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Devendra Kumar
उनसे कहो कि वो हमें मनाना छोड़ दें। हमसे मिलने का कोई बहाना छोड़ दे। मेंरा महबूब आ रहा है रात को कहीं से चांद,तारों से कहो टिमटिमाना छोड़ दें। टिमटिमाना।।।।
Himanshu Prajapati
खुले आसमां के बारे में हम क्या बताएं हमने तारों से सीखा है टिमटिमाना..! ©Himanshu Prajapati #astrology खुले आसमां के बारे में हम क्या बताएं हमने तारों से सीखा है टिमटिमाना..!
Manish पंडित
तारों को अब अच्छे से कहां टिमटिमाना आता है, ऐ चंदा मुझको तो बस तू भाता हैं.
Nitin 'ved'
Abhijeet Yadav
शहर का ये आखिरी कोना, स्याह रात में चन्द जुगुनुओं का टिमटिमाना, भीगी अधजली चैले से धुंए का उठना, मसान में अनगिनत लाशों का जलना, चन्द सांसों को जन्मे इन कीट पतंगों का अफसाना, राख़ हो चुकी देहों की अजीब सी गंध अपने वजूद को ढूंढता ठूंठा पेड़, सभी तो अंत की ओर अग्रसर है, तो बताओ भला...... क्या मौत को भी मौत से डर लगता होगा? #gif क्या मौत को भी मौत से डर लगता होगा? शहर का ये आखिरी कोना, स्याह रात में चन्द जुगुनुओं का टिमटिमाना, भीगी अधजली चैले से धुंए का उठना, मसान
sheetal dabi
सुनो...!! सुनो, कविता बन जाओ ना, मै तुम्हे लिखना चाहती हूं धुन बन जाओ ना, मैं तुम्हे गुनगुनाना चाहती हूं फूल बन जाओ ना, मै भवरा बन तुम पर मंडराना चाह
Kh_Nazim
ग़ुलाम...! अजीब हालत हो रहे है हमारे भी तुझे खोंने के एहसास से मुख़ातिब हो रहे है। लगता है भटक जाएंगे तेरे बिन... इन रास्तो पर शायद तेरे बनाए हालातों के गुलाम हो रहे है। कहाँ जाता, किस से पता पूछता हुआ जब अकेला तेरी यादो का पेहर देखता भटक तो रहे थे, गुलामो की तरह तेरे दरपर, तेरी मोहब्बत पे जब हुजूम-ए-आशिकों का मेला देखा लगा नया नहीं,चाँद की रोशनी में तारो का टिमटिमाना। शायद हमनें फिर कोई फ़रेब देखा पर वो मंज़र-ए-क़यामत था मेरे लिए मुख़ातिब हो गया था तेरे आइन-ए-अश्क से पर दिल ने उम्मीदे लो क्यों बरक़रार रखी शायद मैं फिर तेरा ग़ुलाम हो रह था ज़ेहन में कई बार आया की तोड़ दू कनिज़-ए-जंजीर, पर अपनी आदत से मैं कहा बाज़ आया। तुझे देख-बात करने की आदत अब लात सी हो गई है मैं शायद फिर तेरी मीठी बातों का ग़ुलाम हो रहा था अजीब हालते उलझन हो रही है हमारे भी उसे देख नाज़िम फिर तेरे हम मुख़ातिब हो रहे हैं। ग़ुलाम...! अजीब हालत हो रहे है हमारे भी तुझे खोंने के एहसास से मुख़ातिब हो रहे है। लगता है भटक जाएंगे तेरे बिन... इन रास्तो पर शायद तेरे बन
Kulbhushan Arora
