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Shivam kumar

ए मेरे देश के निजाम,
तुझे नींद कैसे आती है?? 
जबकि देश जल रहा है, 
तुझे अपनी तस्वीर कैसे भाती है?? 
- शिवम् कुमार #दंगा

Mahesh Panchal 'Mahi'

जलेगा   कब   तलक   यह  देश  गद्दारों   बताओ  भी ।
परेशां  आम   जन    सारा ,  है   हमदर्दी  जताओ  भी ।
मिलेगा  नफ़रतें  निज  मुल्क से  कर  क्या  तुम्हें  बोलो -
नसीहत मान लो  हिलमिल  के  रह सारे  दिखाओ भी । 
✍️ माही #दंगा

vibhanshu bhashkar

#दंगा

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इस दंगे में "भगवा और हरा" दोनो ही रंग खून से लथपथ सड़क पर लाल हुए पड़े थे । "एक ही रंग" के कफ़न के इंतजार में.... #दंगा

Aditya Kumar Bharti

#दंगा

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हंगामा खड़ा करके पूछते हो क्या हुआ है जनाब
ये हवा बदल गई है मौसम हुआ है खराब
बेवजह दंगा करा के क्या मिलेगा आपको?
आज फिर एक मछली से गंदा हुआ है तलाब
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग. #दंगा

Prashant kumar pintu

# दंगा #विचार

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ये कलयुग की महाभारत है ,ये कलयुग की रामायण है ।
यहां कृष्ण कौरवों के संग में कर रहा कंस का गायन है ।।
रामायण में धर्मी राजा का पापी राजा से  था पंगा,
अब तो राजा ,राजा  के संग करवाता है धर्मी दंगा ।
अधर्म और शैतान सजे हैं ,हर नगर और गलियों में
साधु घर में छुपे पड़े और धर्म सड़क पर है नंगा ।

महाभारत में एक धृतराष्ट्र थे तो कैसा हुआ भयानक युद्ध देखो
अब तो सब धृतराष्ट्र बने  है ,  देश में दंगा का रुप शुद्ध देखो ,
शकुनी ही  बना हुआ है नगर का सबसे बड़ा प्रबुद्ध देखो ,
कैसे दोषी ही बैठ सभा में बन रहे शांति दूत बुद्ध देखो  ।

सड़के हैं सुनी सुनी और पूरा  नगर वीरान है,
घर की सीता को बचाने का ये अहम घमासान है  ।
अयोध्या के हर नुक्कड़ पर बैठा खर दूषण शैतान है ।
सड़कों पर फैले दंगो से नगर की जनता  परेशान है ।
 अब नगर को कौन बचाए ,आरोपी ही  नगर प्रधान है ।।

©Prashant kumar pintu # दंगा

Kumari Ratna

दंगा।।।###@@#

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दंगों का दौर चला है ये कैसा शोर चला है। 
शुरू हुआ जो j.n.u से वो शाहिन बाग पर टिका है।
दंगाइयों का देखो इश्तहार लगा है।
जैसे की सरकार यहाँ बेकार पडा है।
कभी कन्हैया ,कभी अमुल्या कभी ये o.b.c भी ,
देश को बेइज्जत करके इज्जतदार खड़ा है।
कहते थे जो बापु अहिंसा ना होने देंगे ,
दंगे मे बापु का हर उपदेश जला है।
अपनी -अपनी रोटी केवल सेंक रहे ये नेता ,
अरे इनको क्या पड़ी किसी कि माँ मरे या बेटा
राजनिती का झंडा हर कोई गाड़ खड़ा है।
नही माँगते पहचान कोई ना कहते भारत छोड़ो,
भरकाउ भाषण के चक्कर में ,तुम अपनो से मुँह ना मोड़ो।
देखो ये दिल्ली कैसा अब शमशान बना है।
और ,तुम्हें लड़ाने वाला भी अंजान खड़ा है।
तीन तलाक का कानून भी  इसी देश में लागु हुआ था
तब धरने पे बैठी महिलाओं का दिल भी बाग हुआ था ,
और ,आज क्यों पैरों मे इनका विश्वास पड़ा है।
दंगों का दौर चला है। (कुमारी रत्ना) दंगा।।।###@@#

