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नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो,
जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो।
हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त,
संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।।

मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो,
जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो।
नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां,
अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।।

मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी,
पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी।
नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण,
चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब  गीत और कजरी।। #लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र
@लोकतंत्र
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नेहा उदय भान गुप्ता

ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो,
जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो।
हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त,
संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।।

मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो,
जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो।
नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां,
अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।।

मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी,
पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी।
नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण,
चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब  गीत और कजरी।। #लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र
@लोकतंत्र
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M. A. Khan

तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आंचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था
शाहीन बाग़ ने आंचल का परचम बनाया है
सभी गांधी वादियों को इसे सलाम करना चाहिए #लोकतंत्र
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DR. LAVKESH GANDHI

अग्रजों  से सुना था
 लोकतंत्र में
 कलेक्टर ,मास्टर और ट्रैक्टर की
 भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. 
 उसे आज देख भी लिया. # लोकतंत्र#

# लोकतंत्र#

7 Love

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Ashraf Fani【असर】

Trust me भेड़ और भेड़िये
की दोस्ती लाज़िम ही नहीं
अब नया लोकतंत्र है की
हम मजबूर से हैं! #लोकतंत्र
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Sabir Khan

मुझे गर्व है कि मैं विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक महान राष्ट्र भारत का निवासी हूं और मैं उस लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहूॅगा।

🇮🇳जय हिंद🇮🇳 लोकतंत्र

लोकतंत्र

3 Love

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Suresh Kumar Kushwaha

लोकतंत्र

लोकतंत्र

77 Views

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rajesh singh

मेरी कलम से---------
******************
तुम बुलडोजर चलाओ, हमारे घरों को जमींदोज कर दो, तुम लाठियां चलाओ,निरीह और मासूमों पर, हां गोलियां भी चलाओ और कत्ल कर दो किसी भी आम शहरी को।तुमने नफरतों के बीज बोये थे। हम जानते थे कि फसल लहलहाये गी। वह लहलहा रही है। चारों तरफ नफरत की बयार बह रही है। संविधान को रायसीना हिल्स की दीवारों के पीछे कैद कर दिया गया है। अदालतें चुटकुले सुनने और ठहाके लगाने में ब्यस्त हैं। संसद में तो बैठे ही हैं मवाली और गुंडे। समूचा देश पुलिस स्टेट में तब्दील हो गया है। फासीवाद का यही असली चेहरा है। हम कबीलों की तरफ लौट कर आ गये हैं। हम सामंतवादी व्यवस्था की तरफ लौट कर आ गये। जहां एक आदमी ही संविधान, संसद और अदालत सब कुछ होता है। जहां इंसान गुलाम समझा जाता है। उसके साथ जानवरों जैसा सलूक होता है। हमारे पुर्वजों ने एक‌ लंबी लड़ाई लड़कर इन सब से हमें मुक्त कराया। एक मानवीय समाज की स्थापना के लिए अपना लहू बहाया। अपनी प्राणों की‌ आहूतियां दी। क्या  इसीलिए कि हम फिर लौटकर वही पंहुच जायें। हम फिर उसी दलदल में कूद जायें। मन में एक सवाल उठने लगा है कि क्या अवाम को गुलामी ही पसंद है। क्या हमारे महापुरुषों और क्रान्तिकारियों ने व्यर्थ ही हमारी मुक्ति की लड़ाई लड़ी और शहादतें दी??? अगर ऐसा नहीं है तो उस समय जब फासीवादी ताकतें नफरत‌ के बीज बो रही थी, जब हमें आपसी वैमनस्य की आग में झोंकने की साजिशें रच रही थीं तब हम खामोशी से सब देख रहे थे। हम समझ रहे थे कि हमारी आजादी पर हमला है। हमें गुलामी के दलदल में धकेलने की साजिश है। तो हम बोले क्यों नहीं, हम लड़े क्यों नहीं। जो आजादी हमें विरासत में मिली उसकी रक्षा के लिए हम क्यों खड़े नहीं हुए। इस भयानक फासीवादी हमले के ‌ बीच भी कुछ लोग थे जो फ़ासिस्टों से लड़ रहे थे । और हमें आगाह कर रहे थे। लेकिन हम फिर भी नहीं बोले। क्योंकि हम तो हिंन्दू और मुसलमान के मंचन पर चटखारे ले रहे थे। पत्थरों में भगवान खोज रहे थे। और अभी भी हमें मजा आ रहा है कि मुसलमान मारे जा रहे हैं, मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर गरज रहे हैं। आप जाहिल हैं, नासमझ हैं, मक्कार हैं सब कुछ समझ कर भी नसमझी का ढोंग किये बैठें हैं। ये भेड़िए हैं, इन्हें खून से मतलब है, इन्हे मांस से मतलब है। वो किसी का भी हो, हिंदू का हो, चाहे मुसलमान का‌ हो,सिख का हो, चाहे ईसाई का हो। एक बार विरोध कर के तो देखिये, अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा कर तो देखिये। तुम्हारा घर भी बुलडोजर की जद में न आ जाए तो कहना। तुम्हारी हड्डियां भी पुलिस की लाठियों से चकनाचूर न हो जाए तो कहना। याद है न विकास दुबे, मोहित गुप्ता जैसे सैकड़ों लोगों की मौत। इलाहाबाद में रोजगार मांग रहे छात्रों पर लाठियां और गोलियां याद है न। शायद तुम्हें कुछ नहीं याद है क्योंकि तुम मुर्दा शांति से भरे हुए हो। तुम्हे गुलामी पसंद है। बधाई हो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को वह अपने मकसद में कामयाब हो गए। संविधान और लोकतंत्र की रक्षा हम नहीं कर पाये। अब रिमोट तुम्हारे‌ हाथ में है। ‌हम सब कठपुतली हैं। जैसे चाहो नचाओ। मजदूरी कराओ या कत्ल कराओ, हम सब जो हुकुम मेरे आका की मुद्रा में आपके सामने खड़े हैं। हमें अपने आप से घिन आती है, क्योंकि मैं भी इस मुर्दा  समाज का हिस्सा हूं।

