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Deepak Shah (Sw. Atmo Deep)
'पति के इलाज के लिए ऑक्सिजन ढूँढ़ रही महिला से डॉक्टर ने ऑक्सिजन के बदले देह का सौदा करने को कहा।' ये ख़बर पढ़ कर वो बोला, "लोग महामारी से ज़्यादा इस मर रही इंसानियत से परेशान हैं।" "मर रही इंसानियत?... भाई साहिब! हज़ारों साल से इस देश के गाँवों में ग़रीबों की औरतों को अनाज के लिए दिन में दो बार ये ही सौदा करना पड़ता है।… यहाँ इंसानियत हज़ारों साल पहले ही मर गई थी। बस उसके मुर्दे की दुर्गन्ध हमारे नाकों तक अब पहुँचने लगी है।" #ZaraSiBaat ©दीपक शाह 'ਸ਼ਾਹ' #ShahNamaByDeepakShah #KachcheAkshar #aathvan_sur #microtale #story #ShortStory #हिन्दी #कहानी #nojotohindi
Deepak Shah (Sw. Atmo Deep)
"इस भयंकर महामारी में लोग घर से नहीं निकल रहे। और आप उसकी मदद को भागे जा रहे हैं। आप उसको जानते हैं?" "अगर वो बच गए तो जान-पहचान भी हो ही जाएगी।" #ZaraSiBaat ©दीपक शाह 'ਸ਼ਾਹ' #ShahNamaByDeepakShah #KachcheAkshar #aathvan_sur #ZaraSiBaat #microtale #story #ShortStory #हिन्दी #कहानी
piyanka_moniga2.0
vinodsaini
कहानी और किरदार आज के जमाने मे हर व्यक्ति से विश्वास उठ सा गया है ..! कुछ लालच के बदले भाई से भाई को दुश्मन बनते देखा है..!! यहीं हर घर घर की कहानी और किरदार बदलते देखा है ..।।। #kahani #Janata#jamgarh #Vinod #Sani #singodia#v#Lx#v#vs#nojoto#हिन्दी #कहानी
bhishma pratap singh
एक दिवस संकेत नगर (काल्पनिक) नरेश यशमान सिंह(कल्पित) आखेट के लिए निकलेऔर राज्य की सीमाओं से पूर्व ही शेरनी का आखेट कर लौटने लगे, तभी उनकी दृष्टि शेरनी के बच्चे पर पड़ी। अपने दल बल को ठहरने का आदेश देकर नरेश उस बच्चे की ओर जाने लगे किन्तु भय से अपने प्राण बचाने के लिए वह बच्चा भागने लगा और अब वह अकेला ही नहीं था, उसके तीन और साथी भी वहां से भागने लगे। और नरेश ने जाल डलवाकर चारों बच्चों को पकड़वा कर सुरक्षित नगर के पास बगीचे में ले जाने का आदेश दे सीधे स्नान कर मन्दिर चले गए। आज उनका मन अत्यंत कुण्ठित और पीड़ा से ओतप्रोत था इसीलिए उन्होंने मन्दिर में परमात्मा से शेरनी को मारने की क्षमा याचना के साथ वचन लिया कि आज की घटना के उपरांत वे भविष्य में कोई आखेट नहीं करेंगे अपितु इन चारों शावकों के लालन-पालन का पूरा सहयोग भी करते रहेंगे। पुराने अपराधों के दण्ड का तो पता नहीं किन्तु हां! नरेश यशगान सिंह ने उन चारों शावकों की अत्यंत सुन्दर वयवस्था करवा दी और उनके भरण पोषण में कई सेवकों को लगा दिया। चारों शावक नरेश और सेवकों ही नहीं अपितु नगर के हर व्यक्ति को पहचान गए थे। अब वे केवल बाहरी व्यक्ति/अपरिचितों पर ही हमलावर होते जिससे नरेश अति प्रसन्न थे। हाँ! इसी बीच ईश्वर ने नरेश को दो पुत्र और दे दिए जिनका पालन पोषण भी उन्हीं के साथ होने लगा। समय व्यतीत होता जा रहा था। नरेश ने अपने दोनों राजकुमारों का नाम आकाश और गगन रखा तो वहीं बढ़ते चारों शेरनी के बच्चों जिनमें बड़ा शेर व शेष तीनों शेरनियां थीं के नाम क्रमशः राजा,प्रभा, कृपा और आभा रखा गया। समयानुसार उनकी सन्तानें बढ़ती गईं और अब चार से सात-पंद्रह-पच्चीस-पचास होते होते संख्या सौ को पार कर गयी। किन्तु अपने नगर के ही नहीं अपितु राज्य की समस्त प्रजा से वे परिचित थे, इसीलिए प्रजाजन जैसे उनके मित्रवत हो गए वहीं पड़ोसी नरेश की समस्त अनुपयुक्त गतिविधियां संकीर्ण होतीं चली गयीं। अतैव पड़ौसी नरेश ने इस नगर नरेश से अपने सम्बंध सुधारने में ही भलाई समझते हुए अपनी दोनों राजकुमारियों का विवाह इनके दोनों राजकुमारों से कर दिया और सभी जन सुख से जीवन यापन करने लगे। धन्यवाद। (शिक्षा- जीव हत्या पाप है और शत्रुता से मैत्री हजार गुना सुखद होती है।) ©bhishma pratap singh #राजा का प्रायश्चित#हिन्दी कहानी#समाज और संस्कृति#भीष्म प्रताप सिंह#September Creator#findsomeone