Shivam kumar

# दंगा

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" दंगा" 

उसकी अफवाहों मे इतना दम है, 
की घर और दुकानें बंद हो जाती हैं। 
जब वो आता है, 
तो कितनों की साँसे बंद हो जाती है।। 

साहब !!!
ये दंगा है "दंगा " ।। 
सियासतदां घरों मे बैठे होते हैं, 
आम इंसान होता है नंगा। 

सवाल पूछो तो, 
मिलता है डंडा। 
हक मांगो तो ,
मिलता है दंगा ।। 

इसकी चपेट में , 
चौपट होता है सब धन्धा। 
समर्थ भी हो जाता है "भीखमंगा"।। 

साहब! !!! 
ये दंगा है, " दंगा "

- शिवम् कुमार
- # दंगा

Nilam Agarwalla

मजहबी उन्माद लोगों पर चढ़ रहा था।
दंगों की आग में शहर जल रहा था।
हिन्दू मुस्लिम को, मुस्लिम हिंदू को
हर शख्स एक दूजे को कोस रहा था।।

©Nilam Agarwalla #दंगा

Nishant Choudhary

#दंगा

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दंगा

बहुत हुआ कल हल्ला-गुल्ला,
राम भी सहमा,छुप बैठा अल्लाह।
कोई बोला आज़ादी,
तो कोई बोले धर्म-विरोधी।
पहला और आखिरी भी मरा,
मरता चला गया इंसान।
धर्म का मुखोटा मुख पे,
क्यों बन बैठा है तू हैवान।
श्याम ढली सब अपनों को ताके,
दंगा उठा और चला गया सब को खा के।
 #दंगा

Anand Kumar Ashodhiya

दँगा - भाग 1

रातों रात जाने क्या हुआ कि शहर भर में दँगा हो गया 
जन मानस से ले जनप्रतिनिधि तक हर कोई नंगा हो गया 
किसी की किस्मत तो किसी की अस्मत, दाँव पर लग गई 
शहर फूँक कर जालिमों की आँख गाँव पर लग गई 
शहर दर शहर, गाँव दर गाँव, मौत के कारिन्दे दनदनाने लगे 
लालच के भूखे भेड़िये, लाशों पर बैठकर रुपये बनाने लगे 
अधकच्ची रोटी और लाश एक ही तंदूर में जल गई 
दोनों चीज़ इकट्ठी सेंकने की नयी परम्परा चल गई 
लावारिश बचपन, तबाह जवानी, उदासीन खँडहर शहर के प्रतीक हो गए
जिनको पड़े थे लाले रोटी के, वे गरीबी के दो कदम और नज़दीक हो गए 

मैं कायर नहीं कि ये सब देखता रहूँ 
इतना उदार नहीं कि ये सब सहता रहूँ 
खून खौल उठा है मेरा यह मंज़र देखकर 
धर्म के नाम पर इंसानियत का खून देखकर 
मैंने तुरत फुरत एक साहसी निर्णय ले डाला 
बीवी बच्चे, नकदी नामा, एक एक कर सम्भाला 
अबेर की न देर की, पहली ट्रेन पकडली 
एक नया शहर, एक नया गाँव, एक नयी डगर की सुध ली 

राजनीति, उठा-पटक, साम-दाम, दण्ड-भेद 
अल्हा-ताला, राम-नाम, श्याम-अली, खेद-खेद 
तोहमद-इल्ज़ाम, झंडे-डंडे, साथ-साथ 
मिटते रहे, बिकते रहे साबूत हाथों हाथ 

रचयिता : आनन्द कुमार आशोधि

©Anand Kumar Ashodhiya #दंगा 

#HBDShastriJi
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