।

संस्कृति की राह छोड कर,  धुमिल हो रही भूमि पावन,
खान-पान का समय ना जाने, दुषित करते अपना दामन।
वाणी पर फिर संयम खोते, मद में रहते पीके नशीला पाणी,
मर्यादा की कोई बात ना सुने, विनाश की ओर जाता प्राणी।

मर्यादा में रह ले, ऐसी भावना किसी के मन में नहीं।
इन्द्रियों को बस में करना अब किसी के बस में नहीं। #rsmalwar #yqdidi 
इन्द्रियाँ
इन्द्रियों को वश में करना अब किसी के बस में नहीं।
कर सके जो भीष्म सी प्रतिज्ञा, ऐसा तो जग में नहीं।।

आधुनिकता

R.S. Meena

#rsmalwar *गुरू पुर्णिमा पर विशेष* राजस्थान शिक्षा अधिनियम 1971, में हाल ही में स्वागत योग्य संशोधन हुए है, उन्हीं से

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                          बदलाव
परिवर्तन, प्रकृति का है नियम, होता है जनहित में हर बार।
करे पालना नियमों की, तो हर घर में हो प्रकृति का उपहार।

2021 में संशोधन, शिक्षा के हित में हुए पचास साल बाद,
संकीर्ण मार्ग से अब नहीं होगा किसी का भविष्य बर्बाद।
नींव मजबूत होगी, तब बन पायेंगी बहुमंजिला इमारतें,
निभाएं अपने कर्त्तव्यों को, तो पूरी हो जाएं सब हसरतें।

स्नातक विषयों से ही स्नातकोत्तर में जाने को सब है तैयार।
परिवर्तन, प्रकृति का है नियम,..............

काश ! कुछ वर्षो पहले हो जाता, शिक्षा में यह बदलाव,
ज्ञानमय लौ से मिट जाता अंधकार और मिट जाता अलगाव।
समय से पहले मिले ना मंजिल, राह बदलना नहीं हमें मंजूर,
इधर-उधर मन भटकाने से, हर युग में ही लगते है खट्टे अंगूर।

अपना घर तो अपना घर है, अतिथि से नहीं चलता घर-संसार।
परिवर्तन, प्रकृति का है नियम,................

न्यूनतम मापदण्ड तय करने से सार्थक पहल हुई शिक्षा में,
चालीस प्रतिशत कम से कम, पद ना मिल पायेंगा भिक्षा में।
ज्ञान तो आखिर ज्ञान है, असंख्य मार्ग हैं हासिल करने को,
मुखौटा पहनकर, व्यर्थ है, करना प्रयत्न, काबिल बनने को।

प्रकृति से छुप नहीं सकते, लगाके मुख पर मुख अपार।
परिवर्तन, प्रकृति का है नियम,...... #rsmalwar 
                     *गुरू पुर्णिमा पर विशेष*
राजस्थान शिक्षा अधिनियम 1971, में हाल ही में स्वागत योग्य संशोधन हुए है, उन्हीं से

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PuRuShOtAm PaReEk

हमारे बचपन की यादो की आखिरी इमारत ढह गयी
इमारत के हर पत्थर के साथ वो खुशिया बह गयी
वो खुशियों का महल ढह गया बस यादें जहन में रह गयी
जिस इमारत ने कई जीवन संजोए थे खुशियो से भरे वो  अपने आखिरी पलों में देखो कितने दर्द सह गयी। #इमारत

Indrajit Ashok Patil

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