डा राजेश सिंह

©rajesh singh #लोकतंत्र
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Er.Mahesh

दिल में अति पीड़ा है ,
जता नही सकते
आंखों के सामने
 लोकतंत्र मिट रहा है
इसे बचा नही सकते
 इतिहास में सुना था
 गुलामी सही थी लोगों ने
अब गुलामी के दर्द को 
दिल में छुपा नहीं सकते
लोग शहीदों को 
सम्मान देते है बहुत सारा
उनके त्याग का हर जगह करते हैं
 जय जय कारा
लेकिन इस गुलामी से बचाने के लिए 
कोई खुद को आगे बढ़ा नही सकते
उत्पीड़न से भरी गुलामी के 
इस दर्द को मिटा नही सकते

©Er.Mahesh #लोकतंत्र
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Manish Kumar Savita

 लोकतंत्र...

लोकतंत्र... #nojotophoto #विचार

1 Love

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Sabir Khan

लोकतंत्र में सभी ओहदे सेवक की 
श्रेणी में आते हैं। 

जब आपको सेवक की कार्यप्रणाली के
 विरुद्ध सत्य लिखने के पहले दस
बार सोचना पड़ रहा हो तो आप समझ 
लीजिये कि सेवक शासक बनने की ओर
अग्रसर है। #लोकतंत्र
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Sabir Khan

लोकतंत्र में सभी ओहदे सेवक की 
श्रेणी में आते हैं। 

जब आपको सेवक की कार्यप्रणाली के
 विरुद्ध सत्य लिखने के पहले दस
बार सोचना पड़ रहा हो तो आप समझ 
लीजिये कि सेवक शासक बनने की ओर
अग्रसर है।  #लोकतंत्र
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राजेंद्रभोसले

