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Parasram Arora
कितना दौड़ते हो? कुछ यों मिलता नहीं है अब रुको क्योंकि तृष्णा बे पेंदे की बाल्टी है भरो खड़खड़ाओ.. कुए से खूब खींचो ये जिंदगी नहीं अनेक जिंदगीयां खींचते रहो खाली क़े खाली ही रहेगी ज़ब भी बाल्टी ऊपर आएगी खाली ही आएगी कुएँ बदल लो.... इस कुएँ से उस कुएँ पर जाओ उस कुएँ से उस कुएँ पर जाओ यही तो हम आज तक. करतें आये हैl मगर कुओ का क्या कुसूर बाल्टी तो वही की वही है ©Parasram Arora बे. पेंदे की बाल्टी........
ankit saraswat
जनम जनम का साथ, हम निभाऐंगे इसी वादे के साथ जिंदगी में आये थे, और बस एक साल में ही, अब वो वादा किसी और को था, और अब वो किसी और की अमानत थे।। #अंकित सारस्वत # #साथ जन्म जन्म का
✍️NOOR ✍️
जनम जनम का साथ, जन्म जन्म का साथ था फिर तू बदला कैसे।। मेरा दिल तोड़कर किसी और का खरीदा कैसे। तेरे मेरे गिर्द तो एक दायरा था कसमों का। अरे बेवफा तू ओ दायरा तोड़के निकला कैसे। जन्म जन्म का साथ था फिर तू बदला कैसे।। जन्म जन्म का साथ।।।
Rajesh rajak
तुम भूखे रह कर,बेदना बिरह की सहकर, मेरी पायल,मेरी चूड़ी,रहे अमर, मांग में इक लंबी सिंदूर की रेखा खींचकर, ईश्वर से प्रार्थना करती हो मेरी दीर्घायु की, करती हो हमेशा मांग सिर्फ मेरे लिए, मन वचन प्राण वायु की हे प्रिय,ये मोहब्बत नहीं शक है तुम्हारा, तुझे मैंने सिर्फ एक बार में मांग लिया था खुदा से ये कह कर ,,तुझे देना ही पड़ेगा हक है हमारा। शंकित मन मत करो,जन्म जन्म का साथ है हमारा तुम्हारा। जन्म जन्म का साथ हमारा
Parasram Arora
एक हरयाले वृक्ष को अगर ठूठो को जन्म देना हो........ तो जरूरी है वो अपने बीजो को बीहड़ो मे विचरने के लिए प्रेरित करे....... जहाँ उन्हें बेबसी क़ि खाद मिलती रहेगी पेट भरने के लिए ओर प्यास लगने पर पानी के लिए ता उम्र आकाश क़ि तरफ एकटक देखते रहना होगा..... या फिर अपने लहू के आंसुओ को पीकर अपनी प्यास बुझानी होंगी ठूठो का जन्म.......
Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📇जीवन की पाठशाला 📖🖋️ जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आज के युग में हर किसी ने अपने चेहरे पर अनगिनत नकाब ओढ़ रखे हैं जो अपने निजी स्वार्थ -जरूरतों के हिसाब से बेपर्दा होते हैं और उस पर कमाल ये की यही शख्स कहते हैं की जमाना बहुत ख़राब है ..., जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की नख से शिखर तक झूट में लिप्त व्यक्ति के लिए किसी की पीड़ा -दर्द -अहसास --मजबूरी -हालात -गम -तकलीफ कोई मायने नहीं रखते ,मायने रखता है तो फिर एक नया झूठ -नई कहानी -नया बहाना और एक बात ये झूठ की खातिर अपने ईश्वर -रिश्तों तक की बलि चढ़ा देते हैं ..पर ईश्वर का न्याय ... जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जिंदगी में एक ऐसा दौर भी आता है जब इंसान को लगता है की वो अपनी सारी परेशानियों को बेच दे क्यूंकि तब कई तरीकों से मौत सस्ते और किफायती दामों पर मिल रही होती है ..., आखिर में एक ही बात समझ आई की हालात इंसान को वो बना देते हैं जो उसने कभी ख्वाब में भी कल्पना नहीं की होती और जो वो कभी था ही नहीं ,जुर्म का जन्म कुछ व्यक्तियों की इंसानियत से गिरी हुई हरकतों द्वारा होता है ...! बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरुरी ...! 🌹सुप्रभात🙏 स्वरचित एवं स्वमौलिक "🔱विकास शर्मा'शिवाया '"🔱 जयपुर-राजस्थान ©Vikas Sharma Shivaaya' जुर्म का जन्म
Parasram Arora
महाभारत के बरबर युग से लेकर ब्रलिन के पतन तक न जाने कितने युद्ध हुए.... कई सभ्यताये जन्मी और नष्ट हुई कई राष्ट्र नए बने कई उजड़े रक्त रंजीत हुए.... सक्ताओ....के उलट फेर हुए शस्त्रों क़ी होड़ मे लाशों के मजमे लगे नर्क जीवंत हुए...अहं के कद बढ़ते चले गए ...नफ़रत के विषैले बीज़ पनपे और अंधी महत्वकक्षाओं क़ी दौड़ मे आदमी और आदमियत दर बदर हुए ज़मीन क़ी परतो मे सात सात तहे लाशों क़ी बिछती चली गई ...और आज हम आधुनिक युग मे पहुंच गए जहाँ आतंकित सांस्कृति ने जन्म लिया और बची खुची आदमियत भी नेस्त नाबूद होने के कगार पर पहुंच गई कदाचित भोर क़ी इस बेहद बहूदी सफेदी मे एक बिधवसक दानवी अपरिशकृत मानवता "आतंकवाद को जन्म देने मे सफल हुई है ©Parasram Arora आतंकवाद का जन्म