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Parasram Arora
कोल्हू मे बैल जिस तरह घूमता रहता हैँ हम भी तो उसी तरह बार बार घूम रहे हैँ बालपन मे खेल तरुणाई मे प्यार मुहब्बत चालीस वर्ष की आयु पार करने पर असमंजस वाली मनोदशा साठ साल क़े होने पर "क्या हो रहा मेरे साथ? किसलिए ये जिन्दगी? '" इस स्तिथि को कुछ लोग अध्यात्म समझते हैँ किन्तु ये आध्यात्म नहीं गोल गोल घूमना हैँ चक्क्रऱ काटने की प्रक्रीया हैँ "पुनरपि जन्मम.. पुनरपी मरणम " पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम
Parasram Arora
कही वो फकीर विश्व का प्रथम पुरुष तो नहीं.... एक आदिकालीन तेज उद्गमित हो रहा है उसके ललाट पर.... उसकी संयत वाणी तीखी चोट कर रही ह्रदय के भीतर तक... और मेरे अस्तित्व गत सभी अणु पुनर्जागरण की और अग्रसर हो रहे है पुनर्जागरण......
Siddharth Chaturvedi
जोरों धधक उठी आवाज़ें धड़कन की, उनको लगा कि अब टूटने की बारी है, कामयाबी का एक ही सूत्र को जानो, जब लगे गिरा तभी उठने की बारी है। ©Siddharth Chaturvedi पुनर्जीवन
Sneh Lata Pandey 'sneh'
आज रमिया उसी मोड़ पर खड़ी थी जहाँ से कई साल पहले उसकी माँ खड़ी थी। माँ का नया पति यानि उसके सौतेला बाप ने जब उसे कुत्सित नज़रों से देखा तो माँ अपने होश में नहीं थी और उसे लेकर कहीं दूर चली गई लेकिन नियति के क्रूर चक्र के आगे उसकी एक न चली, उसके हाथ पीले करने के बाद माँ इस दुनियाँ से चल बसी और वह अपने पति के साथ सुकून की ज़िंदगी बसर कर रही थी। उसका पति कोरोना काल में काल कलवित हो गया उस दौरान सोमेश ने आर्थिक और भावनात्मक रूप से उसकी बहुत मदद की थी अब उसके बदले में रमिया से शादी करना चाहता था लेकिन रमिया को उस पचास साल के सोमेश की नज़रों में वह खुद को कभी नहीं पाती थी बल्कि सोमेश की निगाहेँ तो उसकी सोलह वर्षीया बेटी राजी पर टिकी दिखती थीं। वह उससे शादी की आड़ में उसकी बेटी के साथ ---=== नहीं.. नहीं वह ऐसा कभी नहीं होनें देगी। वह भी राधिया को लेकर कहीं दूर चली जायेगी जहाँ सोमेश की कुत्सित निगाहेँ माँ - बेटी को ढूँढ न पाये। चाँद मंथर गति से अपने गतंव्य की ओर जा रहा था और रमिया अपनी बेटी का हाथ थामे चली जा रही सोमेश की नज़रों से कहीं दूर... बहुत दूर। ©Sneh Lata Pandey 'sneh' #पुनरावृति
Lalit Tiwari
यदि भविष्य में भारत का चाहो उत्थान,कर दो वि वन्दे मालग संस्था वह जहां चले सतत शिक्षण संधान,विधि का बदल विधान , हमें फिर से पीछे मुड़ना होगा,क्या खो आए हैं हम पीछे, फिर से उसे पकड़ना होगा, नालन्दा सा विश्व व्याप्त,गौरव फिर से मढ़ना होगा,भ्रष्ट हुआ परिवेश, पुनः फिर गढ़ना होगा, होकर विलग समाज संस्था ,शिक्षा फिर गौरव पाएगी,जो बन ब्रम्हचर्य की रक्षक ,कनक समान बनाएगी,वही आचरण की वेदी पर ,खरे उतर कर आएंगे,वही सुमन सुन्दर समाज का , फिर मण्डन करवाएंगे, आचरणों की धुरियों पर ,जब चले जवानी, हुंकार उठेगी जग में फिर ,क्रान्ती की रानी,ये स्वार्थपरित ये आतंकी ,जा छुपेंगे फिर से कोनों में,लहरेगा भगवा ध्वज फिर से,रणचण्डी जब हुंकारेगी,तब होगा निर्मल अंतस्तल,तब भारत बलिवेदी पर, फिर से कोई नवदीप्त जलेगा,मानेगा सारा जग लोहा,भारत का सम्मान करेगा,नालंदा सी शिक्षा ,,फिर से भारत में लानी होगी,,वही पुरानी गाथाओं की, नीत हमें दोहरानी होगी,तभी हमारा वतन बचेगा, कालिख की परछाईं से,और हमारे बदन ढकेंगे, आचरणों की छांहीं से ।। तरम शिक्षा की पुनर्चेतना