अमन और खुशीयाली का नाम लोकतंत्र
समता बंधुता का जहाँ उगता मंत्र।।धृ।।

वतन के खातीर  आन  है
चमन  के खातीर जान हैं
देस कि मीट्टी मेरी शान हैं
सर्वधर्मसमभाव सम्मान है ।।१।।

 धरोहर  संस्कृती की नीव हैं 
दुष्मण के लीये शिव हैं
बुनियादी सभ्यता का भाव हैं
किसान मजदूरों की छाव  हैं।।२।। लोकतंत्र

लोकतंत्र

4 Love

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भगवान ukpedia

चिल्लाने से नहीं पड़ा खलल,
महलों के बंद किवाड़ों पर अब मूसल बरसाने होंगे।

कौन तुम्हें अधिकार उपहार में देगा,
ये ऐसा लोकतंत्र है हमको भाले बरसाने होंगे।




अमर शहीद राज्य आंदोलनकारी यशोधर बेंजवाल 
की पंक्तियां बेरोजगारों को समर्पित। #लोकतंत्र
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Archana Patel

भारत का केवल एक मंत्र।
लोगों का यह लोकतंत्र।

©Archana Patel लोकतंत्र

लोकतंत्र #कोट्स

14 Love

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Aniket

सत्ता में रहकर कभी गुमान मत करना राजतंत्र नहीं लोकतंत्र हैं,
जनता से आप हो आप से जनता नहीं और जनता के पास आपको हटाने का मंत्र है।

©Aniket ✍️ ✍️✍️ #लोकतंत्र
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Rahul Pandit

सबसे बड़े वो अपराधी है जो अपराधियों का समर्थन करते है ।
राष्ट्रहित में वोट दीजिए । लोकतंत्र

