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Kumaar Mausam
हमे तो अब ऐसा कोई चाहिए जो पहला वाला प्यार भूला दे.. दिल मे इक मर्तबा फ़िर से कलियाँ वफ़ा वाली खिला दे... जब-जब याद सताये "मौसम" को उस बेवफ़ा की, दौड़कर आये और प्यार से खोले बोतल और हमे पिला दे.. ✍✍✍-कुमार_मौसम DreamGirl by KumarMausam ..........मौसम की ड्रीम गर्ल............ DreamGirl by #KaviKumarMausam #KumarMausam
SK NIGAM
है तमन्ना की जी भर कर तुझे दुआएं दूं पर तेरी फिदरत बता रही है बालाएं दूं दिलो में कोई और होठों पर कोई नाम है मोहब्बत की नुमाईश है सजा ए बेवफाएं दूं थक गई कदम फूल रही है सांसे मेरी फिर भी गर जरूरत पड़े तो अपनी हवाएं दूं, न दे सका मेरी चाहत खुदा ने मुझे फिर भी हाथ उठाकर तुझे सदाएं दूं होती है बहुत दर्द दिल टूटने पर न हो जरा भी गम तुझे वो दवाएं दूं खुद जी रहा है अंधेरे में निगम फिर भी है तमन्ना तेरे फलक पर चांद सितारें दूं ।। ©SK NIGAM #गजल #शायर
OMs Panwar
अहमद फराज़ कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चालो तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है "फ़राज़" तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो फराज़ की एक गजल
kumar vishesh
Freedom मैं तेरे शहर में आया हूं एक अजनबी की तरह दिल चुराया उसने मेरा मोहम्मद गज नबी की तरह फिर आंखों में भर गए वह सपन किसी मछली की तरह रात की चांदनी में चमके जैसे जुगनू चमके बिजली की तरह बदल गई वो मुझसे दूर जाकर मौसम की तरह मैं बिखर गया पतझड़ मैं पेड़ के पत्तों की तरह मैं तेरे शहर में आया एक अजनबी की तरह गजल एक अजनबी की तरह
Yashshri Salunkhe
जब जेब मे लाखों हो ना.... लाखों देनेवाले लाखो मिलेंगे!.... ©Yashshri Salunkhe #शायरी #शायर #लाखों #गजल
Abhinav Kumar
अकेला हूं, एक ख़याल हूं में फिर भी ,बे हिसाब हूं ना ज़माने की फ़िकर ना दिखावे का डर है। कभी खुद से खफा कभी बिन शर्तों के प्यार है। उड़ना तय है अब पंखों में भी जान है चला में कहे दिल जहाँ पाने को एक मंज़र बेमिसाल है। #अभिनव कुमार ड्रीम
प्रDeeP परमार
युही चलता रहूँगा तुम्हारे इंतज़ार मै. क्युकी तू मेरा सबसे कीमती और मंहगा ख्याब है. ड्रीम
पूर्वार्थ
दुनिया को आपकी मेहनत से कोई लेना देना नही है अगर आप हारोगे तो आपको loser बोला जाएगा अगर आप जीतोगे आपको winner कहा जायेगा यही समाज का असुविधाजनक असूल है कितने लोग अपने सपनो के लिए मेहनत करते करते अपने अस्तित्व को बचाने में लग जाते है सपनो को भूल कर, कुछ है अपने सपनो को पाकर अपने अस्तित्व को एक नया पहचान दे देते है। आजकल सपने जीने के सीखने का सफर और जीने का कारण नही बल्कि सामाजिक असुविधा ने उसको एक अस्तित्व की लड़ाई बना दिया है। अगर आप कुछ नही हो तो आप कुछ नही और बापके घर वाले भी कही मुह नही दिखा पाएंगे और काफी कुछ। यही अस्तित्व की लड़ाई ने इंसान को जस्बात से खोखला, मन से चिड़चिड़ा, शरीर से कमजोर , आर्थिक रुप से अस्थिर बना दिया है। इंसान का कुछ बनाना,खुद के अस्तिव से ज़्यादा परिवार के सम्मना, समाज के रुतबे, आपके विवाह मैं आसानी, लोगो की तावज्जो, आपके आर्थिक पहचान का प्रश्न रह गया है। सपनो के सफर को आसान रखो, जीतना है पर हार तो आएंगी इस सफर मे, सपनो का सफर तभी पूरा होगा जहा सच्ची मेहनत, अनुसाशन के साथ आप मन से स्वस्थ, जस्बात से मज़बूत, खुद पर विश्वास रखते हो समाज के सवालों की चिंता किये बगैर। ये जीवन है सरल , स्वस्थ , सार्थक रखो ©झिंगाट छकु #ड्रीम
tripti agnihotri
तृप्ति की कलम से ग़ज़ल 2122 2122 212 दोष औरों के गिनाना छोड़ दो। झूठ पर पर्दा लगाना छोड़ दो साथ जाएगा तेरे कुछ भी नही पाप कर पैसा कमाना छोड़ दो। सत्य है मजबूर कितना आजकल झूठ को सच्चा बताना छोड़ दो। बिक रही इंसानियत औ यश यहाँ ज़ख्म दे, मरहम लगाना छोड़ दो। बात निकलेंगी बनेगी कुछ की कुछ मन की बातों को जताना छोड़ दो। क्या हुआ जो हर कदम धोखा मिला दर्द को अपने छुपाना छोड़ दो। तू अकेला चल मिलेंगीं मंजिलें भीड़ को अपना बनाना छोड़ दो। स्वरचित तृप्ति अग्निहोत्री लखीमपुर खीरी ©tripti agnihotri एक गजल