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Santosh Jadhav

#ऐसा लगता हैं... ऐसा लगता हैं...! ऐसा लगता हैं.. वक्त ठहरसा गया हैं.. खुदसे मिले एक अरसा हो गया हैं.. घर दफ्तर सा और दफ्तर घरसा हो गया है

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ऐसा लगता हैं...! 

ऐसा लगता हैं.. 
वक्त ठहरसा गया हैं..
खुदसे मिले एक अरसा हो गया हैं..
घर दफ्तर सा और दफ्तर घरसा हो गया हैं... 
सूकून से ज्यादा जरूरी शायद पैसा हो गया हैं...! 

ऐसा लगता हैं...
गाँव का हाल शहरसा हो गया हैं.. 
गाँववाले शहरी दौड में और गाँव ठहरसा गया हैं.. 
बदले नजारें गलियोंके मोहल्ला खंडहरसा हो गया हैं... 
इक्कीसवीं सदी में गाँव और शहर अब एक जैसा हो गया हैं..! 

ऐसा लगता हैं...
अब जीवन स्वर्गसा हो गया हैं...
विज्ञान से जीवन हकीकत में सपनोंसा हो गया हैं...
पर जीवन में अपनोंका का पता कहीं खो गया हैं... 
अपनों से ज्यादा यंत्रोंसे ईन्सान करीब हो गया हैं..! 

ऐसा लगता हैं... 
दुनियाँ के करवट लेने का वक्त अब करीब आ गया हैं.. 
मानवनिर्मित सुखों का अंत अब समीप आ गया हैं... 
इस वसुंधरा से एकरुप जीवन का दौर करीब आ गया हैं..
ईन्सान के ईन्सानियत का लूटा हुआँ वो दौर समीप आ गया हैं..! 
-संतोष लक्ष्मण जाधव. 9890064001. (19.08.20.) #ऐसा लगता हैं...
ऐसा लगता हैं...! 

ऐसा लगता हैं.. 
वक्त ठहरसा गया हैं..
खुदसे मिले एक अरसा हो गया हैं..
घर दफ्तर सा और दफ्तर घरसा हो गया है

N S Yadav GoldMine

#Rajkapoor {Bolo Ji Radhey Radhey} 'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना गया है। मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है। अति प्राचीनकालीन महा तपा, पुण्यपुञ्ज ऋषियों के पवित्रतम अन्त:करण में वेद के दर्शन हुए थे, अत: उसका 'वेद' नाम प्राप्त हुआ। ब्रह्म का स्वरूप 'सत-चित-आनन्द' होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है। 'तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये'- तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ।

आत्मज्ञान का ही पर्याय वेद है।

1 वेदवाड्मय-परिचय एवं अपौरुषेयवाद

2 मनुस्मृति में वेद ही श्रुति

3 वेद ईश्वरीय या मानवनिर्मित

4 दर्शनशास्त्र के अनुसार

5 दर्शनशास्त्र का मूल मन्त्र

6 वेद के प्रकार

7 टीका टिप्पणी और संदर्भ

8 संबंधित लेख

श्रुति भगवती बतलाती है कि 'अनन्ता वै वेदा:॥' वेद का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान अनन्त है, अत: वेद भी अनन्त हैं। तथापि मुण्डकोपनिषद की मान्यता है कि वेद चार हैं- 'ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदो ऽथर्ववेद:॥'[5]इन वेदों के चार उपवेद इस प्रकार हैं—

उपवेदों के कर्ताओं में

1.आयुर्वेद के कर्ता धन्वन्तरि,

2.धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र,

3.गान्धर्ववेद के कर्ता नारद मुनि और

4.स्थापत्यवेद के कर्ता विश्वकर्मा हैं।

©N S Yadav GoldMine #Rajkapoor {Bolo Ji Radhey Radhey}
'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना
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