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Shaarang Deepak
रजनीश "स्वच्छंद"
राजनीति की बात बताऊं।। तुम हो मेरे और मैं हूँ तेरा, कानों में एक बात बताऊं मैं, बड़ी अनोखी राजनीति है, तुम्हे इसका स्वाद चखाऊँ मैं। महिला का अपमान है होता, जनता बैठ बजाती ताली, इस युग मे भी बैठ यहां, तुम्हे महाभारत याद कराऊं मैं। धृतराष्ट्र अकेला अंधा था, अब पांडव भी मूक बधिर हुए, हो रही द्रौपदी रोज है नँगी, अब कृष्ण कहाँ से लाउं मैं। भीष्म पितामह राजभक्त थे, अब जनता उनका पर्याय है, किस मुख बोलो, इस जनता को राजधर्म सिखलाऊँ मैं। अश्वत्थामा लहु से लथपथ, फिर भी भ्रूण निशाना है, जो इस पापी को मार सके ब्रह्मास्त्र वो कैसे चलाऊँ मैं। दुर्योधन भी लगाए ठहाका, शकुनि है पासा फेंक रहा, धर्मराज बोली है लगाता, क्यूँ अब रोक उसे ना पाऊँ मैं। कपटी धृष्टद्युम्न की फौज खड़ी, द्रोण पड़े बिन माथा हैं, कैसे मैं संजय हो जाऊं, उसकी दृष्टि कहाँ से लाऊं मैं। कौन है पंडित कौन मौलवी, माला और तसबीह बिके हैं, अल्लाह ईश्वर नीलाम हुए, बोलो चैन कहाँ अब पाऊँ मैं। ©रजनीश "स्वछंद" राजनीति की बात बताऊं।। तुम हो मेरे और मैं हूँ तेरा, कानों में एक बात बताऊं मैं, बड़ी अनोखी राजनीति है, तुम्हे इसका स्वाद चखाऊँ मैं। महिला क
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गान्धारी बोलीं- माधव जो काबुल के बने हुए मुलायम बिछौनों पर सोने के योग्य हैं पढ़िए महाभारत !! 📝📝 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 1-17 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 गान्धारी बोलीं- माधव। जो काबुल के बने हुए मुलायम बिछौनों पर सोने के योग्य हैं, वह बैल के समान हष्ट-पुष्ट कन्धों वाला दुर्जय वीर काम्बोज राज सुदक्षिण मरकर धूल में पड़ा हुआ है। उसकी चंदन चर्चित भुजाओं को रक्त में सनी हुई देख उसकी पत्नि अत्यन्त दुखी हो करुणा जनक विलाप कर रही है। 📜 वह कहती है- प्राणनाथ। सुन्दर हथेली और अंगुलियों से युक्त तथा परिघ के समान मोटी ये वे ही दोनो भुजाऐं हैं, जिनके भीतर आप मुझे अंग में भर लेते थे और उस अवस्था में मुझे जो प्रसन्नता होती थी, उसने पहले कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा था। जनेष्वर। अब आपके बिना मेरी क्या गति होगी। श्रीकृष्ण। अपने जीवन बन्धु के मारे जाने से अनाथ हुई यह रानी कांपती हुई मधुर स्वर से विलाप कर रही है। 📜 घाम से मुर्झाती हुई नाना प्रकार की पुष्प मालाओं के समान यह राज रानियां धूप से तप गयी हैं, तो भी इनके शरीरों को सौन्दर्य श्री छोड़ नहीं रही हैं । मधुसूदन। देखो, पास ही वह शूरवीर कलिंगराज सो रहा है, जिसकी दोनों विशाल भुजाओं में चमकीले अंगद (बाजूबन्द) बंधे हुए हैं। जनार्दन। 📜 उधर मगध राज जयत्सेन पड़ा है, जिसे चारों ओर से घेरकर उसकी पत्नियां अत्यन्त व्याकुल हो फूट-फूट कर रो ही हैं। श्रीकृष्ण। मधुर स्वर वाली इन विशाल लोचना रानियों का मन और कानों को माह लेने वाला आर्तनाद मेरे मन को मूर्छित सा किये देता है। इनके वस्त्र और आभूषण अस्त व्यस्त हो रहे हैं। 📜 सुन्दन विछौनों से युक्त शैयाओं पर सयन करने के योग्य ये मगध देष की रानियां शोक से व्याकुल हो रोती हुई भूमि पर लोट रही हैं। अपने पति कौषल नरेष राजकुमार बृहदल को भी चारों ओर से घेरकर उनकी रानियां अलग-अलग रो रही हैं। अभिमन्यु के बाहुबल से प्रेरित होकर कौषल नरेष के अंगों में धंसे हुए बाणों को ये रानियां अत्यन्त दुखी होकर निकालती हैं और बार-बार मूर्छित हो जाती हैं। 📜 माधव। इन सर्वांग सुन्दरी राज महिलाओं के सुन्दर मुख धूप और परिश्रम के कारण मुर्झाये हुए कमलों के समान प्रतीत होते हैं। ये द्रोर्णाचार्य के मारे हुए धृष्टद्युम्न के सभी छोटे-छोटे शूरवीर बालक सो रहे हैं। इनकी भुजाओं में सुन्दर अंगद और गले में सोने के हार शोभा पाते हैं। 