लोकतंत्र

3 Love

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PRAKHAR SHARMA

 लोकतंत्र

लोकतंत्र

15 Love

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rajesh singh

क्या हम अभी भी लोकतांत्रिक देश हैं?
 ***************************************
आजकल ना जाने क्यों अपना वह देश बेगाना सा लगता है, जहां मैंने पिछले पचास साल जिए हैं। इसके इतिहास, भूगोल, पर्यावरण, परंपराओं, सभ्यताओं और विभिन्न संस्कृतियों को जाना और समझा है। पर आज वही अपना देश जैसे पराया सा लगता है। चारों तरफ जैसे आग लगी हुई है। नफरत के शोले भड़क रहे हैं। हर आदमी दूसरे आदमी से डरा हुआ है। सारा समाज किसी रहस्यमयी तिलिस्म की तरह नजर आता है। सच बोलने वाले जैसे गूंगे हो गए हैं। अन्याय के खिलाफ खड़े होने वाले अंधे और बहरे हो गए हैं। आखिर यह कौन सी बयार है। कौन सा जहर है। जो सांसों के साथ समूचे देश के रक्त में प्रवाहित होने लगा है। ऐसा तो नहीं था हमारा देश। हम पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक एक सूत्र में हमेशा बंधे रहे हुए थे। अलग-अलग धर्मों, पूजा पद्धतियों, खान-पान, रहन-सहन, भाषाओं और पहनावे के बावजूद हम लयबद्ध होकर आगे बढ़ते चले जा रहे थे। हमने ईद और होली में कभी भेद नहीं किया। कभी कबीर और नजीर में फर्क ही नहीं समझा। राम और रहीम सभी तो मेरे थे। हमारा देश एक मजबूत गणतंत्र था। शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के क्षेत्र में हम आगे आगे बढ़ते चले जा रहे थे। नागरिक और समाज, वैचारिक और आर्थिक रूप से समृद्ध होते चले जा रहे थे। समूचा विश्व हमारे देश को अंगड़ाई लेकर आगे बढ़ते हुए कौतुहल से देख रहा था। हर क्षेत्र में सुधार के प्रयास चल रहे थे। क्योंकि सब कुछ बहुत बेहतर नहीं था। बहुत कुछ ऐसा था जो हमारे समाज और इंसानियत पर कलंक था। जो हमें शर्मसार करता था। जो हमें विरासत में मिला था। उसमें सबसे खतरनाक था- जातियों का मकड़जाल और धर्मांधता का नशा। गरीबी और अशिक्षा के चलते सामाजिक कुरीतियां भी हमें विरासत में मिली थी। लेकिन हम उसका डटकर मुकाबला कर रहे थे। हमारे समाज के जागरूक लोग समाज के सजग प्रहरी की भूमिका बखूबी निभा रहे थे। हम अपनी चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों पर निगरानी भी कर रहे थे। अपनी आवाज संसद तक प्रतिध्वनित कर देते थे। देश की जनता ने सरकारें बनाई, तो सत्ता के दुरुपयोग पर उन्हें उखाड़ कर फेंक भी दिया। आजादी के बाद संसदीय लोकतांत्रिक भारत के इतिहास में सत्ता के खिलाफ जन संघर्ष और आंदोलन का गौरवशाली इतिहास हमारी उन्नति का प्रमुख कारक है। बहुत सारी कहानियां है। सरकारों ने जुल्म भी किए,दमन भी किया। गलत दिशा में बढ़ते हुए कदम पीछे भी खींचे। यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती थी। हमारे पास चीजों को तय करने का संविधान के रूप में एक पैमाना था। जिसका जिस पर हम ने सत्ताधीशों को अतिक्रमण नहीं करने दिया। शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा और रोजगार हमारे मौलिक अधिकारों में थे। हमें बोलने की आजादी थी। सरकारों के गलत कलापों पर विरोध प्रदर्शनों की इजाजत थी। सिर्फ इजाजत ही नहीं बल्कि जन आंदोलनों की हुंकार से संसद कांप उठती थी। दिल्ली की सत्ता डगमगाने लगती थी। न्यायपालिका और पत्रकारिता जैसे स्तंभ हमारे लोकतंत्र के सजग प्रहरी थे। जो सत्ताधीशों के नहीं बल्कि जन सरोकारों के पक्षधर थे। लेकिन आज जैसे सब कुछ बदल गया है। देश सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर विकलांगता का शिकार हो गया है। सरकार तानाशाही रवैया अपना चुकी है। गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ते हुए भुखमरी की ओर बढ़ रही है। शिक्षा अपनी दुर्दशा पर चीत्कार कर रही है। स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों को नफरत के अखाड़ों में तब्दील कर दिया गया है। अब वहां विद्यार्थियों की टोलियां नहीं, सुरक्षाकर्मियों की टुकड़िया नजर आती है। संविधान का कोई मतलब बचा नहीं है। मीडिया तानाशाह के चारणगीत गाने में और न्यायपालिका उसकी चरण वंदना में लगी है। लगभग सभी संस्थाएं तानाशाह के हाथ की कठपुतली बन चुकी हैं। पुलिस अपने साम्राज्यवादी स्वरूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। हमारे मौलिक अधिकारों को खत्म कर दिया गया है। बोलने की आजादी छीन ली गई है। गली कूचों, गांव मोहल्लों में नफरत की बारूद सहेज कर रख दी गई है। यह बारूद हमारे मस्तिष्क में भरी है। हमारे खून में बह रही है। जो कभी भी करोड़ों लोगों के जनसंहार का बायस बन सकती है। यह सब मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं। यह हो चुका है। और हो रहा है। संसद का सत्र शुरू होने से पहले जो नियम बनाए जा रहे हैं, जो शब्दाडंबर जारी किया गया है। और परिसर में विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है, यह अभिव्यक्ति आजादी छीनने का ही काम है। पहले जनता की अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली गई, और अब जनप्रतिनिधियों की भी जीभ काट देने का फरमान सुनाया गया है। देश के राष्ट्रीय चिह्न के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ से यह संकेत दिया गया है कि हम संविधान की कोई परवाह नहीं करते। यह सब कुछ हो रहा है। अदालतें तानाशाह के लिखे हुए फरमान सुना रही हैं। और मीडिया उन्हें सही साबित करने पर तुली हुई है। किसी भी संस्था से कोई उम्मीद करना बेमानी है। आवाम को अपनी आजादी, अपने संविधान और अपने लोकतंत्र को बचाने के लिए स्वयं ही आगे बढ़ना होगा। अगर न्यायपालिका से उम्मीद होती, तो हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए लड़ने वाले हमारे तमाम सजग प्रहरी जेल की चारदीवारी के अंदर कैद नहीं होते। क्या अदालत नहीं जानती कि हिमांशु कुमार कौन हैं ? तीस्ता सीतलवाड़ कौन हैं ?? क्या वे गौतम नवलखा,आनंद तेल तुंबडे को नहीं जानते? सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी को भी नहीं जानते? अदालतें इन सब की लड़ाइयों के सच से अनभिज्ञ तो हो नहीं सकती। हो सकता है न जानते हो, तो मुकदमें सुनने से पहले उनके बारे में सच तो जान ही गये होंगे,तब तो न्याय करना चाहिए था। लेकिन वह ऐसा क्यों करेंगे? उन्हें तानाशाह का इशारा चाहिए और तानाशाह अपने शत्रु को पहचानने में कभी गलती नहीं कर सकता।

