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anamika

तवील सी इस ज़िंदगी में
सब कुछ सम्भव है
खट्टा तत्सम है
मीठा तद्भव है #तवील #ज़िंदगी #खट्टा #मीठा #तत्सम #तद्भव #nojotohindi

रजनीश "स्वच्छंद"

चलो सीखें हिंदी- हिंदी के भेद।। हिंदी का जो बोलूं भेद, रखो याद, तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज। मातृभाषा से न हो मतभेद, मुझसे सुनो, लो इसे तुम

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आओ हिंदी सीखें-हिंदी के भेद
read the complete poem in comment section #NojotoQuote चलो सीखें हिंदी- हिंदी के भेद।।

हिंदी का जो बोलूं भेद,
रखो याद, तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज।
मातृभाषा से न हो मतभेद,
मुझसे सुनो, लो इसे तुम

के_मीनू_तोष

मेरी हिन्दी बड़ी निराली है स्वर्ण सरीखे आखर जिसके अजी ये भाषा बड़ी निराली है शान ए हिन्द बढ़ाने वाली है माँ की लोरी में अमृत घोले मुन्नी क

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मेरी हिन्दी बड़ी निराली है

(अनुशीर्षक में पढ़ें ) मेरी हिन्दी बड़ी निराली है

स्वर्ण सरीखे आखर जिसके
अजी ये भाषा बड़ी निराली है
शान ए हिन्द बढ़ाने वाली है

माँ की लोरी में अमृत घोले
मुन्नी क

Satya Prakash Upadhyay

हिंदी मात्र भाषा नहीं पुरखों की निधि है। अमीर ख़ुसरो साहब ने खड़ी हिंदी से सरोकार किया। बुझ और अबूझ पहेलियों का एक नया संसार दिया। बीसों का #कविता #Hindidiwas

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माँ जैसी सरल है हिंदी, 





  हिंदी मात्र भाषा नहीं पुरखों की निधि है।
अमीर ख़ुसरो साहब ने खड़ी हिंदी से सरोकार किया।
बुझ और अबूझ पहेलियों का एक नया संसार दिया।
बीसों का सर काट दिया ,ना मारा ना-खून किया।
पहेली में हीं उत्तर नाखून को स्थान दिया।
ब्रज मैथिली अवधि भोजपुरी सब ने इसका सम्मान किया।
व्यापारियों के माध्यम से उत्तर भारत मे इसका प्रचार हुआ।
सात शतक से चली आ रही, पहले लड़खड़ाई अब खड़ी हो गई।
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब ये जरा आधुनिक हो गई।
तत्सम तद्भव देशज विदेशज शब्दो से आबाद हो गई।
पर दक्षिण भारत में जा कर के थोड़ा थक के मुरझाई।
नई पीढ़ी से उम्मीदें हैं,कहीं वो न बना ले इस से दूरी।
पर अब भी ये फूल फल रही ,और भाषाओं से आगे बढ़ रही।
हिंदी भाषी कहते इसे माता,पर सम्मान क्या उतना दे पाते हैं।
नए समाज में खिल जाने को  ,इस से हीं कतराते हैं।
पर जो माँ को सम्मान न दे सका , वो दम्भी तो झूठा है।
इसी कारण तो शुभ विचार,उसके दर पर रूठा है।
हमें तो गर्व है हिंदी पर,इसकी विरासत को बचाएंगे।
अपनी अगली पीढ़ी को ,इसका उपहार दे जाएंगे।


satyprabha💕 हिंदी मात्र भाषा नहीं पुरखों की निधि है।

अमीर ख़ुसरो साहब ने खड़ी हिंदी से सरोकार किया।
बुझ और अबूझ पहेलियों का एक नया संसार दिया।

बीसों का
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