📜 द्रोणार्चाय प्रज्वलित अग्नि के समान थे, उनका रथ ही अग्निषाला था, धनुष ही उस अग्नि की लपट था, बाण, शक्ति और गधाऐं समिधा का काम दे रही थीं, धृष्टद्युम्न के पुत्र पतंगों के समान उस द्रोण रूपी अग्नि में जलकर भष्म हो गये। इसी प्रकार सुन्दर अंगदों से विभूषित पांचो शूरवीर भाई कैकय राजकुमार समरांगन में सम्मुख होकर जूझ रहे थे। 📜 वे सब के सब आचार्य द्रोण के हाथ से मारे जाकर सो रहे हैं। इन सबके कवच तपाये हुए स्वर्ण के बने हुए हैं और इनके रथ समूहों ताल चिन्हित ध्वाजाओं से सुशोभित हैं। ये राजकुमार अपनी प्रभा से प्रज्वलित अग्नि के समान भू-तल को प्रकाषित कर रहे हैं। N S Yadav 📜 माधव। देखो, युद्धस्थल में द्रोणाचार्य ने जिन्हें मार गिराया था वे राजा द्रुपद सो रहे हैं, मानो किसी वन में विशाल सिंह के द्वारा कोई महान् गजराज मारा गया हो। ©N S Yadav GoldMine #walkalone गान्धारी बोलीं- माधव जो काबुल के बने हुए मुलायम बिछौनों पर सोने के योग्य हैं पढ़िए महाभारत !! 📝📝 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विं
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इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 ( राव साहब एन एस यादव ) महाभारत: स्त्री पर्व :- षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 19-44 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 युधिष्ठिर बाले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था, उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के प्रसंग से मुझे एक महात्मा का इस रूप में अनुग्रह प्राप्त हुआ। तीर्थ यात्रा के समय देवर्षि लोमष का दर्षन हुआ था। उन्हीं से मैंने यह अनुस्मृति विद्या प्राप्त की थी। इसके सिवा पूर्व काल में ज्ञान योग के प्रभाव से मुझे दिव्य दृष्टि भी प्राप्त हो गयी थी। 📜 धृतराष्ट्र ने पूछा- भारत। यहां जो अनाथ और सनाथ युद्धा मरे पड़े हैं, क्या तुम उनके शरीरों का विधिपूर्वक दाह संस्कार करा दोगे। जिनका कोई संस्कार करने वाला नहीं है तथा जो अग्निहोत्री नहीं रहे हैं, उनका भी प्रेत कर्म तो करना ही होगा, तात। यहां तो बहुतों के अंतेष्टि कर्म करने हैं, हम किस-किस का करें। 📜 युधिष्ठिर। जिनकी लाशों का गरूड़ और गीध इधर-उधर घसीट रहें हैं, उन्हें तो श्राद्व कर्म से ही शुभ लोक प्राप्त होंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज। राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने सुधर्मा, धौम्य, सारथी संजय, परम बुद्धिमान विदुर, कुरूवंषी युयुत्सू तथा इन्द्रसेन आदि सेवकों एवं सम्पूर्ण सूतों को यह आज्ञा दी है कि आप लोग इन सबके प्रेत कार्य सम्पन्न करावें। 📜 ऐसा न हो कि कोई भी लाष अनाथ के समान नष्ठ हो जाये। धर्मराज के आदेष से विदुरजी, सारथी संजय, सुधर्मा, धौम्य तथा इन्द्रसेन आदि ने चंदन और अगर की लकड़ी कालियक, घी, तेल, सुगन्धित पदार्थ ओर बहुमूल्य रेषमी वस्त्र आदि बस्तुऐं एकत्रित कीं, लकडि़यों का संग्रह किया, टूटे हुए रथों और नाना प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों को भी एकत्र कर लिया। 📜 फिर उन सबके द्वारा प्रयत्न पूर्वक कई चिताऐं बनाकर जेठे, छोटे के क्रम से सभी राजाओं का शास्त्रीय विधि के अनुसार उन्होंने शांत भाव से दाह संस्कार सम्पन्न कराया।