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Ankur Mishra
मर जाऊँ या मार दूं उसे उलझन बड़ी है क्योंकि जीसे मारने चला मैं वो मेरी ही परछाईं निकली जो मेरे पिछे से मेरी हि मुखबिरी कर रही थी ज़माने भर से #मुखबिरी #solotraveller
Rishu
कर लो बेइज्जत,ट्रोल करवा लो,नाके लगा लो, लगा लो पहरेदारी,लगा दो मुखबिर पीछे मेरे कर लो दिल खोलकर ख्वाईश पूरी,वक़्त आपका है, कर लो जितना परेशां यह 'शख्श' किया जाता है, कमी यही है आप की, कि मुखबिरी सिर्फ आप कमियों की करते है,थोड़ा सब्र किजीए जनाब, 'दवाखाना' खोलेंगे हम,'दो-तीन' के इलाज से समझ जाएंगे, "मुखबिरों का इलाज यहां तस्सलीबक्श किया जाता है" #yqbhaijan #yqdidi #मुखबिरी #दवाखाना #इलाज
Mohd Ashik
सहमा सा है वतन कुछ लोग खून मागते है कुछ लोग मेरा हिन्दुस्तानी वजूद मागते है.. ज़माना बीता है जिनका फिरंगियो की मुखबिरी में वो आज मुजसे देश भक्त होने का सबूत मागते है.. #Happy_independence_day 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 सहमा सा है वतन कुछ लोग खून मागते है कुछ लोग मेरा हिन्दुस्तानी वजूद मागते है.. ज़माना बीता है जिनका फिरंगियो की मुखबिरी में वो आज मुजसे द
Mohd Ashik
सहमा सा है वतन कुछ लोग खून मागते है कुछ लोग मेरा हिन्दुस्तानी वजूद मागते है.. ज़माना बीता है जिनका फिरंगियो की मुखबिरी में वो आज मुजसे द
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- यार ने खूब रहबरी की है । नोट को देख मुखबिरी की है ।।१ शाम अपनी कहाँ खुशी की है । दिल जला के ही रोशनी की है ।।२ अब उसे बेवफ़ा कहें कैसे । जिससे हमने दिल्लगी की है ।।३ आज इल्जाम वो हमें देकर । कह रहें आपने बदी की है ।।४ दूर दहलीज से न होना था । पाँव में बेड़ियां कड़ी की है ।।५ भूल एहसान वह सभी अब तो । कह उठे आप क्या कमी की है ।।६ क्यों उसी पर उछालता कीचड़ । मुफ्त जिसने तुम्हें ज़िन्दगी की है ।।७ अब छुपाने को रहा नहीं कुछ भी । इस तरह आपने खुशी की है ।।८ जिद न करना प्रखर चले जाओ । आखिरी आज ये बंदगी की है ।। ९ २१/११/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- यार ने खूब रहबरी की है । नोट को देख मुखबिरी की है ।।१ शाम अपनी कहाँ खुशी की है । दिल जला के ही रोशनी की है ।।२
Rabiya Nizam
दंश (In Caption) Part - I Ch- 10 "मैं यह रिस्क नहीं उठा सकती थी और न ही मुझे उस बंसल पर ज़रा सा भी भरोसा था इसलिए मैंने यह फ़ैसला किया कि मैं चीज़ें अपने हाथ में लूंगी, इससे
A NEW DAWN
दंश (In Caption) Part - I Ch- 10 "मैं यह रिस्क नहीं उठा सकती थी और न ही मुझे उस बंसल पर ज़रा सा भी भरोसा था इसलिए मैंने यह फ़ैसला किया कि मैं चीज़ें अपने हाथ में लूंगी, इससे
paritosh@run
Love Forever कैसे छुपाओगे अपने राज़-ए-दिल हमसे ए हुज़ूर... आपकी आंखें ही मुखबिर हैं हमारी... मुखबिर...
Preeti Karn
मुखबिरी कर गई आंखे राज सबसे छुपा कर रखते थे कत्लेआम होते ख्वाहिशों की खबर किसीको न थी। प्रीति #मुखबिर : informer Yqdidi