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@nil J@in R@J
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ संपादित करें त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक) यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक) पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक) इव = जैसे, इस तरह बन्धनात् = तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है) मृत्योः = मृत्यु से मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें मा = न अमृतात् = अमरता, मोक्ष #NojotoQuote #nojoto# महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ #nojoto#
Prashant Dubey
रावण को जलाते हो मन के रावण को मारोगे या नहीं जलता देख उन्हे खुश होते हो घृणा के रावण को मारोगे या नहीं महा ज्ञानी । महा प्रतापी। महा पंडित। महा शिव भक्त। चारों वेदों का ज्ञाता।।। रावण 🔥🙏🖤 pooja Vishal Jha SHAILESH TIWARI lavi prajapati रोहित त
"Kumar शायर"
कुछ लोग कहते है, में शब्दों का बड़ा ज्ञानी हूँ, और, कुछ कहते है के थोड़ा सा.. अभिमानी हूँ, हा - हा में अभिमानी हूँ, लेकिन, करता नही किसी के साथ मै कोई, मनमानी हूँ...! ©Umesh kumar #Mic शब्दो का का ज्ञानी..
"Kumar शायर"
some people say, I am well versed in words, And, Some say that I am a little arrogant, Ha-ha I'm arrogant, but, I do not do anything with anyone, I'm arbitrary...! ©Umesh kumar #Mic शब्दों का ज्ञानी..
sr ku
हमरे लिए महाकाल ही सब कुछ है बाकि सब कुछ मोह माया हा जय महा काल का भगत है बही महा काल
डॉ धनंजय
https://sanskritsevasadan.blogspot.com/2019/10/blog-post_31.html आस्था का महा पर्व छठ
Rudeb Gayen
वो मुझे जीवन का ज्ञान बांट रहा था, मेरे जीवन की त्रुटियां दिखा रहा था। है गलतियां मुझमें, एहसास हुआ मुझे, है गलतियां मुझमें, एहसास हुआ मुझे, परिपक्वता से मैं परिवर्तन ला रहा था। गलतियों का स्वरूप मनुष्य हूं मैं, गलतियों का स्वरूप मनुष्य हूं मैं, किंतु बेहतर खुद को बना रहा था। मेरी गलतियों का बोध कराया जिसने, वो महापुरुष भी उच्चतम ना थे, जीवन में उनका भी अवगुण उभर रहा था। खुद के समय शायद सुनने में दिक्कत थी, एक धुन गुनगुनाते हुए चल दिए राह पर अपने, वो ज्ञानी मुझे ज्यादा मूर्ख दिख रहा था। - रूदेब गायेन ©Rudeb Gayen ज्ञानी का ज्ञान #kavita #poem #Life_experience #Life