कल रात मेरा छत पे चले जाना, सर उठा ,आसमान में खो जाना, सितारों का टिमटिम टिमटिमाना, मानो कोई हाथ लग गया खज़ाना। सितारों की भीड़ में इक सितारा जगमगाया, मुस्कराते हुए बच्चे सा उसने हाथ हिलाया, तुम भी भूल गए ना, सितारा उदास नज़र आया मेरी आंखों में भी आंसू का सितारा झिलमिलाया। सितारा बोला, याद है बचपन में हम कितना खेला करते थे, तुम जुगनू पकड़, मुट्ठी बंद कर लिया करते थे, हमें देख तुम , अक्सर यही कहा करते थे, देखो देखो पकड़ लिया तुम्हें तब हम कितना हसा करते थे। कहां खो गए तुम, इस दुनिया की भीड़ में, कहां दौड़ रहे तुम, इस बेरहम होड़ की दौड़ में, देखो, रोज़ न सही, कभी कभी तो मिलने आया करो, तुमसे बातें करना, तुम्हारी बातें सुनना, बड़ा अच्छा लगता है.😍..😍😍😍 Hii writers 😊 Good evening Collab with earlybirdzone and add your thoughts on this beautiful background Thank you Miss Glory for your sug
Kh_Nazim
प्यार और फ़रेब ग़ुलाम...! अजीब हालत हो रहे है हमारे भी तुझे खोंने के एहसास से मुख़ातिब हो रहे है। लगता है भटक जाएंगे तेरे बिन... इन रास्तो पर शायद तेरे बनाए हालातों के गुलाम हो रहे है। कहाँ जाता, किस से पता पूछता हुआ जब अकेला तेरी यादो का पेहर देखता भटक तो रहे थे, गुलामो की तरह तेरे दरपर, तेरी मोहब्बत पे जब हुजूम-ए-आशिकों का मेला देखा लगा नया नहीं,चाँद की रोशनी में तारो का टिमटिमाना। शायद हमनें फिर कोई फ़रेब देखा पर वो मंज़र-ए-क़यामत था मेरे लिए मुख़ातिब हो गया था तेरे आइन-ए-अश्क से पर दिल ने उम्मीदे लो क्यों बरक़रार रखी शायद मैं फिर तेरा ग़ुलाम हो रह था ज़ेहन में कई बार आया की तोड़ दू कनिज़-ए-जंजीर, पर अपनी आदत से मैं कहा बाज़ आया। तुझे देख-बात करने की आदत अब लात सी हो गई है मैं शायद फिर तेरी मीठी बातों का ग़ुलाम हो रहा था अजीब हालते उलझन हो रही है हमारे भी उसे देख नाज़िम फिर तेरे हम मुख़ातिब हो रहे हैं। हम आज़ाद परिंदे थे शायद फिर क्यों हम तेरे दिल के पिजड़े के गुलाम हो थे। ग़ुलाम...! अजीब हालत हो रहे है हमारे भी तुझे खोंने के एहसास से मुख़ातिब हो रहे है। लगता है भटक जाएंगे तेरे बिन... इन रास्तो पर शायद तेरे बन
Neena Jha
नज़र आती है, सुबह की उजली किरण आज कुछ, कम उजली लगती है; मानो जैसे सूरज की किरणें, बिजली के तार सी एक एक कट रही हों; मग़र, फ़िर भी धूप थोड़ी ताज़ी नज़र आती है, जैसे किसी ने सूरज को, सर्द में नहलाया हो; जो दिन गहराता जाए तो, दिल तुम्हारी ओर खिंच जाता है; मानो साँझ के चाँद का चुंबकीय बल, इन यादों पर असर कर रहा है; जो साँझ ढलने का वक़्त आया, मुआयना छत का किया गया; रात अनोखी, काली ऐसी, गहरे सन्नाटे में घने जंगल जैसी; तारों की बारात, यूँ तो दिखनी मुश्किल है बिना दूरबीन के; मग़र जो दिखे दो चार, मानो टिमटिमाना भूल गयें हैं, जैसे किरणों के बिस्तर पर अलसाने में, रात की सुध लेना ही भूल गए हैं; चांद तो हंसिये सा नज़र आता है यूँ, मानो इसका हार बना, तुम्हारे लिए ख़ुद को संवार लूँ; कुछ ग्रह नज़र आए तो लगता है जैसे, दूसरी दुनिया से मेल जोल हो रहा है; कभी लगता है मानो, हम सौरमंडल में पकड़म पकड़ाई खेल रहे हों; अद्भुत हो वो नज़ारा जो हम नज़र भर, इस नए अंदाज़ में ब्रह्मांड को देख लें! Without नीना झा #संजोगिनी ©Neena Jha #sparsh #Neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण #संजोगिनी जय माँ शारदे 🙏 नज़र आती है,