डा.राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
एवं विचारक।

©rajesh singh #लोकतंत्र
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Dr Arun Pratap Singh Bhadauria

लोकतंत्र मजबूत बने, 
जनता की सरकार बनाना है! 
वोट डालकर हम सबको, 
अपना कर्तव्य निभाना है!
कवि डा.अरुण प्रताप सिंह भदौरिया

©Dr Arun Pratap Singh Bhadauria लोकतंत्र

लोकतंत्र #विचार

13 Love

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Dipak Vaishnav

#लोकतंत्र
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narayan tomar

ना धर्म आढ़े रखना 
ना ही जात पर जाना
तू वोटर सिपाही है लोकतंत्र का
मोहर योग्य पर लगाना स्वतंत्र लोकतंत्र

स्वतंत्र लोकतंत्र

3 Love

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चौधरीHaRiShपूनियां

सबका अपना लोकतंत्र है जैसे ढपली वाला राग 
किसको फुरसत जाकर देखें खाली पेटों में जो आग झूठा लोकतंत्र

झूठा लोकतंत्र

3 Love

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Pooja Sharma

अंधा लोकतंत्र

अंधा लोकतंत्र

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SDM Rankawat

लोकतंत्र.... 

#bharat

लोकतंत्र.... #bharat #कविता

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Sudhir Srivastava

व्यंग्य
लोकतंत्र
-------------
हम और हमारा लोकतंत्र दोनों महान हैं
क्योंकि लोक और तंत्र हमारी शान है।
तभी तो हम लोकतंत्र का खुला मजाक उड़ाते हैं,
लोक रहे या भाड़ में जाय मेरी बला से
हम तो लोक और तंत्र का खुलकर मजाक उड़ाते हैं।
कहने की जरूरत नहीं है 
कि हम कितने निराले हैं?
अपने लोक की चिंता करते हैं
शायद इसीलिए तंत्र की धज्जियां उड़ाते हैं।
यही तो हमारी विशेषता है यारों
हम तो वो हैं जो खुद के पैरों में कुल्हाड़ी मारते हैं
जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद भी करते हैं
अपने हाथों अपना आशियां जलाते हैं
लोकतंत्र की महानता के गुण गाते हैं
लोकतंत्र के हम दुश्मन बनते 
और उसी के गीत भी गाते हैं। 

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक, स्वरचित

©Sudhir Srivastava #लोकतंत्र

#illuminate
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narayan tomar

ना धर्म आढ़े रखना 
ना ही जात पर जाना
तू वोटर सिपाही है लोकतंत्र का
मोहर योग्य पर लगाना स्वतंत्र लोकतंत्र

स्वतंत्र लोकतंत्र

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narayan tomar

ना धर्म आढ़े रखना 
ना ही जात पर जाना
तू वोटर सिपाही है लोकतंत्र का
मोहर योग्य पर लगाना स्वतंत्र लोकतंत्र

स्वतंत्र लोकतंत्र

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