Find the Latest Status about व्यवहार की प्रकृति from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, व्यवहार की प्रकृति.
Anuj Ray
पवित्रता व्यवहार की" मन की ही नहीं केवल, पवित्रता व्यवहार की भी होनी चाहिए। खुशबू दिखाई दे ,ये जरूरी नहीं, महक कलियों सी मगर होनी चाहिए। ©Anuj Ray # पवित्रता व्यवहार की"
Amit Gupta
ये धूप, तू मान मेरी ये धूप, तेरा यूं नित्य बढ़ना लाजमी है मानता हूं मैं, तेरी तपन तुझको मानवों ने ही दिए, जानता हूं मैं पर क्या तू भी बन जाओगी निर्मोही और निष्ठुर तू मान मेरी, कर दे ऐसी सभी नाराजगी तू दूर मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । आकांक्षाओं कि परिसिमा लांघते गए ओ इस कदर पेड़ काटे, पर्वत - पहाड़ तोड़े, और न जाने क्या-क्या किए दर्द तेरी समझता हूं, ऐसे ही नहीं ढा रही तू ये कहर पर तुझसे से तो हमने ना कभी ऐसी उम्मीद किए मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । अच्छे, बुरे, लोभी, लालची, मतलबी चाहे जैसे भी आखिर ये भी तो तेरे संग ही रहते, तू रखे चाहे जैसे भी मान जा, तू जिद न कर, बढ़ तू पर न इस तरह देख, प्रकृति प्रेमियों के भी आंसू बने पसीने कि तरह मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । नन्हे बच्चों की अभी छुट्टियां भी तो नहीं हुई तेरी तपन उन्हें तड़पाती है, न जाऊंगा स्कूल, कहलवाती है ये भविष्य कल के, पढ़ कर समझेंगे तेरी वेदना को तू भी तो समझ बागों से दूर होते इनकी संवेदना को मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । प्रकृति प्रेम @ प्रकृति की तपन
Vikas sharma
।। व्यवहार की परिभाषा ।। जैसा व्यवहार खुद को पसंद है वैसा ही दूसरों के साथ करो गर ऐसा कर पाना संभव है तभी रिश्तो की नाव में अपने कदम रखो दुख की घड़ी में मेरा साथ न दिया हिम्मत खो रही थी संभलने अपना कांधा भी ना दिया उसको याद कर कर ना जाने क्या क्या सुनाते हो पर कभी विचार किया उसके बुरे वक्त पर ख़ुद कैसा व्यवहार निभाते हो जैसा किया है तुमने वापस वैसा ही तो पाओगे संसार का अब तो यही नियम है इसे कहां बदल पाओगे दर्द हुआ था उस दिन बहुत मुझे ,जिस दर्द को तूने आज है पहचाना कभी-कभी जरूरी हो जाता है उसको भी यह एहसास दिलाना व्यवहार के दो नियम ही है जो , आजकल समझ मे है आता जैसे को तैसा कर और जीवन में आगे बढ़ता जा या फिर सामने से किसी अपेक्षा की परवाह किए बिना नेकी कर और उसे दरिया में डालता जा #विकास #leaf व्यवहार की परिभाषा
Vikas sharma
।। व्यवहार की परिभाषा ।। जैसा व्यवहार खुद को पसंद है वैसा ही दूसरों के साथ करो गर ऐसा कर पाना संभव है तभी रिश्तो की नाव में अपने कदम रखो दुख की घड़ी में मेरा साथ न दिया हिम्मत खो रही थी संभलने अपना कांधा भी ना दिया उसको याद कर कर ना जाने क्या क्या सुनाते हो पर कभी विचार किया उसके बुरे वक्त पर ख़ुद कैसा व्यवहार निभाते हो जैसा किया है तुमने वापस वैसा ही तो पाओगे संसार का अब तो यही नियम है इसे कहां बदल पाओगे दर्द हुआ था उस दिन उसे भी , जिस दर्द को तूने आज है पहचाना कभी-कभी जरूरी हो जाता है उसको भी यह एहसास दिलाना व्यवहार के दो नियम ही है जो , आजकल समझ मे है आता जैसे को तैसा कर और जीवन में आगे बढ़ता जा या फिर सामने से किसी अपेक्षा की परवाह किए बिना नेकी कर और उसे दरिया में डालता जा #विकास #leaf व्यवहार की परिभाषा
Deepali Singh
प्रकृति की हुँकार कब से आस लगाये बैठी थी ये प्रकृति इसे भी मिल जाए सांस लेने की अनुमति धुआँ ही धुआँ दिखता था हर जगह और हो रहे थे ज़ुल्म इसपर बेवजह ढूंढ रही अपने अस्तित्व को जाने कब से, चुप बैठी थी गुमसुम सी इतने वर्षों से ठहरी थी जिंदगी बहुत दूर इससे पर ऐसी बर्बादी कतई ना थी मंज़ूर इसे, रहती थी खोई सी,खामोशियों मे सोई थी उन दूषित गर्म हवाओं में खुद को पिरोई भी काया से इसके लिपट कर वायु ने स्वच्छ शीतल चंचल उड़ान था भरा उन नर्म साँसों में, ठहरी ठंडी रातों में सरसराते इठलाते बहकते पत्तों में, धड़कते पत्थर के उन सहमे दरारों में छुकर अपने धरा के कर कण-कण को मस्ती में इतराते अपने हस्ती पे फ़िर उड़ता चला चुमने गगन को वो मतवाला मनचला बहता चला आज़ाद सोंच में झूमता उठता रहा फिर कैद हुआ कुछ के क्रूर गुरुर से और तड़प रहा गुब्बारों में तो सिलेंडर में सुकून सा देकर तेरे घुँटते फेफड़ों को जो जीवन दिया वो ये वायु ही तो जिताकर तुझे ऐसे जीवन जंग से लौटना है इन्हें उपवन जंगल में जो बनाता रहा दूरी कुदरत से क्या खोया है ज़रा पूछ खुद से प्रकृति के आगे हम मजबूर ठहरे इनकी नज़रों से कुछ भी नहीं परे प्रकृति को हमारी ज़रूरत नहीं पर हमें प्रकृति की ज़रूरत ज़रूर है यूँही नहीं प्रकृति को खुद पर गुरुर है तभी तो प्रकृति खुद मे मगरूर है ©Deepali Singh प्रकृति की हुंकार
Balmiki Choudhary
बहुत धूप है चलो कुछ देर बिताएं छांव में, माँ धरती की गोद प्रकृति की बांह में, एक हीं रंग जहाँ मन में उमंग वहाँ, जीता न जहाँ कोई किसी गुमां में, बहुत धूप है चलो कुछ देर बिताएं प्रकृति की छांव में। चलो कुछ देर बिताएं प्रकृति की छांव में प्रकृति की छांव