राजा दुर्योधन, उनके निनयानवें माहरथी भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, राजा जयद्रथ, अभिमन्यु, दुषासन पुत्र, लक्ष्मण, राजा धृष्टकेतु, बृहन्त, सोमदत्त, सौसे भी अधिक संजय वीर, राजा क्षेमधन्वा, बिराट, द्रुपद, षिखण्डी, 📜 पान्चालदेषीय द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, कोसलराज बृहदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सुबल पुत्र शकुनि, अचल, बृषक, राजा भगदत्त, पुत्रोंसहित अमर्षशील वैकर्तन कर्ण, महाधनुर्धर पांचों कैकयराजकुमार, महारथी त्रिगर्त, राक्षसराज घटोत्कच, बक के भाई राक्षस प्रवर अलम्बुस और राजा जलसंघ- इनका तथा अन्य बहुतेरे सहस्त्रों भूपालों का घी की धारा से प्रज्वलित हुई अग्नियों द्वारा उन लोगों ने दाह कर्म कराया। 📜 किन्ही महामनस्वी वीरों के लिये पितृमेघ (श्राद्वकर्म) आरम्भ कर दिये गये। कुछ लोगों ने वहां सामगान किया तथा कितने ही मनुष्यों ने वहां मरे हुए विभिन्न जनों के लिये महान् शोक प्रकट किया। सामवेदीय मंत्रों तथा ऋचाओं के घोष और स्त्रियों के रोने की आवाज से वहां रात में सभी प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। 📜 उस समय स्वल्प धूप युक्त प्रज्वलित जलाई जाती हुई चिता की अग्नियां आकाष में सूक्ष्म बादलों से ढके हुए ग्रहों के समान दिखाई देती थी। इसके बाद वहां अनेक देषों से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये उन सबकी लाशों को मंगवाकर उनके सहस्त्रों ढेर लगाये। 📜 फिर घी-तेल में भिगोई हुई बहुत सी लकडि़यों द्वारा स्थिर चित्त बाले लोगों से चिता बनाकर उन सबको विदुर जी ने राजा की आज्ञा के अनुसार दग्ध करवा दिया। इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर कुरूराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये। ©N S Yadav GoldMine #boat इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 ( राव साहब एन एस यादव ) महा
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युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 19-16 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था, उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के प्रसंग से मुझे एक महात्मा का इस रूप में अनुग्रह प्राप्त हुआ। तीर्थ यात्रा के समय देवर्षि लोमष का दर्षन हुआ था। उन्हीं से मैंने यह अनुस्मृति विद्या प्राप्त की थी। इसके सिवा पूर्व काल में ज्ञान योग के प्रभाव से मुझे दिव्य दृष्टि भी प्राप्त हो गयी थी। धृतराष्ट्र ने पूछा- भारत। यहां जो अनाथ और सनाथ युद्धा मरे पड़े हैं, क्या तुम उनके शरीरों का विधि पूर्वक दाह संस्कार करा दोगे। 📜 जिनका कोई संस्कार करने वाला नहीं है तथा जो अग्निहोत्री नहीं रहे हैं, उनका भी प्रेत कर्म तो करना ही होगा, तात । यहां तो बहुतों के अंतेष्टि कर्म करने हैं, हम किस-किस का करें। युधिष्ठिर। जिनकी लाशों का गरूड़ और गीध इधर-उधर घसीट रहें हैं, उन्हें तो श्राद्व कर्म से ही शुभ लोक प्राप्त होंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज। राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने सुधर्मा, धौम्य, सारथी संजय, परम बुद्धिमान विदुर, कुरूवंषी युयुत्सू तथा इन्द्रसेन आदि सेवकों एवं सम्पूर्ण सूतों को यह आज्ञा दी कि आप सब लोग इन सबके प्रेत कार्य को सम्पन्न करावें। 📜 ऐसा न हो कि कोई भी लाष अनाथ के समान नष्ठ हो जाये। धर्मराज के आदेष से विदुरजी, सारथी संजय, सुधर्मा, धौम्य तथा इन्द्रसेन आदि ने चंदन और अगर की लकड़ी कालियक, घी, तेल, सुगन्धित पदार्थ ओर बहुमूल्य रेषमी वस्त्र आदि बस्तुऐं एकत्रित कीं, लकडि़यों का संग्रह किया, टूटे हुए रथों और नाना प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों को भी एकत्र कर लिया। फिर उन सबके द्वारा प्रयत्न पूर्वक कई चिताऐं बनाकर क्रम से सभी राजाओं का शास्त्रीय विधि के अनुसार उन्होंने शांत भाव से दाह संस्कार सम्पन्न कराया। 