bhishma pratap singh
एक राजा के पांच पुत्र थे। नाम थे गणक,रजत, सरल, विरल तथा कमल। दुर्भाग्य से रानी असमय स्वर्गवासी हो गईं। सभी कुशाग्र बुद्धि के थे।किन्तु बड़ा बेटा गणक ईश्वर में अत्यधिक आस्थावान था। राजा ने सभीका बड़े ही अच्छे ढंग से लालन-पालन किया था। राजा के नाना प्रकार से समझाने पर उसने राजा को जाने की अनुमति प्रदान करने पर बाध्य कर दिया। अतैव अपने पिता राजा से आज्ञा प्राप्त कर वह ईश्वर भक्ति के लिए वानप्रस्थान कर गया। दूसरे पुत्र रजत को यथासंभव राजनीति का ज्ञान देकर राज्याभिषेक कर राजा स्वयं भी वन में चले गए। अवसर पाकर पड़ौसी शत्रु राजा ने आक्रमण कर दिया। किन्तु जैसा उसने सोचा हुआ उसका उल्टा। चारों भाईयों ने शौर्य से युद्घ किया और पड़ौसी राजा की मृत्यु हो गई। इस राजा की रानी को शासन देकर चारों अपने राज्य वापस जाने लगे। किंतु रानी ने उनका व्यवहार देख उनको राज्य और अपनी चारों पुत्रियों का विवाह प्रस्ताव दिया। राजा रजत ने रानी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और चारों के विवाह कर अपने दोनों छोटे भाईयों को यहां राजगद्दी दे कर बड़ी दोनों रानियां लेकर दोनों भाई प्रसन्न हो चले गए। अब दोनों राज्यों में सुख सौभाग्य था। समाप्त। ©bhishma pratap singh #कहानी एक राजा की#हिन्दी कहानी#भीष्म प्रताप सिंह#समाज और संस्कृति#September Creator#संस्कार #sunrays
bhishma pratap singh
वह मेरी प्रथम लम्बी रेल यात्रा थी जब मैं आगरा से लिपिक बन कर सेना सेवा के लिये निकला था। सिकंदराबाद नाम सुनते ही मैंने कहा, श्रीमान मुझे रेल यात्रा की क्या आवश्यकता। बुलंदशहर से थोड़ी दूरी पर ही तो है सिकंदराबाद और हां वहां तो रेल सुविधा उपलब्ध ही नहीं है। अतैव मैं तो बस से चला जाऊंगा। भर्ती कर्मचारी सभी ठहाके लगाने लगे और मैं आश्चर्यचकित था। तभी प्रवर अधिकारी ने संकेत कर सभी को एकत्र होने का संकेत देते हुए यात्रा के विषय में उचित जानकारी प्रदानकी। ये लम्बी यात्राएँ हैं और सभी को पृथक पृथक रेल यात्रा करनी है। उससे पूर्व ये सिकंदराबाद कभी नहीं सुना था किन्तु जब दूरी सोलह सौ कि मी बताकर विवरण मिला तो मैं दंग रह गया। मैं इस असमंजस में था कि अभी तक तो बिना माता-पिता के कभी दिल्ली और ननिहाल बरेली के अतिरिक्त कहीं भी नहीं गया। हे! भगवान् रक्षा करना, का विचार पूरा भी न हुआ कि किसी ने कन्धे पर धीरे से हस्त रखा। मैंने मुड़कर विस्मय से देखा तो वह व्यक्ति मंद हास में मेरा नाम लेते हुए बोला सिकंदराबाद जाओगे? उससे पहले मैं कुछ बोल पाता उसने कहा मैं भी वहीं जा रहा हूँ अब खूब पटेगी।वहां उसके पिता सेवारत थे। थोड़ी ही देर में उसने सब कुछ समझा दिया।और हमलोगों का आरक्षण भी कराया। सन्ध्या समय से गाते बजाते और अन्ताक्षरी खेलते लोगों को हंसाते हम तीसरे दिन सवेरे आनंद मनाते उतरे जो अविस्मरणीय है। ©bhishma pratap singh #मेरी पहली लम्बी रेल यात्रा#हिन्दी कहानी#भीष्म प्रताप सिंह#काव्य संकलन#quotes#findsomeone#September Creator