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Gourav
वक़्त बेवक़्त पता ही न चला , कब मेरी चप्पलें छोटी हो गई .. लाख समझाता राहा इस मन को , की वो अब इन पैरों में नही आएगी , मगर मेरी न मान ये मन ! आज भी उन चप्पलो को देख उदास रहता है । #नन्ही नन्ही सी चप्पलें #नोजोतो
ASHUTOSH Maurya
जब भी मेरी आदतेे बिगड़ने लगती है, माँ की चप्पलें सर पेे पड़ने लगती है।। ©ASHUTOSH Maurya "जब भी मेरी आदतेे बिगड़ने लगती है, माँ की चप्पलें सर पेे पड़ने लगती है।।" #MothersDay
Vishal Singh Rajput
चप्पलें उलटी हों जाये तो गुस्सा हो जाती है माँ आज भी हर छोटी बात समझाती है vishal Rajput_ चप्पलें उलटी हों जाये तो गुस्सा हो जाती है माँ आज भी हर छोटी बात समझाती है my brother for bizzy boyfire Annu Sharma deepshi bhadauria Dev
सिन्टु सनातनी "फक्कड़ "
अपने ही धुन में इश्क़े फ़ितूरी, ऊँचे सुर में गा रहा था मैं, तभी जोरदार आवाज़ से, माँ की चप्पल गिरी सर पर, और मैं गुमसुम हो बैठ गया, लेकिन किस्सा तब भी ख़त्म ना हुआ, बहन बैठी थी पास मेरे, हँसकर बोली आशिंकी का भुत उतरा, या फिर कुछ बाकि रह गया, मुझसे तुम्हारा ये दर्द देखा ना जाता, तुम कहो तो पापा को भी चमड़े वाली बैल्ट थमा आऊ, हमनें झल्लाकर कहा बहन से, यु झुठमुठ का आरोप लगा कहर बरपाया ना करो, नल्ला हूँ तभी संग बैठ ऊँचे सुर लगाता हूँ, होती जो आंशिकी तो बंद कमरे में ही हमारी भी चाय जाती। बहन बोली बेटा ऐसा है ना औकात में रहो, कुछ ज्यादा ही ना फेक दिया, हमनें भी तैस मैं आकर कहा कह दिया तो कह दिया, तभी माँ कि दूसरी चप्पल सीधे मुंह पर आकर सर्जीकल स्ट्राइक कर गयी। भाई अपना भी घर मैं बहुत बेइज्ज़त हैं, चप्पले फेक कर पहनने को कहते हैं बाहर जाने से पहले। और किसी का शायद ही हो घर मैं इतना इज्ज़त। #nojotohi
Jai Prakash Verma
चप्पलो के भी शौक बड़े निराले है एक मिलती है सोफे के नीचे तो दूसरी दरवाजे के पीछे इतराती है ये खुद पर जब दिन की थकान संग जूते उतारकर शाम के वक्त इसका साथ अपनाते हैं भौहे तो देखो इसकी लगता है कि मै खुद नही चलता मुझको ये चलाते हैं गुमान है इनको कि घिस के खुद को मुझे ये मंजिल तक पहुँचाते है पता नही शायद इनको कि जगह ये घर के बाहर ही पाते है। चुनाव से इसकी प्रासंगकिता को समझने हेतु Caption देखे *चप्पले- आम जनता *जूते- कारपोरेट जगत *दिन की थकान-पॉच साल का कार्यकाल *शाम का वक्त-चुनावी मौसम *घिस के खुद को - वोट व समर्थन देकर *मंजिल-
Sanchit Uniyal
Akanksha
"वो बेढंगी ज़िंदगी " वो बचपन के मटमैले से कपड़े और वो टूटी चप्पलें वो कपड़े जो उड़ती धूल से भी बेपरवाह होकर गुज़र जाया करते थे , और उन चप्पलों को पहन यूँ ही गलियो
रजनीश "स्वच्छंद"
तरंग चाहिए।। इस ठहरे हुए पानी मे तरंग चाहिए। बेरस इस ज़िन्दगी में रंग चाहिए। जो बैठे हैं थक हार निराश यहां, उनको भी एक नई उमंग चाहिए। कब तलक यूँ ही घिंसेंगीं चप्पलें, बदला हुआ जीने का ढंग चाहिए। क्या वजूद, क्या करेंगे अदा हम, अब इनायत-ए-रब बैरंग चाहिए। सुबह से शाम होता सफर तन्हा, किसी हमसफ़र का संग चाहिए। इल्ज़ाम वो भी देते हम भी, तन्हाई की तन्हाई से जंग चाहिए। ऐ स्वछंद क्यूँ बने हो मोहरा, बनो वज़ीर नया शतरंज चाहिए। ©रजनीश "स्वछंद" तरंग चाहिए।। इस ठहरे हुए पानी मे तरंग चाहिए। बेरस इस ज़िन्दगी में रंग चाहिए। जो बैठे हैं थक हार निराश यहां, उनको भी एक नई उमंग चाहिए।
Alok Kumar Shukla
Anil Ray
🤔 ©Anil Ray 🍅 "टमाटर की उतारो खाल" 🍅 हरेक सब्जी! के साथ तेरा दोस्ताना कमबख़्त टमाटर था कभी कमाल। मेरी रसोईघर का स्थायी सदस्य था हम सभी की जिंदगी थी ख