📜 राजा दुर्योधन, उनके निनयानवें माहरथी भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, राजा जयद्रथ, अभिमन्यु, दुषासन पुत्र, लक्ष्मण, राजा धृष्टकेतु, बृहन्त, सोमदत्त, सौसे भी अधिक संजय वीर, राजा क्षेमधन्वा, बिराट, द्रुपद, षिखण्डी, पान्चालदेषीय द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, कोसलराज बृहदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सुबल पुत्र शकुनि, अचल, बृषक, राजा भगदत्त, पुत्रों सहित अमर्षशील वैकर्तन कर्ण, महाधनुर्धर पांचों कैकय राजकुमार, महारथी त्रिगर्त, राक्षसराज घटोत्कच, बक के भाई राक्षस प्रवर अलम्बुस और राजा जलसंघ- इनका तथा अन्य बहुतेरे सहस्त्रों भूपालों का घी की धारा से प्रज्वलित हुई अग्नियों द्वारा उन लोगों ने दाह कर्म कराया। 📜 किन्ही महामनस्वी वीरों के लिये पितृमेघ (श्राद्वकर्म) आरम्भ कर दिये गये। कुछ लोगों ने वहां सामगान किया तथा कितने ही मनुष्यों ने वहां मरे हुए विभिन्न जनों के लिये महान् शोक प्रकट किया। सामवेदीय मंत्रों तथा ऋचाओं के घोष और स्त्रियों के रोने की आवाज से वहां रात में सभी प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। उस समय स्वल्प धूप युक्त प्रज्वलित जलाई जाती हुई चिता की अग्नियां आकाष में सूक्ष्म बादलों से ढके हुए ग्रहों के समान दिखाई देती थी। एन एस यादव।।। 📜 इसके बाद वहां अनेक देसो से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये उन सबकी लाशों को मंगवाकर उनके सहस्त्रों ढेर लगाये। फिर घी-तेल में भिगोई हुई बहुत सी लकडि़यों द्वारा स्थिर चित्त बाले लोगों से चिता बनाकर उन सबको विदुर जी ने राजा की आज्ञा के अनुसार दग्ध करवा दिया। इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर कुरूराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये। ©N S Yadav GoldMine #Sitaare युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्ल
रजनीश "स्वच्छंद"
कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन।। कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन, किसने नामों का व्यापार किया। धर्म अधर्म की परिभाषा धूमिल, महाभारत ने साकार किया।। धर्म कहाँ तब सोया था, जब दुर्योधन का अपमान हुआ। अंधे का बेटा अंधा, कह, द्रौपदी ने किसका सम्मान किया। वो था क्षत्रिय बलवान बड़ा, अपमान का घूंट क्यूँ पी जाता। उड़ी थी खिल्ली उसके पिता की, क्या हो मौन वो जी पाता। है पौरुष का दम्भ ये कैसा, जो वस्तु समझ पत्नी जुए में हारा हो। धर्मराज कहलाये कैसे, जिसने भरी सभा में धर्म को मारा हो। दुर्योधन का दोष कहाँ फिर, उसने तो द्रौपदी को जुए में जीता था। था पांडवों का पाप बड़ा वो, जो समय विपरीत द्रौपदी पे बीता था। युद्ध कहाँ वो युद्ध रहा, दृष्टद्युम्न ने जब द्रोण का शीश उतारा था। धर्मराज का धर्म कहाँ, जब उसने शब्द असत्य उच्चारा था। वीर कहाँ, कैसा था अर्जुन, बन कपटी, क्या धर्म का हाल बनाया था। वीरता अपनी दिखलाने को, भीष्म सम्मुख, शिखंडी को ढाल बनाया था। धर्म कहाँ था कृष्ण का, जब दुर्योधन की जंघा पर भीम ने वार किया। धर्म अधर्म की इस लीला में, वो अधर्म ही था जिसने धर्म को मार दिया। सत्य कटु है किंतु सत्य है, धर्म हर युग मे सबल का दास रहा। दुर्बल दलित की कौन सुने, हर युग मे उसका उपहास रहा। कौन क्यूँ कहता फिर, धर्म स्थापना हेतु उसने आकार लिया। धर्म अधर्म की परिभाषा धूमिल, महाभारत ने साकार किया।। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन।। कौन सुयोधन, कौन दुर्योधन, किसने नामों का व्यापार किया। धर्म अधर्म की परिभाषा धूमिल, महाभारत ने साकार किया।। धर्
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HAPPY Birthnight DEAR PANCHALI ✨️ 🎂👸🎂 💖💖💖 F͜͡O͜͡R͜͡ B͜͡E͜͡T͜͡T͜͡E͜͡R͜͡ R͜͡E͜͡A͜͡D͜͡ ::--)* 💟👰💦🌸 ᴅᴇᴀʀ ᴍɪᴛᴀʟɪ!!, ɪ'ᴍ ᴡɪ𝘀ʜɪɴɢ ʏᴏᴜ ᴀ ᴠᴇʀʏ ʜᴀᴘᴘʏ ʙɪʀᴛʜᴅᴀʏ, ᴍᴀɴʏ ᴍᴀɴʏ ᴄᴏɴɢʀᴀᴛᴜʟᴀᴛɪᴏ